Chtrapati Sambhajinagar: छत्रपति संभाजीनगर में पूर्व पति को चुनौती देकर संजना जाधव ने मुकाबला बनाया रोचक
- पिता हैं संग तो किस बात का गम
- त्रिकोणीय मुकाबले में मराठों का बोलबाला
- संजना ने स्थानीय निकाय चुनाव में भी पूर्व पति को बुरी तरह पटखनी दी
Chtrapati Sambhajinagar दीपक अग्रवाल .छत्रपति संभाजीनगर जिले की कन्नड़ विधानसभा में मुकाबला बेहद अलग मोड़ ले चुका है। यहां भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय रेल राज्यमंत्री रावसाहब दानवे की पुत्री संजना जाधव जो अब तक भाजपा के साथ थीं, चुनाव आते ही शिवसेना (शिंदे) के टिकट पर मैदान में उतरकर अपने पूर्व पति हर्षवर्धन जाधव को चुनौती दे रही हैं। हर्षवर्धन दो बार विधायक रह चुके हैं और 2019 में 2,83,798 वोट लेकर भाजपा-शिवसेना के संयुक्त उम्मीदवार को लोकसभा में हराने का मुख्य कारण भी बन चुके हैं। दोनों मराठा हैं और सीट पर मराठों का बोलबाला है। उनके साथ मैदान में महाविकास आघाड़ी में शिवसेना उबाठा के वर्तमान विधायक उदय सिंह राजपूत भी हैं। ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबला किस ओर मुड़ता है, क्या रंग दिखाता है, आने वाला समय ही बताएगा।
राज्य में अपनी तरह का पहला मुकाबला : कन्नड़ विधानसभा पर इसलिए भी सभी की निगाहें हैं, क्योंकि राज्य में पहली बार पति-पत्नी (विभक्त) के बीच इस तरह सीधा मुकाबला होगा। हर्षवर्धन के पिता रायभान जाधव कांग्रेस और निर्दलीय के रूप में तीन बार विधायक रहे। उन्हें क्षेत्र में कृषि महर्षि के रूप में जाना जाता है। हर्षवर्धन भी 2009 में मनसे से और 2014 में शिवसेना से विधायक बने और 2019 में निर्दलीय के रूप में लोकसभा चुनाव लड़े। चुनाव में उन्होंने 4 बार सांसद रहे महायुति के चंद्रकांत खैरे के हारने में मुख्य भूमिका निभाई और दोनों की लड़ाई में एमआईएम के इम्तियाज जलील बाजी मार ले गए। वहीं, 2024 में उनका डिपॉजिट जब्त हो गया। उन्हें केवल 39,828 वोट मिले। और तो और 2019 में विधानसभा चुनाव में उन्हें शिवसेना संयुक्त व भाजपा उम्मीदवार राजपूत से करारी हार का सामना करना पड़ा और केवल 60,535 वोट ही ले पाए।
राजनीति में उठापटक नहीं देखनी पड़ी संजना को : संजना जाधव पति से विभक्त होने से पहले राजनीति से कोसों दूर रहीं। पति का हर कदम पर साथ दिया। लेकिन, एक अन्य महिला के कारण पति से अलग होने की शुरुआत पर 2014 में आर्ट्स में डिग्री रखने वाली संजना जिला परिषद की सदस्य बनीं। 2019 से हर्षवर्धन से वह अलग हो गईं और पूरी तरह से चुनाव क्षेत्र पर फोकस करने लगीं।
संजना को रावसाहब दानवे की पुत्री होने के कारण राजनीति में उठापटक नहीं देखनी पड़ी, लेकिन अपने तीखे वक्तव्यों से उन्होंने हाल ही में स्थानीय निकाय चुनावों में भी पूर्व पति को बुरी तरह पटखनी दी थी। यह बात और है कि इस लड़ाई में उनका अपना बेटा भी उनके साथ नहीं था।
..तो आखिर होगा क्या? आज विधानसभा की लड़ाई में यह भी ध्यान रखा जाएगा कि जिले की नौ सीटों में कन्नड़ ही एकमात्र सीट थी, जहां के विधायक उदयसिंह राजपूत ने उद्धव ठाकरे का साथ नहीं छोड़ा। उनकी निष्ठा की कद्र भी क्षेत्र की जनता करती है कि नहीं, यह भी वक्त के साथ पता चल जाएगा। हर्षवर्धन निर्दलीय के रूप में उतरे हैं। मनसे छोड़ने के बाद उन्होंने केसीआर की भारत राष्ट्र समिति में भी प्रवेश किया, लेकिन विचार कभी मिल नहीं पाए और महाराष्ट्र के रण में केसीआर कभी उतर भी नहीं पाए।
आज संजना के पास पिता का वरद हस्त है। भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और राकांपा (अजीत पवार) का साथ है। पूर्व पति हर्षवर्धन बिल्कुल अकेले हैं। 2019 में पहली बार चुनाव जीते उदयसिंह राजपूत के साथ अब मविआ की ताकत है। इसके अलावा निर्दलीय के रूप में वरिष्ठ नेता मनोज पवार भी मराठा कार्ड के दम पर कड़ी चुनौती देने के लिए तत्पर हैं। नतीजा कुछ भी हो, इतना जरूर है कि पूर्व पति-पत्नी की यह लड़ाई अभी हाल ही में जरांगे फैक्टर के कारण लोकसभा चुनाव हारे रावसाहब दानवे का भविष्य भी निश्चित करेगी।
Created On :   30 Oct 2024 11:46 AM IST