विधानसभा चुनाव 2023: कांग्रेस को अपने ही किले गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले में जोगी कांग्रेस से चुनौती

कांग्रेस को अपने ही किले गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले में जोगी कांग्रेस से चुनौती
  • गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही 10 फरवरी 2020 को छत्तीसगढ़ का जिला बना
  • मरवाही और कोटा दो विधानसभा
  • मरवाही एसटी और कोटा सामान्य सीट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही 10 फरवरी 2020 को छत्तीसगढ़ के 28 वें जिले के रूप में अस्तित्व में आया। गौरेल्ला - पेंड्रा - मरवाही जिले में दो विधानसभा मरवाही और कोटा सीट है। मरवाही विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। पेंड्रा की धरती ने ही अजीत जोगी के तौर पर छत्तीसगढ़ जैसे नवोदित प्रदेश को पहला मुख्यमंत्री दिया था। जिले की दोनों सीटों पर अब तक बीजेपी का कमल जीत दर्ज नहीं कर पाया है।

मरवाही विधानसभा सीट

2003 में कांग्रेस से अजीत जोगी

2008 में कांग्रेस से अजीत जोगी

2013 में कांग्रेस से अमित जोगी

2018 में जोगी कांग्रेस से अजीत जोगी

2020 में कांग्रेस से केके ध्रुव

मरवाही विधानसभा सीट पर 58 फीसदी अनुसूचित जनजाति ,7 परसेंट एससी ,15 फीसदी ओबीसी वर्ग और 20 फीसदी सामान्य समुदाय के मतदाता है। इलाके में एसटी वोटर्स की तादाद अधिक होने के कारण उनका दबदबा है। बीजेपी ने प्रत्याशियों की पहली सूची में मरवाही विधानसभा से पूर्व सैनिक प्रणव कुमार मरपच्ची को उम्मीदवार घोषित किया, जो धरहर ग्राम पंचायत से दो बार सरपंच रह चुके है।

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री ने मरवाही विधानसभा क्षेत्र से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। 19 साल 2001 से लेकर 2020 तक यह सीट जोगी परिवार के नाम रही। इस दौरान 14 साल तक अजीत जोगी और 5 साल उनके बेटे अमित जोगी यहां से विधायक रहे। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले अजीत जोगी ने अपनी नई पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) का गठन किया और अपनी परंपरागत सीट से चुनाव मैदान में उतरे। 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने यहां अपनी जेसीसीजे पार्टी से चुनाव जीता था, लेकिन बीच कार्यकाल में उनके निधन होने से सीट पर 2020 में उपचुनाव हुआ था। जिसमें कांग्रेस ने जीत हासिल की थी।

क्षेत्र में हाथी और भालू अधिक है, इसलिए इस क्षेत्र को भालू के क्षेत्र से भी जाना जाता है। स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति यहां ठीक नहीं है। ये पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी प्रभाव वाली सीट थी। क्षेत्र में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से लोग परेशान है। सड़क और शिक्षा की बदहाल स्थिति है।

कोटा विधानसभा सीट

2003 में कांग्रेस के राजेंद्र शुक्ला

2008 में कांग्रेस से डॉ रेणु जोगी

2013 में कांग्रेस से डॉ रेणु जोगी

2018 में जेसीसीजे से डॉ रेणु जोगी

कोटा विधानसभा सीट पहले विधानसभा बिलासपुर जिले के अंतर्गत आती थी। गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही को जिला बनने के बाद कोटा विधानसभा सभा सीट इस जिले में आने लगी। कोटा विधानसभा सीट सामान्य सीट है। कोटा विधानसभा सीट को कांग्रेस की मजबूत दुर्ग माना जाता है। 66 साल से इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। रेणु जोगी यहां से लगातार तीन चुनाव जीत चुकी है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस को यहां पहली बार हार का सामना करना पड़ा। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अलग बनी जोगी कांग्रेस ने चुनाव जीता था।

कोटा विधानसभा में 60 फीसदी से अधिक एसटी मतदाता है। आदिवासी बाहुल इलाका होने के कारण सामान्य सीट होने के बावजूद अदिवासी समाज के समूह सीट पर बीजेपी कांग्रेस से आदिवासी प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारने की मांग करते है। आदिवासी समाज यहां किंगमेकर की भूमिका निभाता है।

कोटा आज भी विकास की राह देख रहा है। मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद भी क्षेत्र विकास से अछूता रहा है। आदिवासी इलाका होने के कारण यहां विकास नहीं हुआ जो कि होना चाहिए था। इलाके के कई गांव आज भी जंगल के अंदर बसे हुए है। जहां से विकास कोसों दूर है। अचानकमार टाइगर रिजर्व होने से यहां विकास नहीं हो पा रहा है। बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गग्गी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

Created On :   20 Sept 2023 7:22 PM IST

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