राजनीति: भाजपा की शीर्ष महिला लीडर से विदेश मंत्री तक, सुषमा स्वराज का ऐसा रहा सियासी सफर

भाजपा की शीर्ष महिला लीडर से विदेश मंत्री तक, सुषमा स्वराज का ऐसा रहा सियासी सफर
सुषमा स्वराज उस विदेश मंत्री का नाम जिन्होंने कमान थामते ही मंत्रालय की सूरत बदल कर रख दी। उनके मंत्री रहते ये विभाग आम भारतीय का विभाग कहलाने लगा। जितनी सहज थीं मंत्री जी उतनी ही काम को लेकर समर्पित और सख्त। चाहे वो पाकिस्तान की बोलने सुनने में लाचार गीता हो या फिर दुर्दांत आतंकियों के बीच फंसे भारतीयों की वतन वापसी करानी हो, उन्होंने सब तक पहुंच बनाई । ऐसी शख्सियत कि आज भी जब उनको याद करते हैं तो आंखें भर आती हैं और गर्व से भारत का सिर ऊंचा हो जाता है।

नई दिल्ली, 6 अगस्त (आईएएनएस)। सुषमा स्वराज उस विदेश मंत्री का नाम जिन्होंने कमान थामते ही मंत्रालय की सूरत बदल कर रख दी। उनके मंत्री रहते ये विभाग आम भारतीय का विभाग कहलाने लगा। जितनी सहज थीं मंत्री जी उतनी ही काम को लेकर समर्पित और सख्त। चाहे वो पाकिस्तान की बोलने सुनने में लाचार गीता हो या फिर दुर्दांत आतंकियों के बीच फंसे भारतीयों की वतन वापसी करानी हो, उन्होंने सब तक पहुंच बनाई । ऐसी शख्सियत कि आज भी जब उनको याद करते हैं तो आंखें भर आती हैं और गर्व से भारत का सिर ऊंचा हो जाता है।

भारत के सियासी फलक पर अमिट छाप छोड़ने वाली सुषमा स्वराज का हर कोई मुरीद रहा। उनका 41 सालों का राजनीतिक जीवन तमाम उपलब्धियों से भरा था। सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता होने के साथ प्रखर वक्ता थीं। 6 अगस्त को ही सुषमा स्वराज का देहांत हुआ था। दिल्ली एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।

सुषमा स्वराज को समझना हो तो ट्विटर स्क्रॉल कर देख सकते हैं। यूक्रेन युद्ध के दौरान जब भारतीय छात्र फंसे थे तो उनका एक ट्वीट बहुत वायरल हुआ। जिसमें से एक में लिखा मिलेगा कि कोई भारतीय अगर मंगल ग्रह पर भी फंसा होगा तो विदेश मंत्रालय उसकी सकुशल वापसी कराएगा। ऑपरेशन राहत, ऑपरेशन संकटमोचक ऐसे बहुत सफल अभियान हैं जो सुषमा स्वराज की काबिलियत से हमें रूबरू कराते हैं। राजनीति के आकाश की तारा बन गईं इस जुझारू नेत्री से जुड़े कई किस्से हैं।

जितनी प्रोफेशनल थीं उतनी ही आम होम मेकर की तरह भी थीं। कौन भूल सकता है इनका करवा चौथ के दिन का भव्य आयोजन! जिसमें परंपरा और जड़ों से जुड़े रहने का अद्भुत उदाहरण था

स्वराज को भारत की प्रमुख महिला राजनीतिक नेताओं में गिना जाता था। शुरुआती दिनों में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य रहीं और जेपी आंदोलन के साथ आपातकाल के दौरान उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों की गहरी समझ ने उन्हें भारतीय और वैश्विक राजनीति का अहम चेहरा बना दिया। देश की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री, दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता से लेकर केंद्रीय मंत्री तक उनका सफर तमाम उतार-चढ़ाव से भरा रहा।

उनके नाम हरियाणा की सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री रहने का रिकॉर्ड है। वह देवीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार में मात्र 25 वर्ष की आयु में देश की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनी। वह दो कार्यकाल के लिए हरियाणा विधानसभा की विधायक रही थीं। इसके बाद 1979 हरियाणा जनता पार्टी की राज्य इकाई की चार सालों तक अध्यक्ष भी थीं।

1980 में सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुईं और उन्हें पार्टी का सचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने दो साल तक पार्टी के अखिल भारतीय सचिव का पद संभाला और पार्टी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई।

1990 में स्वराज को राज्यसभा का सदस्य चुना गया। इसके बाद 1996 अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली 13 दिन की भाजपा सरकार के दौरान उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया। सात बार सांसद रह चुकी सुषमा स्वराज का यह लोकसभा सदस्य के रूप में दूसरा कार्यकाल था।

1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई, तो वह एक बार फिर सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं। इसी बीच 1998 में कम समय के लिए दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री चुनी गई थीं। लगभग तीन महीने के उनके छोटे कार्यकाल के दौरान प्याज की बढ़ती कीमत को लेकर उनकी काफी आलोचना हुई थी।

1999 के लोकसभा चुनाव में स्वराज ने कर्नाटक के बेल्लारी से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह हार गईं, लेकिन उनका कद बढ़ गया। वाजपेयी सरकार के तीसरे कार्यकाल में 2003 से मई 2004 तक उन्होंने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री के साथ-साथ संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में भी कार्य किया।

2004 में यूपीए के सत्ता में आने पर सोनिया गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आ रहा था, जिसका सुषमा स्वराज ने जोरदार विरोध किया। उन्होंने कसम खाई कि अगर सोनिया गांधी शपथ लेती हैं तो वह अपना सिर मुंडवा लेंगी और अपना पूरा जीवन एक भिक्षुक की तरह बिताएंगी। उनका मानना था कि अगर आजादी के बाद कोई विदेशी देश का नेतृत्व करेगा तो यह समृद्ध लोकतांत्रिक परंपरा का अपमान होगा। हालांकि, सुषमा स्‍वराज को ऐसा कुछ नहीं करना पड़ा, क्‍योंकि सोनिया गांधी की जगह डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया।

उन्हें भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी का करीबी माना जाता था। स्वराज ने एक बार फिर इतिहास रच दिया जब वह अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी की जगह 2009 में विपक्ष की पहली महिला नेता बनीं। वह 2014 तक इस पद पर रही। 2014 में पहली बार मोदी सरकार बनने के बाद उन्हें विदेश मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। सात बार संसद सदस्य के रूप में चुनी गईं स्वराज इंदिरा गांधी के बाद भारत की दूसरी महिला विदेश मंत्री थी।

बतौर विदेश मंत्री 2015 में यमन में सऊदी गठबंधन सेना और हौथी विद्रोहियों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था। उस दौरान ऑपरेशन राहत चलाया और 5,000 भारतीयों की वतन वापसी सुनिश्चित की। ऐसे ही सबकी जुबान पर अब भी ऑपरेशन संकटमोचक का नाम रहता है। 2016 में दक्षिण सूडान के युद्ध में फंसे भारतीयों के लिए इसे चलाया गया और इसके तहत करीब 500 लोगों को भारत लाया गया था। ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि स्वराज विदेश में फंसे अपने देश के लोगों को लेकर कितनी फिक्रमंद रहती थीं।

विदेश मंत्री के पद पर रहने के दौरान उन्होंने भारत की कूटनीति का बेहतर संचालन करते हुए मानवीय व्यवहार की मिसाल कायम की। पांच सालों के अपने कार्यकाल के दौरान वो ट्विटर के जरिए हमेशा आम भारतीयों के साथ खड़ी दिखीं। भारत को कूटनीतिक स्तर पर मजबूती मिली। स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझते हुए 67 साल की उम्र में सुषमा स्वराज का निधन हो गया।

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Created On :   6 Aug 2024 8:55 AM IST

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