हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा अटल ‌बिहारी वाजपेयी की 5 अमर कविताएं..

poems of Atal Bihari Vajpayee on 93rd birthday
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा अटल ‌बिहारी वाजपेयी की 5 अमर कविताएं..
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा अटल ‌बिहारी वाजपेयी की 5 अमर कविताएं..

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी 25 दिसंबर को 93 वर्ष के हो रहे हैं। उनका जन्म ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। एक सामान्य परिवार में जन्मे अटल जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से अपना राजनैतिक जीवन शुरू किया और वे दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन में कईं उपलब्धियां हासिल की। देश के महान राजनेताओं में शामिल अटल बिहारी वाजपेयी का कविता प्रेम भी जगजाहिर है। चुनावी रैली हो, संसद का मंच हो या कोई और सार्वजनिक मंच अटल जी ने इन कविताओं के माध्यम से हर बार जन समुह को अपनी ओर आकर्षित किया। यहां हम अटल जी की ऐसी ही पांच अमर कविताएं आपके लिए लाए हैं।

गीत नया गाता हूँ...

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर ,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कूक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं।
गीत नया गाता हूँ।
टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी?
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी।
हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।

आओ फिर से दिया जलाएं..


भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हरा,
अंतरतम का नेह निचोड़े, बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएं।

हम पड़ाव को समझें मंजिल,
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल,
वर्तमान के मोहजाल में, आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएं।

आहूति बाकी यज्ञ अधूरा, 
अपनों के विघ्नों ने घेरा,
अंतिम जय का वज्र बनाने, 
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

ठन गई! मौत से ठन गई... 


जूझने का मेरा इरादा न था, 
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई। 

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, 
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं। 

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, 
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं? 

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, 
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा। 

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, 
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर। 

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, 
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं। 

प्यार इतना परायों से मुझको मिला, 
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला। 

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, 
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए। 

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, 
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है 

पार पाने का क़ायम मगर हौसला, 
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते...

सत्य का संघर्ष सत्ता से
न्याय लड़ता निरंकुशता से
अंधेरे ने दी चुनौती है
किरण अंतिम अस्त होती है
 

दीप निष्ठा का लिये निष्कंप
वज्र टूटे या उठे भूकंप
यह बराबर का नहीं है युद्ध
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण
अंगद ने बढ़ाया चरण
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की मांग अस्वीकार

दांव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।

 
क़दम मिला कर चलना होगा..

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

 

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

Created On :   23 Dec 2017 5:58 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story