जज विवाद : इन बड़े फैसलों के लिए जाने जाते हैं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के इतिहास में पहली बार शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं। बता दें कि चीफ जस्टिस के कामकाज पर सवाल करने वाले जज दीपक मिश्रा वरीयता के मामले में दूसरे से पांचवे नंबर पर है। जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। इस दौरान जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा कि "सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।" उन्होंने बताया कि इस बात की शिकायत उन्होंने चीफ जस्टिस के सामने भी की, लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं मानी।
चीफ जस्टिस ने 3 अक्तूबर 2017 को 45वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली थी। उनका कार्यकाल 2 अक्टूबर 2018 तक है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अभी तक कई ऐतिहासिक किए हैं। बता दें कि चीफ जस्टिस ने निर्भया केस से याकूब मेमन के केस तक कई बड़े फैसले किए हैं। आइए आपको बताते हैं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी और उनके द्वारा लिए गए कुछ बड़े फैसले...
पहली बार SC के जजों की PC, "हम नहीं बोले तो लोकतंत्र हो जाएगा खत्म"
चीफ जस्टिस बनने का सफर
- जस्टिस दीपक मिश्रा का जन्म 3 अक्टूबर 1953 को हुआ था।
- 14 फरवरी 1977 में उन्होंने उड़ीसा हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की।
- 1996 में उड़ीसा हाई कोर्ट का अडिशनल जज बनाया गया।
- इसके बाद मध्यप्रदेश हाई कोर्ट उनका ट्रांसफर किया गया।
- 2009 के दिसंबर में पटना हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बने।
- 24 मई 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट में बतौर चीफ जस्टिस उनका ट्रांसफर हुआ।
- 10 अक्टूबर 2011 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।
- 3 अक्टूबर को 2017 को 45वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली।
जस्टिस दीपक मिश्रा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें
- दीपक मिश्रा के दादा गोदावरीश मिश्र थे।
- गोदावरीश मिश्र उड़ीसा के शिक्षा मंत्री थे।
- 1941 में उड़ीसा के शिक्षा मंत्री और वित्तमंत्री बने थे।
- 1937 से 1956 तक (एक बार छोड़कर) हर बार विधायक रहे।
- वे एक कवि और संपादक भी थे।
- महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर कांग्रेसी बने और 1939 मे सुभाष चंद्र बोस से जुड़े।
- जिसके बाद 1951 में निर्दलीय विधायक बने।
- उड़ीसा से तीसरे चीफ जस्टिस हैं दीपक मिश्रा।
- चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के चाचा देश के 21वें चीफ जस्टिस बने थे।
- 25 सितंबर 1990 से 24 नवंबर 1991 तक वे चीफ जस्टिस रहे।
कौन हैं वो 4 जज, जिन्होंने उठाए चीफ जस्टिस पर सवाल?
दिल्ली का निर्भया केस में फांसी की सजा
2012 का दिल झकझोर देने वाला केस, किसको याद ही होगा। केस के बाद हर किसी को कोर्ट के फैसले का इंतजार था। 5 मई 2016 को इस गैंगरेप में तीनों दोषियों की फांसी की सजा जस्टिस मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने ही बरकरार रखी थी।
सिनेमाहॉल में राष्ट्रगान का फैसला
सिनेमाहाल मे फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान का फैसला तो आपको याद होगा। 30 नवंबर 2016 को इसका फैसला जस्टिस दीपक मिश्रा ने ही सुनाया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस फैसले को बदल दिया है।
वेबसाइट पर 24 घंटे के अंदर दर्ज हो FIR
जस्टिस मिश्रा ने 7 सितंबर को एक फैसले में दिल्ली पुलिस को आदेश दिया कि, FIR दर्ज करने के 24 घंटे के अंदर उसे वेबसाइट पर अपलोड करें। जस्टिस सी नागप्पन उनके साथ इस फैसले मे बेंच पर थे।
याकूब मेमन की फांसी का फैसला
13 ब्लास्ट, 257 लोगों की मौत, 700 से ज्यादा लोग घायल। मुंबई 1993 ब्लास्ट। 23 साल बाद फैसला। याकूब को फांसी किसे याद नही होगी। इस फांसी के फैसले का निर्णय लेने वाली बेंच में भी जस्टिस दीपक मिश्रा ही थे। जिसके बाद उन्हे जान से मारने की भी धमकी मिली थी।
प्रमोशन में रिजर्वेशन
2012 के कांग्रेस सरकार के प्रमोशन में रिजर्वेशन के फैसले पर भी रोक लगाने वाले जज भी दीपक मिश्रा ही थे। सुनवाई में साथ दिया था जस्टिस दलवीर भंडारी ने। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया था। जिसमें कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण तभी दिया जा सकता है। जब जरूरतमंद की पहचान करने के लिए सभी जरूरी दस्तावेज मौजूद हो। सुप्रीम कोर्ट ने सभी जरूरी डेटा ना दे पाने के कारण ही यूपी सरकार के प्रमोशन में आरक्षण के फैसले को पलट दिया था।
अब अयोध्या विवाद पर कर रहे हैं सुनवाई
देश के प्रमुख विवादों में से एक अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद की सुनवाई में भी दीपक मिश्रा ही जज होंगें। गौरतलब हो कि हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को मामले में लखनऊ बेंच के तीन जजों ने मेजॉरिटी से फैसला दिया। फैसले के अनुसार विवादित जमीन को तीन भागों में बांट दिया जाए और सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला को इनका मालिकाना हक दे दिया जाए। इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दायर की गयी है जिसकी सुनवाई 11 अगस्त से शुरू हुई थी। इस मामले में पिछली सुनवाई 5 दिसंबर 2017 को हुई थी। इस मामले में अगली सुनवाई फरवरी 2018 को होनी है।
Created On :   12 Jan 2018 5:05 PM IST