मानवीय रुचि: भगवान बिरसा मुंडा की प्रेरणा झारखंड तक ही नहीं है सीमित, सैकड़ों किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में लोग पूजते हैं उन्हें

भगवान बिरसा मुंडा की प्रेरणा झारखंड तक ही नहीं है सीमित, सैकड़ों किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में लोग पूजते हैं उन्हें
देश के महान आदिवासी महानायक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मना रहा है। वह न सिर्फ आदिवासी समाज के लिए एक योद्धा थे बल्कि उन्होंने अपने कौशल से पूरे भारत के लिए आदर्श स्थापित किया।

नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। देश के महान आदिवासी महानायक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मना रहा है। वह न सिर्फ आदिवासी समाज के लिए एक योद्धा थे बल्कि उन्होंने अपने कौशल से पूरे भारत के लिए आदर्श स्थापित किया।

क्या आपको पता है कि झारखंड की धरती पर बसे उलिहातू गांव से करीब 1700 किलोमीटर दूर उनके आदर्श को अपनाने के लिए महाराष्ट्र के पालघर के मनोर इलाके में भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर एक चौक स्थापित किया गया है। यह चौक न सिर्फ यहां के लोगों को भगवान बिरसा मुंडा के संघर्षों की याद दिलाता है, बल्कि लोगों को आदिवासी समाज को अपने हक के लिए जागरूक होने की सीख भी देता है।

पालघर के मनोर इलाके में बिरसा मुंडा चौक स्थित है, जहां आदिवासी संस्कृति से जुड़े कई कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित होते हैं। इस चौक के आसपास झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा से जुड़े आदिवासी समुदायों के लोग अच्छी संख्या में रहते हैं, इसलिए यह नामकरण किया गया। इस क्षेत्र को ‘क्रांतिवीर बिरसा मुंडा चौक, चिंचोटी’ के नाम से भी जाना जाता है।

यहां के कुछ स्थलों पर आदिवासी प्रतीक चिन्ह भी देखे जा सकते हैं, जो इन समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं। आज उनकी जयंती के मौके पर पूरे भारत में, खासकर झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

झारखंड में भी बिरसा मुंडा के नाम पर कई स्मारक और सार्वजनिक स्थल मौजूद हैं, जिनमें स्टेडियम, चौक, संग्रहालय, और अन्य सार्वजनिक स्थान शामिल हैं। बिरसा मुंडा की प्रेरणा न केवल आदिवासी समाज को, बल्कि देश के अन्य समुदायों और संस्कृतियों को भी मिलती है।

भगवान बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1889 से 1900 तक उलगुलान आंदोलन हुआ, जिसे महाविद्रोह कहा जाता है। यह आंदोलन खासतौर पर सामंती व्यवस्था, जमींदारी प्रथा और अंग्रेजी शासन के खिलाफ था।

धरती आबा ने मुंडा आदिवासियों को जल, जंगल, और जमीन की रक्षा के लिए प्रेरित किया और उनके लिए लड़ाई लड़ी। यह आंदोलन खूंटी, तमाड़, सरवाडा और बंदगांव जैसे क्षेत्रों में केंद्रित था। बिरसा मुंडा ने 25 वर्ष की छोटी सी जीवन यात्रा में ऐसे असाधारण कार्य किए, जिसके कारण उन्हें धरती आबा और भगवान के रूप में पूजा जाने लगा। उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|

Created On :   15 Nov 2024 10:54 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story