मालवा क्षेत्र की 38 विधानसभा सीटों का गणित, किस सीट पर टिकट पाने का कौन है प्रबल दावेदार?
- मालवा क्षेत्र में कांग्रेस- बीजेपी विधायकों में खींचतान
- आगामी चुनाव में कौन होगा उम्मीदवार?
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं। जिसको देख भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस अपनी कमर कस चुकी हैं। दोनों पार्टियों की तरफ अपने-अपने दावे किए जा रहे हैं। जहां सत्ताधारी पार्टी बीजेपी एक बार फिर चुनाव जीतने का दम भर रही है जबकि कांग्रेस शिवराज सरकार का ये आखिरी कार्यकाल बता रही है। भाजपा-कांग्रेस दोनों ने चुनाव जीतने के लिए बूथ स्तर पर अपने-अपने कार्यकर्ता लगाने शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस को लेकर प्रदेश की जनता में इस बार काफी मिजाज बदला हुआ नजर आ रहा है।
मध्यप्रदेश का चुनाव हमेशा से ही कांग्रेस और बीजेपी के इर्द गिर्द ही घुमता रहा है। हालांकि, बीजेपी के नेताओं को लेकर ये कहा जाता है कि ये चुनाव को बड़ी ही साफगोई से लड़ते हैं और पार्टी में असंतुष्ट नेताओं को मनाने में काफी माहिर हैं। लेकिन इसके ठीक उलट कांग्रेस अपने नेताओं को ज्यादा तवज्जो न देकर अपना नुकसान करा लेती है। जिसका एक जीता जागता उदाहरण साल 2020 की 'कमलनाथ सरकार' थी। इन सबसे से इत्तर इस बार का चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के लिए खास रहने वाला है, क्योंकि जहां भाजपा अपने वरिष्ठ नेताओं और पार्टी को जीत दिलाने वाले नेताओं को ही टिकट देने का मन बना रही है। जबकि कांग्रेस आगामी चुनाव को लेकर युवा और राजनीति में लंबे रेस वाले नेताओं पर भरोसा जता रही है ताकि चुनाव में बीजेपी को पटखनी दी जा सके।
कौन कितना मजबूत?
भास्कर हिंदी की टीम ने मालवा के 8 जिलों की 38 विधानसभा सीटों पर अपनी खास रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें तमाम कांग्रेस और बीजेपी के कैंडिडेट को लेकर गहन छानबीन की गई है। जनता से बात करके ये समझने की कोशिश की है कि आखिर इस बार के चुनाव में कौन जीतने जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि, मालवा की 38 सीटों पर जिस पार्टी की सबसे ज्यादा जीत होती है उसी के हाथ में प्रदेश की सत्ता का बागडोर होता है। तो चलिए बताते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी के कौन से प्रत्याशी मजबूत स्थिति में हैं और मौजूदा समय में मालवा के 38 विधानसभा सीट पर किस पार्टी के कितने विधायक हैं।
मालवा जिले के 38 सीटों का गणित समझें-
मालवा के 38 सीटों पर ज्यादातर भाजपा का ही कब्जा है। इस क्षेत्र से भाजपा के 24 विधायक हैं। जबकि कांग्रेस के 13 और एक निदर्लीय विधायक है। हालांकि, साल 2018 के चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 38 सीटों में से 18 पर जीत हासिल की थी। जबकि भाजपा ने 19 सीटों पर अपना परचम लहराया था। लेकिन साल 2020 में राजनीतिक उठापटक के चलते सिंधिया और उनके समर्थक कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे। इन नेताओं के बीजेपी में शामिल होने पर प्रदेश में उपचुनाव हुए और उपचुनाव के बाद बीजेपी की सीटें बढ़ीं। मालवा की 19 सीटों पर काबिज बीजेपी उपचुनाव के बाद 24 सीटों पर काबिज है। हालांकि, कहा जा रहा है कि इन नेताओं के बीजेपी में आने से वो तमाम नेता दुखी हैं, जो यहां से चुनाव लड़ा करते थे और पार्टी से नाराज चल रहे हैं। खबरें ये भी हैं कि इन नेताओं के साधने के लिए पार्टी हर तरह के जतन कर रही है। चलिए आपको बताते हैं कि आखिर मालवा के 8 जिलों के सियासी दांव पेंच हैं क्या? और किस पार्टी का उम्मीदवार जीत का पूरा दम रखता है।
- मालवा क्षेत्र में इंदौर का सियासी गणित
सबसे पहले मालवा क्षेत्र में आने वाले इंदौर जिले की बात करते हैं, जिनके अंतर्गत कुल 9 विधानसभा सीटें आती हैं। इन 9 सीटों में से 6 सीटों पर बीजेपी का कब्जा जबकि 3 सीटों पर कांग्रेस का दबदबा है।
इंदौर-1 (कांग्रेस)
इंदौर-1 विधानसभा सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता संजय शुक्ला विधायक हैं। जिन्होंने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी सुदर्शन गुप्ता को 8 हजार से अधिक वोटों से हराकर जीत हासिल की थी। शुक्ला अपने विधानसभा क्षेत्र में काफी सक्रिय रहते हैं। जिसकी वजह से आने वाले चुनाव में इनकी जीत की दावेदारी बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीट से कांग्रेस की ओर से कोई भी प्रत्याशी मजबूत दावेदार नहीं रखता है। सिंगल फेस होने की वजह से आसानी से जीत हासिल कर सकते हैं।
बीजेपी की ओर से दावेदार
हालांकि, इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी सुदर्शन गुप्ता भी जीत के लिए मजबूत दावेदारी रखते हैं। ये दो बार के विधायक रह चुके हैं। गुप्ता का सीधा संपर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया और सीएम शिवराज सिंह चौहान से है। जिसकी वजह से जीत के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। इनके अलावा कांग्रेस से बीजेपी में आए कमलेश खण्डेलवाल भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के साथ अच्छा संबंध है। जिसकी वजह से इन्हें भी इस सीट के लिए प्रबल दावेदार माना जा रहा है।
इंदौर-2 (भाजपा)
इस सीट से साल 2018 में रमेश मेंदोला ने कांग्रेस प्रत्याशी मोहन सेंगर को भारी मतों से हराया था। 71 हजार वोटों से जीतने वाले मेंदाला का दबदबा इस क्षेत्र में काफी है। भाजपा के टिकट से ये तीन बार से विधायक हैं और कैलाश विजयवर्गीय के बहुत अच्छे दोस्त माने जाते हैं। रमेश को कई धार्मिक कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हुए देखा गया है। जिसकी वजह से इलाके में हिंदूवादी नेता की छवि बन गई है और आने वाले चुनाव में एक बार फिर इनके सिर पर जीत का सेहरा सज सकता है।
कांग्रेस की ओर से दावेदार
हम अगर इस विधानसभा सीट से कांग्रेस की दावेदारी की बात करें तो चिंटू चौकसे को माना जा रहा है। जो इंदौर नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष भी है। जो अपने साथी पार्षद राजू भदौरिया संग मिलकर भाजपा को घेरने का काम करते हैं। इसलिए कांग्रेस की ओर से ये दोनों नेता टिकट के लिए प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं।
इंदौर-3 (भाजपा)
भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता और महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय इंदौर की विधानसभा सीट नंबर 3 से विधायक हैं। जिन्होंने कांग्रेस के अश्विन जोशी को करीब 6 हजार वोटों से हराया था। हालांकि, इस सीट से साल 2013 में प्रदेश की सांस्कृतिक मंत्री उषा ठाकुर जीत कर सदन में पहुंची थीं। लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में एन वक्त पर आकाश को टिकट देकर पार्टी ने सबको चौंका दिया था। वहीं इस बार भी पार्टी कोई बड़ा फैसला ले सकती है और फेरबदल करके युवा नेता गौरव रणदिवे के चेहरे को आगे कर सकती है क्योंकि पिछले चुनाव में पार्टी को जो उम्मीद थी, उतने मतों से जीत हासिल नहीं हुई थी। इन दोनों के अलावा वरिष्ठ नेता गोपी नेमा का नाम भी छन छन कर आ रहा है। पार्टी इनके नाम पर भी विचार विमर्श कर रही है। इनके बारे में कहा जाता है कि इनका संबंध इंदौर समेत देश के बड़े-बड़े कारोबारियों से है और प्रदेश में सरकार को चुनाव के दौरान फायदा पहुंचा सकते हैं।
कांग्रेस की ओर से दावेदार
इस सीट से कांग्रेस के तीन प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। जिनमें पूर्व मंत्री दिवगंत महेश जोशी के बेटे और भतीजे हैं। जिनका नाम पिंटू जोशी और अश्विन जोशी है। अश्विन और पिंटू जोशी में से किसी एक को टिकट मिलने की पूरी संभावना है क्योंकि इन दोनों भाइयों की पकड़ इलाके के मुस्लिम वोटर्स पर काफी तगड़ी है। इसलिए कांग्रेस पार्टी दोनों नेताओं के कद्द और सक्रियता को देखते हुए टिकट दे सकती है। इन दोनों के अलावा अरविंद बागरी भी टिकट लेने के कतार में हैं। अगर पिंटू और अश्विन में टिकट को लेकर खींचतान होती है तो अरविंद को पार्टी इंदौर की विधानसभा सीट नंबर 3 से खड़ा कर सकती है।
इंदौर-4 (भाजपा)
मौजूदा समय में इंदौर की विधानसभा सीट नंबर चार से भाजपा की मालिनी गौड़ विधायक हैं। जिन्होंने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सुरजीत सिंह चड्डा को 43 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। इस सीट से ये तीन बार की विधायक रह चुकी हैं। इनके नेतृत्व में ही इंदौर 6 बार से देश के सबसे स्वच्छ शहरों में नंबर वन के स्थान पर आ रहा है। इनके विरुद्ध पार्टी का कोई भी नेता उतनी मजबूती से अपनी दावेदारी नहीं रखता है। हालांकि, इनका स्वास्थ्य बड़ी समस्या है इसलिए पार्टी इनके बेटे एकलव्य सिंह गौड़ को मालिनी के विकल्प के रूप में देख रही है।
कांग्रेस की ओर से दावेदार
इंदौर विधानसभा सीट- 4 से कांग्रेस प्रत्याशी सुरजीत सिंह चड्डा का पता कट सकता है क्योंकि साल 2018 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी मालिनी गौड़ से 43 हजार वोटों से हार गए थे। जिसकी वजह से पार्टी उन्हें टिकट देने के मूड में नहीं है। अगर मजबूत दावेदारी की बात करें तो प्रीति गोलू अग्निहोत्री हैं, जो तीन बार पार्षद रह चुकी हैं और इन्हें पूर्व सीएम कमलनाथ का समर्थन हासिल है। इसके अलावा क्षेत्र में इनका जनाधार भी है। वहीं प्रीति के सामने अक्षय बम भी खड़े है, जो इस सीट पर अपनी दावेदारी कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हें भी पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का समर्थन हासिल है।
इंदौर- 5 ( भाजपा)
इंदौर विधानसभा 5 से बीजेपी के विधायक महेंद्र हार्डिया हैं जिन्होंने साल 2018 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण पटेल को 1 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में इनका पत्ता कट सकता है और नए युवा चेहरे को मौक दिया जा सकता है। सूत्रों की मानें तो, इस बार इस सीट से भाजपा के तीन नेता अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। जिनका नाम नानूराम कुमावत, अजय सिंह नरुका और गौरव रणदिवे हैं। खबरें हैं कि, इन तीनों में सबसे मजबूत दावेदारी गौरव रणदिवे की है जो पार्टी के लिए हमेशा खड़े रहते हैं। इसके साथ ही क्षेत्र में जनाधार वाले नेता माने जाते हैं इसलिए तमाम लोगों से गौरव की दावेदारी अधिक बढ़ जा रही है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
इस विधानसभा सीट से सबसे मजबूत दावेदारी सत्यनारायण हैं क्योंकि साल 2018 के चुनाव में महज 1 हजार से अधिक वोटों से हार गए थे। जिसकी वजह से पार्टी के अन्य नेताओं से इनकी दावेदारी बढ़ जाती है। इनकी दावेदारी इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि कई सालों से इस क्षेत्र में सक्रिय हैं और पार्टी को बूथ स्तर पर मजबूत करने के लिए कार्यकर्ताओं से सीधे तौर पर संपर्क साधे हुए हैं। हालांकि, टिकट लेने के लाइन में अमन बजाज और स्वप्रिल कोठारी जैसे नेता भी लाइन में लगे हुए हैं।
महू( बीजेपी)
महू पर वर्तमान समय में भाजपा का कब्जा है। साल 2018 में इस विधानसभा सीट से उषा ठाकुर जीत कर सदन में पहुंची थीं, जो शिवराज कैबिनेट का हिस्सा भी हैं। पिछले तीन बार से अलग-अलग विधानसभा सीट से ये चुनाव लड़ रही हैं ऐसा भी संभव है कि इन्हें इस बार भी अलग सीट से चुनाव में खड़ा किया जाए। बता दें कि, हिंदूवादी नेता की छवि और संघ समेत सीधे तौर पर सीएम शिवराज सिंह चौहान का समर्थन हासिल है। आगामी चुनाव में उषा ठाकुर को इस सीट से नहीं टिकट मिला तो कैलाश विजयवर्गीय को टिकट मिल सकता है क्योंकि महू कांग्रेस का गढ़ था। जिसे भेदने में विजयवर्गीय का अहम रोल रहा है। ऐसा भी अंदेशा है कि इस सीट से कैलाश विजयवर्गीय खुद चुनाव लड़ सकते हैं या अपने बेटे आकाश को पार्टी से टिकट देने के लिए कह सकते हैं। वहीं इन दोनों के अलावा गोलू शूक्ला भी पार्टी से उम्मीद लगाए हुए हैं कि उन्हें इस बार चुनाव में खड़ा किया जा सकता है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस पार्टी इस बार महू के किले को फतह करने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। पार्टी, कार्यकर्ताओं को क्षेत्र में सक्रिय कर दी है। ताकि कभी गढ़ रहा महू विधानसभा क्षेत्र को जीता जा सके। अगर हम कांग्रेस की ओर से इस विधानसभा सीट से दावेदारी की बात करे तो कैलाश पांडे, योगेश यादव और अंतर सिंह दरबार जैसे कद्दावर नेता हैं, जो अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। इन तीनों नामों में सबसे ज्यादा अंतर सिंह दरबार का उछाला जा रहा है। हालांकि, पिछले चुनाव में यही उषा ठाकुर के सामने थे। जिन्हें 7 हजार से अधिक वोटों से हार मिली थी। लेकिन दिग्विजय सिंह से नजदीकी होने की वजह से एक बार फिर अंतर सिंह दरबार को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है।
राऊ ( कांग्रेस)
राऊ विधानसभा सीट हमेशा से कांग्रेस के खाते में ही रहा है। इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता जीतू पटवारी विधायक हैं और ये अपनी बातें बड़ी प्रमुखता से रखे जाने के लिए जाने जाते हैं। बता दें कि, इस सीट से साल 2018 में बीजेपी की ओर से मधु वर्मा खड़ी थीं। लेकिन जीतू ने उन्हें करीब 6 हजार वोटों से मात दे दी थी। इस सीट से कांग्रेस की ओर से केवल जीतू पटवारी ही मजबूत दावेदारी रखते हैं।
बीजेपी की ओर से दावेदारी
भारतीय जनता पार्टी की ओर से मधु शर्मा एक बार फिर खड़ी हो सकती हैं क्योंकि 6 हजार वोटों से हारने के बाद, पार्टी एक बार फिर विश्वास जता सकती है। इनके बार में कहा जाता है कि इनका सिंधिया और सीएम शिवराज सिंह चौहान से काफी बेहतर संबंध हैं, जो इनके खिलाफ विरोध के सारे सूर खत्म कर देते हैं। इनके अलावा इस सीट पर कभी बीजेपी के जीतू जिराती का सिक्का चलता था। लेकिन साल 2008 के चुनाव में उन्हें जीतू पटवारी से करारी हार मिली थी। जिसके बाद से ही ये सीट कांग्रेस के हाथ में है। जीतू जिराती को कैलाश विजयवर्गीय का पूरा समर्थन है।
सांवेर (भाजपा)
साल 2018 में इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस की जीत हुई थी लेकिन 2020 में राजनीतिक उठापटक की वजह से तुलसी सिलावट सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हो गए थे। जिसके बाद यहां उपचुनाव हुआ और एक बार फिर तुलसी सिलावट ने जीत हासिल की। इस बार भी अंदेशा है कि सांवेर सीट से यहीं खड़े होंगे। लेकिन कट्टर बीजेपी नेताओं में सुगबुगाहट होने लगी है जो असली भाजपा प्रत्याशी है उनका क्या होगा?
कांग्रेस की ओर से दावेदार
कांग्रेस की ओर से इस सीट से पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू की बेटी रीना सेतिया दावेदार हैं। साल 2020 के उपचुनाव में खुद प्रेमचंद खड़े हुए थे लेकिन पार्टी को जीत नहीं दिला पाए थे। जिसके बाद पार्टी ने तय किया है कि वो इस बार रीना को मौका देकर देखेंगे। बता दें कि, रीना सेतिया इंदौर संभाग की प्रवक्ता और प्रदेश महासचिव भी हैं और रीना का समर्थन पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ कर रहे हैं।
देपालपुर ( कांग्रेस)
देपालपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक विशाल पटेल हैं। जिन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी मनोज पटेल को 9 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। आगामी चुनाव के लिए विशाल के अलावा मोती सिंह पटेल भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। दरअसल मोती पटेल की दावेदारी इसलिए बढ़ जा रही है क्योंकि वो मौजूदा समय में दुग्ध संघ के अध्यक्ष हैं और गांवों में इनकी पकड़ अच्छी खासी है।
भाजपा की ओर से दावेदारी
बीजेपी की ओर से इस विधानसभा सीट के लिए तीन लोगों के बीच खींचतान मची हुई है। जिनका नाम चिंटू वर्मा, मनोज पटेल और उमराव सिंह मौर्य हैं। इन तीनों नेताओं की दावेदारी इस बार मानी जा रही है। हालांकि, बीजेपी के लिए तीनों मायनें रखते हैं जिसका कारण इनकी जनता में पकड़ मानी जा रही है। पार्टी इसी को देखते हुए रणनीति बनाने में लगी हुई है कि किस नेता को टिकट दिया जाए ताकि दूसरा नाराज न हो।
जिला- उज्जैन
- उज्जैन जिले में 7 विधानसभा सीटें हैं। जिनमें मौजूदा समय में 4 कांग्रेस और 3 बीजेपी के पास है। जबिक अन्य के खाते में शून्य है। साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने यहां काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। जिसकी बदौलत 4 सीटें जीतने में 'पंजा' कामयाब रहा था।
उज्जैन उत्तर ( बीजेपी)
उज्जैन जिले के उज्जैन उत्तर विधानसभा सीट से बीजेपी के पारस सिंह ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। जिनके समक्ष कांग्रेस के नेता महंत राजेंद्र भारतीय खड़े थे। इस चुनाव में जैन ने करीब 26 हजार वोटों से भारती को मात दी थी। हालांकि, इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से पारस जैन एक बार फिर उम्मीदवार बन सकते हैं। लेकिन लाइन में बीजेपी नेता अनिल, सोनू और विभाष जैसे सक्रिया नेता भी हैं। इन तीनों नेताओं की पकड़ इस विधानसभा क्षेत्र में जबरदस्त है। सूत्रों के मुताबिक, अनिल करीब तीन बार से इस सीट से चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा जता चुके हैं लेकिन हर बार उन्हें पार्टी से खाली हाथ ही नसीब हुआ है।
कांग्रेस की ओर से दावेदार
इस सीट से महंत राजेंद्र भारती का टिकट कट सकता है क्योंकि इस बार उज्जैन उत्तर से कांग्रेस की ओर से दो महिलाएं अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं। जिनका नाम माया त्रिवेदी और नूरी खान है। इसके अलावा क्षेत्र में युवाओं के पसंदीदा बने युवा नेता विक्की यादव और भरत शंकर जोशी भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं। बता दें कि, दोनों क्षेत्र की राजनीति में काफी सक्रिय हैं और भाजपा के खिलाफ आंदोलन करते रहते हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस इस बार बीजेपी के खिलाफ युवा चेहरा को उतार सकती है ताकि बीजेपी को कड़ी टक्कर दी जा सके।
उज्जैन दक्षिण (भाजपा)
उज्जैन दक्षिण से भाजपा के विधायक डॉ मोहन यादव हैं। जिन्होंने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र वशिष्ठ को 18 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। इनके सर पर आरएसस का हाथ है। क्षेत्र में हिंदूवादी नेता के तौर पर जाना जाता है। हालांकि, इसके बावजूद टिकट लेने की लाइन में इकबाल सिंह गांधी और राजपाल सिसोदिया जैसे नेता हैं। दोनों ही नेता क्षेत्र की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय है। लेकिन कहा जा रहा है कि ज्यादा मार्जिन की जीत की वजह से पार्टी एक बार फिर डॉ मोहन यादव को उम्मीदवार बना सकती है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस पार्टी की ओर से अजित सिंह पक्के दावेदार बताए जा रहे हैं। जिसका मुख्य कारण पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के साथ अच्छे संबंध। इसके साथ ही विधायक महेश परमार के करीबी माने जाते हैं इसलिए पार्टी इन पर विश्वास जता सकती है। इसके अलावा चेतन यादव और राजेंद्र वशिष्ठ भी हैं। बता दें कि, पिछले चुनाव में राजेंद्र 18 हजार वोटों से बीजेपी उम्मीदवार मोहन यादव से हार गए थे लेकिन दिग्विजय सिंह के खास होने की वजह से टिकट मिल सकता है।
तराना विधानसभा सीट ( कांग्रेस)
उज्जैन जिले के तराना विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार महेश परमार ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। परमार ने बीजेपी प्रत्याशी अनिल फिरोजिया को 2 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। पूर्व सीएम कमलनाथ के खास होने की वजह से इस बार भी तराना विधानसभा सीट से महेश परमार चुनाव लड़ सकते हैं।
भाजपा की ओर दावेदार
बीजेपी की ओर से तराना विधानसभा सीट से अनिल फिरोजिया को एक बार फिर से पार्टी उतार सकती है। जिसका कारण क्षेत्र में सक्रिय होना। साथ ही फिरोजिया उज्जैन-आलोट सीट से मौजूदा समय में सांसद हैं। इसके अलावा लक्ष्मी नारायण मालवीय भी पार्टी से टिकट देने की बात कह चुके हैं। बता दें कि, नारायण का दबदबा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त है। इसलिए पार्टी कमान पर दवाब भी बना रहे हैं कि उन्हें उस क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मौका दिया जाए।
बड़नगर विधानसभा सीट ( कांग्रेस)
इस सीट पर कांग्रेस के मुरली मोरवाल ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। जिन्होंने बीजेपी प्रत्याशी संजय शर्मा को 5 हजार से अधिक वोटों से हराया था। मुरली जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। इनकी पकड़ काफी मजबूत है। इसलिए यह पक्के दावेदार माने जा रहे हैं। हालांकि, मुरली के साथ मोहन सिंह पल्दूना भी अपनी दावेदारी अजमा रहे हैं कि शायद पार्टी इस बार के विस चुनाव में टिकट देदें।
बीजेपी की ओर से दावेदारी
इस बार भारतीय जनता पार्टी बड़नगर विधानसभा सीट को फतह करने के लिए नई रणनीति बना रखी है। सूत्रों की मानें तो, बीजेपी इस सीट पर किसी युवा नेता को मौका दे सकती है। कहा जा रहा है कि तेज सिंह, जो बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष हैं। युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं, जिन पर इस बार बीजेपी दांव लगा सकती है। हालांकि, भाजपा ने इस सीट के लिए दूसरा भी विकल्प तैयार की हुई है। बीजेपी बहादुर सिंह बोरमुंडला, जितेंद्र पंड्या और राजपाल सिंह सिसोदिया को भी देख रही है क्योंकि ये तीनों नेता क्षेत्र की जनता से जुड़े हुए हैं। साथ ही इनकी पकड़ ग्रामीण इलाके में काफी तगड़ी है।
नागदा विधानसभा सीट ( कांग्रेस)
दिलीप गुर्जर नागदा विधासनसभा सीट से कांग्रेस कोटे से विधायक हैं। जिन्होंने पिछले चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी दिलीप सिंह शेखावत को 5 हजार से अधिक वोटों से हराया था। गुर्जर कमलनाथ के करीबी हैं, जिनका युवाओं में अच्छा खासा पैठ है। अगर इनका टिकट कटता है तो बसंत मालपानी को चांस मिल सकता है। हालांकि, ऐसा होना कम ही लगता है क्योंकि दिलीप गुर्जर अपने विधानसभा क्षेत्र में काफी सक्रिय रहते हैं।
बीजेपी की ओर से दावेदारी
इस विधानसभा सीट से बीजेपी के तीन प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। जिनका नाम धर्मेश जायसवाल, राजेश धाकड़ और प्रकाश जैन हैं। प्रकाश जैन मौजूदा समय में पार्षद हैं जबकि राजेश पूर्व में पार्षद रह चुके हैं। वहीं धर्मेश ग्रामीण जिला के महामंत्री हैं। जिसकी वजह से गांव में उनकी पकड़ अच्छी खासी है। अगर सब कुछ सही रहा तो इस बार पार्टी धर्मेश को नागदा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बना सकती है।
महिदपुर विधानसभा सीट ( बीजेपी )
इस सीट से बीजेपी के बहादुर सिंह चौहान विधायक हैं। जिन्होंने 15 हजार वोटों से निर्दलीय विधायक दिनेश जैन बॉस को हराया था। इस सीट पर बीजेपी से मजबूत दावेदार प्रताप सिंह आर्य और केसर सिंह माने जा रहे हैं। लेकिन ज्यादा संभावना बहादुर सिंह चौहान पर ही है, क्योंकि पिछले विधानसभा सीट पर पार्टी को अच्छी खासी जीत दिलाई थी।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस पार्टी की ओर से रणछोड़ त्रिवेदी और हेमंत चौहान प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं लेकिन कहा जा रहा है कि दो बार से निर्देलीय खड़े हुए प्रत्याशी दिनेश जैन बॉस कांग्रेस के लिए राह का रोड़ा हैं। दो बार से हार का सामना कर रहे दिनेश इस बार की जीत का स्वाद चख सकते हैं।
घट्टिया विधानसभा सीट ( कांग्रेस)
इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक रामलाल मालवीय हैं। जिन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार अजीत प्रेमचंद गुड्डू को 4 हजार से अधिक वोटों से हराया था। पार्टी सूत्रों की मानें तो, इस बार भी यहीं कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी होंगे। लेकिन किसी वजह से टिकट नहीं मिला तो प्रेमचंद की जगह सरेंद्र मरमट या करण कुमारिया को पार्टी उम्मीदवार बना सकती है। इन दोनों नेताओं का समाज में अच्छा खासा दबदबा है अगर पार्टी इन्हें चुनाव में उतारती है तो प्रेमचंद की कमी नहीं खलेगी।
भाजपा की ओर दावेदारी
घट्टिया विधानसभा सीट से बीजेपी के चार उम्मीदवार हैं। जिन्होंने पार्टी से 2023 के विस चुनाव में चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। जिनका नाम अजिता परमार, सतीश मालवीय, राजकुमार जटिया और दिनेशा जाटव हैं। इन चारों में से प्रबल दावेदार सतीश मालवीय बताए जा रहे हैं क्योंकि ये पहले भी विधायक रह चुके हैं। साथ ही थावरचंद गहलोत के खास होने की वजह से पार्टी इन पर विश्वास जता सकती है। लेकिन बचे शेष तीन दावेदार भी टिकट लेने के लिए लाइन में खड़े हैं।
रतलाम जिला
- रतलाम जिले में 5 विधानसभा सीटें हैं। जिस पर बीजेपी के 3 और कांग्रेस के 2 विधायकों का दबदबा है।
रतलाम शहर विधानसभा सीट ( बीजेपी)
रतलाम शहर का किला बीजेपी ने साल 2018 में फतह किया था। इस विधानसभा सीट से भाजपा के चैतन्य कश्यप ने 43 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। इनके खिलाफ कांग्रेस की महिला उम्मीदवार प्रेमलता दवे खड़ी थीं। जिन्हें करारी हार झेलनी पड़ी थी। हम अगर इस बार की बात करे तो बीजेपी की ओर से चैतन्य कश्यप खुद प्रबल दावेदार हैं। जिसका मुख्य कारण चैतन्य इस सीट से दो बार विधायक चुने जा चुके हैं। मौजूदा विधायक कश्यम ने आगामी चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी हैं। इनके अलावा बीजेपी से फिलहाल कोई मजबूत दावेदार नहीं हैं।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
इस बार पार्टी प्रेमलता दवे का टिकट काट किसी अन्य चेहरे पर दांव लगा सकती है। जिसमें सबसे प्रबल नाम मयंक जाट का है। क्योंकि इनका शहर में अच्छा खासा दबदबा है। युवाओं और बुर्जुगों में खासा पहचान है। इसलिए पार्टी इनकों अपना उम्मीदवार बना सकती है। इसके अलावा पारस सकलेचा का नाम भी चल रहा है क्योंकि वे अपने दम पर निर्दलीय विधायक और महापौर रह चुके हैं और अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
रतलाम ग्रामीण विधानसभा सीट ( बीजेपी)
इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है। साल 2018 में 5 हजार वोटों से बीजेपी के नेता दिलीप मकवाना ने कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह डिंडोर को शिकस्त दी थी। इस बार भी पार्टी इन पर भरोसा जता सकती है। जिसका मुख्य कारण दो बार से लगातार विधायक। क्षेत्र में साफ सुथरा छवि और लोगों से संपर्क बनाए रखना। इनके अलावा मथुरालाल डामर और रूपचंद मईड़ा भी टिकट के लाइन में खड़े हैं। लेकिन कम ही संभावना है कि पार्टी इन पर विश्वास जताए।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस की ओर से खुद लक्ष्मण सिंह डिंडोर प्रबल दावेदार हैं। वजह रतलाम जनपद के पूर्व सीईओ रह चुके हैं। सिंह के ग्रामीण क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ है। इनके अलावा कोमल सिंह धुर्वे और किशन सिंगाड जैसे नेता भी हैं जो टिकट लेने के होड़ में हैं। दोनों नेताओं की जमीनी स्तर पर मजबूती है।
सैलाना विधानसभा चुनाव ( कांग्रेस)
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस नेता हर्ष विजय गहलोत ने बड़ी जीत दर्ज की थी। करीब 29 हजार वोटों से बीजेपी के नारायण मेढ़ा को मात दी थी। इस सीट से कांग्रेस का कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं है।
भाजपा की ओर से दावेदारी
नारायण मेडा पिछले चुनाव में जदयू छोड़ कर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। फिर भी कुछ हाथ नहीं आया था। लेकिन इस बार इनका टिकट कट सकता है। पार्टी इस बार किसी नए चेहरे पर दांव लगा सकती है। जिसमें संगीता चारेल का नाम सबसे ऊपर है। क्योंकि साल 2013 के विस चुनाव में जीत हासिल की थीं लेकिन कम मार्जिन की वजह से 18 में टिकट कट गया था। लेकिन इस बार पार्टी चुनावी मैदान में खड़ा कर सकती है।
जावरा विधानसभा सीट (बीजेपी)
जावरा विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है। लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार राजेंद्र पांडे ने महज 511 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी केके सिंह कालूखेड़ा को हराया था। लेकिन फिर भी बीजेपी कालूखेड़ा पर विश्वास जताएंगी। क्योंकि ये तीन बार से विधायक रह चुके हैं। स्थानीय लोगों में अच्छी खासी पकड़ है। भाजपा से इस बार केके सिंह कालूखेड़ा खुद अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। कांग्रेस से बीजेपी आए कालूखेड़ा सिंधिया समर्थक हैं इसलिए अंदेशा जताया जा रहा है कि शायद पार्टी टिकट देदें।
कांग्रेस की ओर दावेदारी
कांग्रेस की ओर से तीन दावेदारी पेश कर रहे हैं। जिनमें वीरेंद्र सिंह सोलंकी, डीपी धाकड़ और जीवन सिंह शेरपुर जैसे नेता हैं। ये तीनों नेता जमीन से जुड़े हुए हैं। ग्रामीण इलाकों में अच्छी खासी पकड़ है। पार्टी नेतृत्व इन्हीं तीनों में से किसी एक के नाम पर मोहर लगा सकती है।
आलोट विधानसभा सीट ( कांग्रेस)
आलोट पर कांग्रेस का कब्जा है। साल 2018 में कांग्रेस नेता मनोज चावला चुनाव जीते थे। जिन्होंने बीजेपी के जितेंद्र गहलोत को 5 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। क्षेत्र में इनकी दबंग जैसी छवि है एक बार जेल भी जा चुके हैं। पार्टी की ओर से मजबूत दावेदार हैं। अगर परिस्थिति बदलती है तो अजीत बोरासी को मौका दिया जा सकता है। क्योंकि इनके पिता पहले इस सीट से विधायक रह चुके हैं।
भाजपा की ओर से दावेदारी
भाजपा की ओर से इस सीट पर केवल जितेंद्र गहलोत दावेदार हैं। इसलिए इस बार भी वहीं चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी से दो- दो हाथ करेंगे।
देवास जिला
- देवास जिले में 5 विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमें फिलहाल बीजेपी के पास 4 और कांग्रेस के पास 1 सीटें हैं।
देवास विधानसभा सीट ( भाजपा )
देवास विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रत्याशी गायत्री राजे ने कांग्रेस के उम्मीदवार जय सिंह ठाकुर को करीब 28 हजार वोटों से मात दी थीं। इस सीट पर बीजेपी की ओर से मात्र यहीं मजबूत दावेदार हैं। वजह तुकोजीराव की फैमली से आना। दरअसल राजे तुकोजीराव की परिवार से आती हैं। यह सीट इसी खान दान के पास रहा है। गायत्री दो बार विधायक रह चुकी हैं। जिसकी वजह से मजबूत दावेदार मानी जा रही हैं।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
देवास विधानसभा सीट से प्रदीप चौधरी और प्रवेश अग्रवाल पक्के दावेदार माने जा रहे हैं। जिसकी मुख्य वजह स्थानीय लोगों में पकड़। जानकारी के मुताबिक, पार्टी इन्हीं दोनों नेताओं में से किसी एक के नाम पर मोहर लगा सकती है।
सोनकच्छ विधानसभा सीट ( कांग्रेस )
सोनकच्छ विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से सज्जन सिंह वर्मा बीजेपी के राजेंद्र वर्मा को करीब 10 हजार वोटों से हराया था। इस सीट से कांग्रेस की ओर से सज्जन सिंह ही इस बार भी चुनावी मैदान में खड़ा होंगे। इनके सिवाय पार्टी की ओर से कोई और नेता मजबूत स्थिति में नहीं दिख रहा है।
भाजपा की ओर से दावेदारी
भाजपा की ओर से इस बार भी राजेंद्र वर्मा ही चुनावी रण में खड़ा होंगे। क्योंकि इनके पिता फूलचंद वर्मा विधायक रह चुके हैं। पिछले चुनाव में करीब 10 हजार वोट से हारने की वजह से पार्टी एक बार फिर विश्वास जता सकती है।
बागली विधानसभा सीट ( भाजपा )
बागली विधानसभा सीट से भाजपा के पहाड़ सिंह कन्नौज विधायक हैं। जिन्होंने 11 हजार वोटों से कांग्रेस के कमल वास्कले को मात दी थी। खबरें हैं कि, इस बार भी भाजपा इन्हें ही मैदान में उतारेगी क्योंकि पहाड़ सिंह की पैठ आदिवासी समुदायों में जबरदस्त मानी जाती है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
बागली से कांग्रेस की ओर से कमल वास्कले का नाम सबसे आगे हैं क्योंकि इनको लेकर पार्टी और स्थानीय लोगों में सहानुभूति की लहर है। पिछले दो बार से चुनाव हार रहे हैं। जिसकी वजह से पार्टी टिकट काटने के मूड में नहीं है।
हाटपिपल्या विधानसभा सीट ( बीजेपी )
हाटपिप्लया से बीजेपी के मनोज नारायण सिंह चौधरी विधायक हैं। जिन्होंने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी कुंवर राजवीर सिंह बघेल को करीब 14 हजार वोटों से मात दी थी। इस सीट से बीजेपी की ओर से मनोज नारायण चौधरी सबसे मजबूत दावेदार हैं क्योंकि हाल ही में दीपक जोशी ने बीजेपी को छोड़ कांग्रेस ज्वाइन किया है। इसलिए यह सीट उनके लिए और सुरक्षित हो गई है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस की ओर से इस सीट के लिए तीन प्रबल दावेदार हैं। पहला खुद दीपक जोशी हैं क्योंकि हाल ही में उन्होंने बीजेपी को छोड़ कांग्रेस का दामन थामा था। इसके अलावा कुंवर सिंह बघेल और विश्वजीत चौहान जैसे नेता टिकट लेने के लिए लाइन में लगे हैं। हालांकि, लगभग-लगभग कंर्फम है कि इस सीट से कांग्रेस दीपक जोशी को आगामी चुनाव में उम्मीदवार कांग्रेस बनाएगी। जबकि पिछले बार हारे कुंवर सिंह को अन्य सीट से टिकट दे सकती है।
खातेगांव विधानसभा सीट ( बीजेपी )
खातेगांव पर भगवा पार्टी का कब्जा है। इस सीट पर बीजेपी के आशीष शर्मा साल 2018 में कांग्रेस के ओम पटले को 7 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। यह सीट भाजपा का गढ़ रहा है। बीजेपी लगातार पांच बार से इस सीट पर जीत दर्ज कर रही है। यह सीट बीजेपी के लिए आज भी सेफ है। भाजपा की ओर से पक्के दावेदार आशीष शर्मा हैं। पूरे संभावना है कि इस बार भी बीजेपी आशीष पर ही भरोसा जताए।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
खातेगांव विधानसभा सीट पर कांग्रेस की ओर से काफी बड़ी लाइन लगी हुई है। इस सीट पर कांग्रेस की ओर से पांच नाम हैं। जिनमें मनीष चौधरी, लक्ष्मीनारायण बंडावाला, गौतम बंटू गुर्ज, मनोज होलानी, और ओम पटेल जैसे स्थानीय नेता हैं। ये तमाम नेता बीजेपी के खिलाफ आए दिन क्षेत्र में मोर्चा खोले रहते हैं इसलिए पार्टी को काफी मथापच्ची खातेगांव विधानसभा सीट के लिए करनी पड़ सकती है।
मंदसौर जिला
- मंदसौर जिले में चार विधानसभा सीटें आती हैं। जिस पर बीजेपी का पूरा-पूरा कब्जा है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का खाता इस इलाके में खुला तक नहीं था। जिसको देखते हुए पार्टी के नेता इस क्षेत्र में काफी सक्रिय हो गए हैं ताकि मंदसौर जिले में कमाल किया जा सके।
मंदसौर विधानसभा सीट ( बीजेपी )
मंदसौर विधानसभा सीट से बीजेपी के यशपाल सिंह सिसौदिया विधायक हैं। जिन्होंने पिछले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार नरेंद्र नाहटा को 18 हजार से अधिक वोटों से हराया था। इस क्षेत्र से तीन बार विधायक सिंह रह चुके हैं। इसलिए इस बार भी पार्टी की ओर से यहीं खड़ा होंगे। हालांकि, यह भी अंदेशा है कि मंदसौर से बीजेपी सांसद सुधीर गुप्ता विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। लेकिन यशपाल सिंह नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी माने जाते हैं। इसलिए इनका टिकट कटने की कम ही अंदेशा जताया जा रहा है। सुधीर गुप्ता के अलावा नानालाल अटोलिया भी पार्टी हाईकमान की ओर टिकट को लेकर आश लगाए हुए हैं। फिलहाल अटोलिया वर्तमान समय में बीजेपी की ओर से जिला अध्यक्ष हैं।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस की ओर से दावेदारी नरेंद्र नाहटा के भतीजे सोमिल नाहटा कर रहे हैं। जो वर्तमान समय में कांग्रेस की ओर से जिले के उपाध्यक्ष हैं। वहीं टिकट के होड़ में कांग्रेस के जिला अध्यक्ष विपीन जैन भी है। माना जा रहा है कि, कांग्रेस इस बार नाहटा को हटा कर युवाओं को मौका देने वाली है। इन तीनों उम्मीदवारों में से एक पर पार्टी भरोसा जता सकती है।
मल्हारगढ़ विधानसभा सीट ( बीजेपी )
मल्हारगढ़ सीट से जगदीश देवड़ा विधायक हैं। जिन्होंने कांग्रेस के परशुराम सिसोदिया को करीब 12 हजार वोटों से हराया था। देवड़ा को इस सीट से किसी ने अब तक नहीं हटा पाया है। 1990 से लगातार विधायक हैं। यह विधानसभा एससी रिजर्व सीट है और बीजेपी में इनके कद का यहां कोई और नेता नहीं है। इसलिए पार्टी इनको छोड़ किसी और को उतराने की भूल नहीं करने वाली है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
परशुराम सिसोदिया को वफदार माना जाता है क्यों ये ज्योतिरादित्या सिंधिया के कभी करीबी माने जाते थे लेकिन उनके बीजेपी ज्वाइन करने के बावजूद कांग्रेस नहीं छोड़ी। इसलिए पार्टी इन्हें टिकट दे सकती है। साथ ही मौजूदा समय में ये प्रदेश महासचिव भी है। इनके अलावा इस सीट पर अपनी दावेदारी श्यामलाल जोकचंद भी ठोक रहे हैं क्योंकि कमलनाथ से सीधा संपर्क है।
सुवासरा विधानसभा सीट ( भाजपा )
सुवासरा विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में हरदीप सिंह डंग ने कांग्रेस के राकेश पाटीदार को करीब 30 हजार मार्जिन से धुल चटाया था। इसलिए बीजेपी इस बार जीत सुनिश्चित करने के लिए सिंह को मैदान में उतार सकती है। डंग साल 2018 में इस सीट से कांग्रेस की ओर से जीते थे। लेकिन बीजेपी में शामिल होने पर साल 2020 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट से फिर जीते थे। बीजेपी की ओर से राधेश्याम पाटीदार और विनय जांगिड़ जैसे युवा नेता टिकट के लिए लाइन में खड़े हैं। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी में इस सीट को लेकर खींचतान मची हुई है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस की ओर से इस सीट के लिए मुख्य रूप से तीन दावेदार हैं। जिनका नाम राकेश पाटीदार, ओम सिंह भाटी और जगदीश धनगर फौजी हैं। ये तीनों नेता अपनी-अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं, लेकिन इन तीनों नेताओं में राकेश पाटीदार सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं क्योंकि हार के बावजूद क्षेत्र में सक्रिय हैं।
गरोठ विधानसभा सीट ( बीजेपी )
बीजेपी के वरिष्ठ नेता देवीवाल धाकड़ गरोठ विधानसभा सीट से विधायक हैं। लेकिन पिछली बार महज 2 हजार वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी सुभाष कुमार सोजतिया से जीत हासिल की थी। कम मार्जिन से जीतने के बावजूद क्षेत्र में जबरदस्त पकड़ है। इसलिए बीजेपी एक बार फिर विश्वास जता सकती है। इस विधानसभा सीट से मुकेश काला और चन्दर सिंह सिसौदिया भी अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। जिसकी वजह से बीजेपी को यहां सीट बंटवारों को लेकर मथापच्ची करनी पड़ सकती है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस की ओर से सुभाष सोजतिया प्रबल दावेदार हैं। क्योंकि पिछली सरकार में ये स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। सुभाष एक दो बार नहीं बल्कि चार बार मात खा चुके हैं इसलिए इस बार नई रणनीति के तहत अपनी बेटी टोनू के लिए टिकट मांग रहे हैं। वहीं इनके अलावा इस सीट पर अपनी दावेदारी युवा कांग्रेस नेता दुर्गेश पटेल कर रहे हैं। क्षेत्र में लोगों से संवाद और उनकी समस्याओं को हल करते रहते हैं। जिसकी वजह से उन्हें फायदा मिल सकता है।
शाजापुर जिला
- शाजापुर जिले में तीन विधानसभा सीटें आती हैं। जिनमें से कांग्रेस को दो सीटों और भाजपा को एक सीट पर कब्जा है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में शाजापुर में कांग्रेस पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था।
शाजापुर विधानसभा सीट ( कांग्रेस )
शाजापुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के हुकुम सिंह कराड़ा विधायक हैं। जिन्होंने बीजेपी के अरुण सिंह भिमावद को करीब 45 हजार वोटों से मात दी थी। इसलिए पूरे संभावना है कि कांग्रेस पार्टी हुकुम सिंह को ही बीजेपी के खिलाफ उतारे। जिसकी मुख्य वजह चार बार से विधायक हैं और कांग्रेस की ओर से इस क्षेत्र में सबसे बड़े चेहरे हैं।
भाजपा की ओर से दावेदारी
भाजपा की ओर से इस सीट से तीन दावेदार हैं। जो आगामी चुनाव में पार्टी के वरिष्ठ नेता से टिकट के लिए पैरवी कर रहे हैं। जिसमें अंबाराम कराडा, क्षितिज भट्ट और अरुण भिमावद हैं। तीनों नेता पार्टी के लिए क्षेत्र में काफी सक्रिय रहते हैं। इसलिए पार्टी को इन नेताओं में एक को चुनाना कभी दिक्कत हो सकता है।
शुजालपुर विधानसभा सीट ( बीजेपी )
शुजालपुर पर बीजेपी का कब्जा है। इस सीट से मौजूदा स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार विधायक हैं। पिछली बार इनकी विधानसभा सीट बदल दी गई थी। उसके बावजूद जीत हासिल करने में सफल रहे थे। इस सीट पर बीजेपी की ओर से जसवंत सिंह हाडा और जमना प्रसाद परमार अपनी दावेदारी कर रहे हैं। दोनों नेता जमीन से जुड़े हुए हैं। इस सीट पर पार्टी के लिए एक नाम तय करना काफी मथापच्ची काम हो सकता है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस पार्टी की ओर से इस विधानसभा सीट से रामवीर सिंह सिकरवार सबसे मजबूत दावेदार बताए जा रहे हैं। इनके अलावा महेंद्र जोशी और योगेंद्र सिंह बंटी जैसे नेता भी हैं। जो अपना दम दिखा रहे हैं। बंटी कांग्रेस पार्टी की ओर से शाजापुर जिले के अध्यक्ष हैं और टिकट न मिलने की वजह से पिछले दो चुनाव में पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। इसलिए पार्टी इस बार नई स्ट्रेटजी पर काम कर है।
कालापीपल विधानसभा सीट ( कांग्रेस )
कालापीपल विधानसभा सीट से कांग्रेस के युवा नेता कुणाल चौधरी विधायक हैं। जिन्होंने साल 2018 के विस चुनाव में बीजेपी के बाबूलाल वर्मा को 13 हजार से अधिक वोटों से हराया था। कुणाल चौधरी इस सीट को लेकर पक्के दावेदार हैं। जिसकी मुख्य वजह युवा चेहरा और क्षेत्र में काफी एक्टिव रहते हैं। फिर भी इस सीट से कांग्रेस नेता चतुर्भुज तोमर अपनी दावेदारी कर रहे हैं। यहां तक की वो एलान कर चुके हैं कि पार्टी की ओर से टिकट न मिला तो वो निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरेंगे।
बीजेपी की ओर से दावेदारी
बीजेपी की ओर से धनश्याम चंद्रवंशी का नाम खूब उछाल रहा है क्योंकि इस क्षेत्र में खाती समाज के लोग बहुत रहते हैं और चंद्रवंशी का खाती समाज में जबरदस्त पकड़ है। इनके अलावा सुरेश आर्य और पंकज जोशी भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं। वजह क्षेत्र में सक्रियता। वहीं इस बार बाबूलाला वर्मा का टिकट कटना लगभग-लगभग तय है।
नीमच जिला
- नीमच जिला में कुल तीन विधानसभा सीटें आती हैं। जिस पर बीजेपी का पूरा कब्जा है। इस जिले में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस अपने जिलाध्यक्ष को सक्रिय कर दी है ताकि पिछले बार की तरह नतीजे न रहे।
नीमच विधानसभा सीट ( बीजेपी )
नीमच विधानसभा सीट पर बीजेपी के दिलीप सिंह परिहार का कब्जा है। जिन्होंने कांग्रेस के सत्यनारायण पाटीदार को करीब 15 हजार वोटों से मात दी थी। इस बार भी पार्टी इन पर भरोसा जता सकती है क्योंकि लगातार तीन बार से विधायक हैं और सीधे लोगों से संर्पक बनाए हुए हैं। हालांकि, इनके अलावा पवन पाटीदार भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं। मौजूदा समय में पाटीदार भाजपा के जिलाध्यक्ष हैं। युवा चेहरा होने की वजह से पार्टी एक बार भरोसा कर सकती है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस की ओर से नीमच विधानसभा सीट से तरुण बाहेती और उमराव सिंह गुर्जर हैं। तरुण बोहेती युवा चेहरा हैं। राहुल गांधी से इनकी नजदीकी है। इसलिए इनका कद और भी बढ़ जाता है। चुनाव को देखते हुए क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं उमराव सिंह गुर्जर भी इस सीट से अपनी दावेदारी कर रहे हैं। लेकिन उम्मीद है कि सिंह और पाटीदार का टिकट काट पार्टी तरुण बाहेती को एक बार मौका दे कर देखें।
मनासा विधानसभा सीट ( बीजेपी )
मनासा सिट से अनिरुद्ध माधव मारु विधायक हैं। इस सीट से साल 2018 के विस चुनाव में कांग्रेस की ओर से उमराव सिंह गुर्जर खड़े थे। लेकिन माधव से करीब 26 हजार वोट से हार गए थे। इस बार भी टिकट मिलने की उम्मीद हैं क्योंकि अनिरुद्ध का सीधा शिवराज सिंह से संपर्क हैं। इसके अलावा ज्यादातर यह अपना समय अपने विधानसभा क्षेत्र में ही बिताते हैं। जिसकी वजह से पार्टी एक बार फिर विश्वास जता सकती है। इनके अलावा विजेयंद्र सिंह मालहोड़ा भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं। साल 2020 में सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था। जिसकी वजह से उनको विश्वास है कि भाजपा कहीं से चुनाव में खड़ा कर सकती है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस की ओर से इस बार मनासा सीट से नरेंद्र नाहटा और मंगश संघई का नाम सबसे आगे चल रहा है। कहा जा रहा है कि उमरावसिंह का टिकट कटना पूरा तय है। पार्टी इस बार नए चेहरे को ज्यादा मौका देना चाहती है ताकि चुनाव में जीत हासिल की जाए। इन दोनों नेताओं में से किसी एक के नाम पर पार्टी मुहर लगा सकती है। क्योंकि दोनों नेता जमीन से जुड़े हुए हैं और ग्रामीण इलाके में चुनाव प्रचार करने में जुट गए हैं।
जावद विधानसभा सीट ( बीजेपी )
जावद विधानसभा सीट से ओमप्रकाश सकलेचा विधायक हैं। जिन्होंने कांग्रेस के राजकुमार अहीर को करीब 4 हजार वोटों से हराया था। इस बार भी पार्टी इन पर विश्वास जता सकती है। जिसका मुख्य कारण चार बार से लगातार विधायक होना हैं। इसके अलावा शिवराज कैबिनेट का हिस्सा हैं और अमित शाह से नजदीकी है। सकलेचा के अलावा समंदर पटेल भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं क्योंकि निर्दलीय रहते हुए चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन कुछ फायदा न होने की वजह से बीजेपी में शामिल हो गए हैं। भरोसा है कि कहीं बीजेपी की ओर टिकट मिल जाए तो विधानसभा का रूख कर लें।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
सत्यनाराण पाटीदार को इस विधानसभा सीट से कांग्रेस खड़ा कर सकती है। वजह वरिष्ठ नेता हैं। इस विधानसभा सीट में काफी सक्रिय हैं। अभी से चुनावी मूड में आ गए हैं। इनके अलावा राजकुमार अहीर खुद बड़े दावेदार हैं। पार्टी को भरोसा दिलाने में लगे हैं कि इस बार चुनाव जीत कर दिखाउंगा।
आगर-मालवा जिला
- आगर-मालवा जिले में दो विधानसभा सीट आती हैं। जिस पर एक कांग्रेस एक अन्य का कब्जा है। यहां बीजेपी का साल 2018 के विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला था।
आगर विधानसभा सीट ( कांग्रेस )
इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के विपिन वानखेड़े विधायक हैं। जिन्होंने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मनोज बंटी ऊंटवाल को करीब 2 हजार वोटों से मात दी थी। दरअसल, साल 2020 के उपचुनाव में विपिन ने बीजेपी के मनोज को नजदीकी मुकाबलों में मात दी थी। इस बार भी पार्टी की ओर से सिंगल फेस हैं। वजह राहुल गांधी के साथ इनकी मित्रता, जो मजबूत दावेदारी बना रही है।
भाजपा की ओर से दावेदारी
भाजपा की ओर से इस सीट पर राजकुमार जटिया और ओम मालवीय है। ओम मालवीय की दावेदारी सबसे मजबूत बताई जा रही है क्योंकि इस समय वो भाजपा के जिला महामंत्री हैं और क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ है। फिर भी राजकुमार जटिया की दावेदारी मानी जा रही है क्योंकि वो पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया के बेटे हैं।
सुसनेर विधानसभा सीट ( निर्दलीय )
सुसनेर विधानसभा सीट पर न ही बीजेपी और न ही कांग्रेस का कब्जा है। इस सीट पर निर्दलीय विधायक विक्रम सिंह राणा गुड्डू का दबदबा है। हालांकि, इनको बीजेपी का पूरा समर्थन है। जिसकी वजह से आसानी से वो पिछले चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी महेंद्र सिंह परिहार को 27 हजार से अधिक वोटों से मात देने में सफल रहे थे। पिछली बार की तरह ही इस बार भी बीजेपी खुले तौर पर समर्थन दे सकती है।
बीजेपी की ओर से दावेदारी
बीजेपी की ओर से इस सीट पर काफी लंबी लाइन लगी है। विक्रम सिंह राना, दिलीप सकलेचा और मुरलीधर पाटीदार अपनी दावेदरी कर रहे हैं। लेकिन पार्टी नेतृत्व की वजह से अपने पांव पीछे खींच सकते हैं क्योंकि बीजेपी पहले ही निर्दलीय विधायक को अपना समर्थन देने की बात कह चुकी है। इसलिए अपना उम्मीदवार नहीं उतार सकती है।
कांग्रेस की ओर से दावेदारी
कांग्रेस की ओर से तीन नामों पर जोरों शोर से चर्चा चल रही है। जिनमें विजयलक्ष्मी गर्ग, बाबूलाल यादव और जीतू पाटीदार का नाम शामिल है। तीनों नेता जमीन से जुड़े हुए हैं और क्षेत्र में कांग्रेस के लिए हल्ला बोलते रहते हैं। हालांकि, इन तीनों में सबसे आगे विजयलक्ष्मी गर्ग का नाम शामिल है क्योंकि ये फिलहाल जिला पंचायत के सदस्य हैं। साथ ही एक महिला होने के नाते पार्टी वरीयता दे सकती है।
Created On :   20 Jun 2023 7:57 AM IST