संस्कृति: चर्चों की निगरानी करने के लिए अलग से बोर्ड की जरूरत नहीं चर्च इन नॉर्थ इंडिया

चर्चों की निगरानी करने के लिए अलग से बोर्ड की जरूरत नहीं  चर्च इन नॉर्थ इंडिया
मद्रास हाई कोर्ट के हाल ही में चर्च की संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के समान एक वैधानिक निकाय द्वारा शासित किए जाने की टिप्पणी पर काउंसिल ऑफ चर्च इन इंडिया (एनसीसीआई) और कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने असंतोष व्यक्त किया है। इस पर चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के महासचिव डॉ. डीजे अजीत कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

नई दिल्ली, 19 नवंबर (आईएएनएस)। मद्रास हाई कोर्ट के हाल ही में चर्च की संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के समान एक वैधानिक निकाय द्वारा शासित किए जाने की टिप्पणी पर काउंसिल ऑफ चर्च इन इंडिया (एनसीसीआई) और कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने असंतोष व्यक्त किया है। इस पर चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के महासचिव डॉ. डीजे अजीत कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

उन्होंने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, “मैं केवल चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया (सीएनआई) का पक्ष रख सकता हूं, क्योंकि मैं सीएनआई के भीतर हूं। भारत में 22 राज्यों में हमारी संपत्तियां हैं। साथ ही अंडमान निकोबार की 28 जगहों पर भी हमारी संपत्तियां हैं। हमारी अधिकांश संपत्तियां शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों या इसी तरह के संस्थानों के लिए हैं, जो समाज के विकास और कल्याण पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। यदि आप भारत के इतिहास को देखें, तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि भारत के उत्तरी हिस्सों में, शैक्षणिक और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के अग्रदूत ईसाई मिशनरी थे। ये मिशनरी लंबे समय से एक साथ काम कर रही थी, विभिन्न परंपराओं से आती थी।"

उन्होंने कहा, "सीएनआई, चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया, छह अलग-अलग चर्चों और संगठनों का एक संयुक्त रूप है। ये सभी संगठन, एजेंसियां के कार्य देश के सामाजिक विकास के लिए शुरू किए गए थे। अब बात करते हैं संपत्तियों की तो ये सभी संपत्तियां भारत के अलग-अलग हिस्सों में ठीक से हैं। इन संपत्तियों के ठीक से दस्तावेज़ बनाए जाते हैं, और समय-समय पर कर भी चुकाए जाते हैं। इनका कानूनी रूप से म्यूटेशन भी होता है। और इनका समय-समय पर रखरखाव भी किया जाता है। हमारे पास कई अलग-अलग निकाय हैं, जैसे चर्च ऑफ़ नॉर्थ इंडिया ट्रस्ट एसोसिएशन (सीएनआईटीए), यूनाइटेड चर्च ऑफ़ नॉर्थ इंडिया ट्रस्ट (यूसीएनआईटीए), जिसका मुंबई में कार्यालय है, इंडियन चर्च ट्रस्ट (आईसीटी)। ये सभी निकाय पंजीकृत हैं और हम इन संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं। हमारे पास अलग-अलग कार्यालय और कर्मचारी हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “हमारी ज्यादातर संस्थाएं सरकार के अधीन स्वतंत्र रूप से पंजीकृत हैं। मेरा सवाल यह है कि अगर ये सभी संपत्तियां पहले से ही सरकार के नियंत्रण में हैं, तो सरकार या मद्रास उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी क्यों की कि इन्हें एक अलग बोर्ड के अधीन रखा जाना चाहिए? ये सभी संपत्तियां पहले से ही सरकारी व्यवस्था के तहत प्रबंधित की जा रही हैं। यह कोई गैर-सरकारी तरीका नहीं है। हालांकि ये चर्च की संपत्तियां हैं, लेकिन इनका प्रबंधन या तो ट्रस्ट के तहत किया जा रहा है या फिर सोसायटी या कंपनी अधिनियम के तहत। ये सभी सरकार के अधीन हैं। सरकार हमेशा इन पर नज़र रखती है। इसलिए जब भी सरकार कोई सवाल पूछती है, तो हम भी कई बार सरकार से संपत्तियों के बारे में सवाल पूछते हैं। जब भी सरकार हमसे सवाल पूछती है, तो हम अपने दस्तावेज़ जमा करने के लिए तैयार रहते हैं। इस तरह से सिस्टम काम कर रहा है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि इन संपत्तियों की निगरानी के लिए किसी अलग बोर्ड या वैधानिक निकाय की जरूरत है, क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।”

बता दें कि इस मामले में अदालत ने कहा था, “हिंदुओं और मुसलमानों के धर्म की बंदोबस्ती वैधानिक नियमों के अधीन हैं। इन संस्थानों के मामलों पर एकमात्र निगरानी सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के तहत मुकदमे के माध्यम से होती है। संस्थानों को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए मामलों को विनियमित करने के लिए एक वैधानिक बोर्ड होना चाहिए।” इसके बाद अदालत ने गृह मंत्रालय और तमिलनाडु सरकार को भी इस मामले में पक्षकार बनाया है।

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Created On :   19 Nov 2024 9:25 PM IST

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