मराठा Vs OBC के ‘माधव फॉर्मूले’ से महाराष्ट्र फतह करने की तैयारी? एक्सपर्ट से जानिए कितनी कामयाब होगी बीजेपी?
- बीजेपी और एनसीपी नेताओं में हैं आपसी मतभेद
- दोनों पक्षों के बीच सामान्जस्य बिठाना बड़ी चुनौती
डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र की सियासत में उस समय भूचाल आ गया जब अजित पवार की अगुवाई में पार्टी का एक धड़ा सत्ताधारी गठबंधन में शामिल हो गया। विपक्ष ने इसके लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है। विपक्ष का आरोप है कि अगले साल होने वाले लोकसभा व विधानसभा चुनावों में खुद को फायदा पहुंचाने के लिए बीजेपी ने एनसीपी में फूट डाली है। बता दें कि दो जुलाई को अजित पवार के साथ एनसीपी के नौ विधायकों ने शपथ ली। इनमें से कुछ के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग व अनिमितताओं से जुड़े अन्य मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसियां जांच कर रही हैं।
गठबंधन करने के पीछे ये है प्लान
राजनीतिक जानकार बीजेपी द्वारा उठाए गए इस कदम को पिछले कुछ सालों में एनसीपी और शिवसेना की 'मराठा-प्रभुत्व' वाली राजनीति का मुकाबला करने के लिए एक नैरेटिव बनाने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं। वहीं ये भी मान रहे हैं कि इस तरह के गठबंधन से बीजेपी उन नेताओं को आगे करना चाहती है जो विपक्षी दल खासकर एनसीपी के बड़े नेताओं का मुकाबला कर सकते हैं।
एनसीपी की मराठा-वर्चस्व वाली सियासत के जवाब में बीजेपी ने ओबीसी के नेताओं को तैयार किया है। पार्टी के पूर्व महासचिव वसंतराव भागवत के बनाए 'माधव फॉर्मूला' (मालियों, धनगरों और वंजारियों के लिए) उसके इसी प्लान का हिस्सा रहा है। वसंतराव भागवत ने इसी प्लान के मद्देनजर 80 के दशक में वंजारी समुदाय से आने वाले गोपीनाथ मुंडे, माली समुदाय से एनएस फरांडे और धनगर समुदाय से आने वाले अन्ना डांगे जैसे ओबीसी नेताओं की एक पीढ़ी तैयार की थी। उनकी इसी सोशल इंजीनियरिंग ने ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी कहे जाने वाली बीजेपी को छोटी जातियों से जोड़ने में मदद की थी।
पार्टी के इस प्लान का हालिया उदाहरण राज्य की विधानपरिषद के सदस्य और धनगर यानी चरवाहा समुदाय के कद्दावर नेता गोपीचंद पडलकर हैं। इनको बीजेपी ने पवार परिवार के खिलाफ आगे किया है। पडलकर पवार परिवार के खिलाफ तीखे और निजी हमले करने के लिए जाने जाते हैं। बता दें धनगर समुदाय मराठा समुदाय की दूसरी बड़ी आबादी वाली जाति है।
पडलकर ने बारामती विधानसभा क्षेत्र से अजित पवार के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव के दौरान पडलकर ने पवार परिवार पर व्यक्तिगत और तीखे हमलों किए थे। उन्हें 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अजित के खिलाफ एक बड़ी चुनौती के रुप में देखा जा रहा था।
मतभेद बनेंगे चुनौती
एनसीपी खासकर सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हुए अजित गुट और बीजेपी के कई नेताओं के आपसी मतभेद हैं। पडलकर और अजित पवार इसका उदाहरण है। लेकिन इस घटनाक्रम से बीजेपी के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं का मोहभंग पार्टी से हो सकता है जो एनसीपी नेताओं का चुनाव में मुकाबला कर रहे हैं। इंडिया टुडे में शरद पवार के करीबी के हवाले से बताया गया कि बीजेपी में ऐसे कई नेता हैं जिनका एनसीपी नेताओं के साथ आपसी मतभेद है। इन आपसी मतभेद को दूर करने के लिए बीजेपी गणित बिठाएगी, लेकिन जरूरी नहीं है कि चीजें खुद बीजेपी की पक्ष में और एनसीपी के इन बागियों के लिए काम कर जाएं। मौजूदा समय में एनसीपी के नेता मुशरिफ इसका उदाहरण हैं। जो अजित के साथ शिंदे मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं। उनको अपने निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी के कड़े विरोध का सामना करना पड़ता रहा है। इसके अलावा अजित पवार के पडलकर और उदयनराजे जैसे बीजेपी के बड़े नेताओं से भी अच्छे संबंध नहीं हैं। ऐसे में बीजेपी आलाकमान के सामने यह चुनौती होगी कि इन दोनों पक्षों के बीच सामान्जस्य कैसे बिठाया जाए।
जानकारों का यह है कहना
अजित पवार के साथ शिंदे मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले 9 विधायकों में से अजित पवार, मुशरिफ, छगन भुजबल अदिति तटकरे और प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच चल रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी को समर्थन देने के बाद इनके खिलाफ चलने वाले मामलों खत्म कर दिया जाएगा। क्योंकि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनसीपी पर भ्रष्टाचार को लेकर बयान भी दिया था।
जानकारों का मानना है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और राज्य के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने यह कदम उठाया है। इन नेताओं को शामिल करके बीजेपी की कोशिश एनसीपी के बड़े नेताओं के सामने चुनाव में चुनौती पेश करना और एनसीपी की मराठा प्रभुत्व वाली राजनीति को प्रभावहीन करना है।
एबीपी न्यूज ने बीजेपी के इस कदम को लेकर देश के वरिष्ठ पत्रकारों से बात की है और जानने की कोशिश की है कि आखिर इससे आने वाले चुनावों पर क्या असर पड़ेगा। पत्रकार ओम सैनी के हवाले से एबीपी में लिखा है कि बीजेपी के इस कदम से उसका 2024 का प्रयोग तभी सफल होगा जब शरद पवार हार मान लेते हैं। जो उनके राजनीतिक इतिहास को देखते हुए मुमकिन नहीं लगता है। जैसा प्रभाव शरद पवार का एनसीपी और राज्य की सियासत में है वैसा अजित पवार का नहीं है। हाल ही में जब शरद पवार ने अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की थी तो पूरे मराठी समाज में हाहाकार मच गया था। जाहिर है ऐसा दबदबा अजित पवार के पास नहीं है।
ओम सैनी के मुताबिक अगर बीजेपी मराठा प्रभुत्व को चुनौती देने के उद्देश्य से अजित पवार को अपने साथ लाई है तो उसे अपने फैसले पर एक बार फिर सोचने की जरूरत है। पार्टी तब तक मराठा प्रभुत्व में प्रवेश नहीं कर सकती जब तक राज्य के किसान और कॉपरेटिव संगठन खासतौर से चीनी मिलों में अपनी पकड़ न बना लें। जिन पर वर्तमान में शरद पवार का प्रभाव है।
एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार आर राजगोपालन ने इस मामले पर एबीपी न्यूज से कहा कि, इस कदम के जरिए बीजेपी ने 2019 का अपना बदला पूरा कर लिया। जब एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने एनडीए से शिवसेना को अलग कर और कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार बनाई थी। उस समय इस राजनीतिक घटनाक्रम से बीजेपी को करारा झटका लगा था। राजगोपालन के अनुसार, इस सियासी उठापटक के साथ बीजेपी ने महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के अपने प्लान का श्रीगणेश कर दिया है। एनसीपी के कारण बीजेपी को राज्य में नेतृत्व की कमी का सामना करना पड़ता था, जिसे उसने पार्टी में फूट डालकर पूरा कर लिया है।
राजगोपालन ने आगे कहा, हाल ही में इस घटनाक्रम को लेकर एक वरिष्ठ नेता ने कहा था कि, 29 जून रात अमित शाह की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी जिसमें अजित पवार के साथ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे। इस बैठक में अजित पवार को अपने साथ एनसीपी विधायकों को बीजेपी में लाने का दूसरा मौका दिया गया। इससे पहले 2019 में वो ऐसा करने में असफल रहे थे।
यह सब 2024 के आमचुनाव के लिए बनाई गई बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है। जिसके तहत पार्टी ने अजित पवार को साथ लाकर उनको सीएम एकनाथ शिंदे की बराबरी पर लाकर खड़ा कर दिया है। जो आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में जा सकता है।
Created On :   4 July 2023 6:20 PM IST