जानिए श्री शब्द का अर्थ एवं महत्व    

Know the  three important meanings and importance of the word sri
जानिए श्री शब्द का अर्थ एवं महत्व    
जानिए श्री शब्द का अर्थ एवं महत्व    

                                     
डिजिटल डेस्क ।
संस्कृत व्याकरण के मुताबिक "श्री" शब्द के तीन अर्थ होते हैं। शोभा, लक्ष्मी और कांति। तीनों ही प्रसंग और संदर्भ के मुताबिक अलग-अलग अर्थों में उपयोग होते हैं। श्री शब्द का सबसे पहले ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है। अनेक धर्म पुस्तकों में लिखा गया है कि "श्री" शक्ति है। जिस व्यक्ति में विकास करने की और खोज की शक्ति होती है, वो श्री युक्त माना जाता है। ईश्वर, महापुरुषों, वैज्ञानिकों, तत्ववेत्ताओं, धन्नासेठों, शब्द शिल्पियों और ऋषि-मुनियों के नाम के आगे "श्री" शब्द का लगभग उपयोग करने की परंपरा रही है। राम को जब श्रीराम कहा जाता है, तब राम शब्द में ईश्वरत्व का बोध होता है। इसी तरह श्रीकृष्ण, श्रीलक्ष्मी और श्रीविष्णु तथा श्री हरी के नाम में "श्री" शब्द उनके व्यक्तित्व, कार्य, महानता और अलौकिकता को प्रकट करता है। 

 

वर्तमान समय में अपने बड़ों के नाम के आगे "श्री" लगाना एक सामान्य शिष्टाचार है, लेकिन "श्री" शब्द इतना संकीर्ण नहीं है कि प्रत्येक नाम के आगे उसे लगाया जाए। सही में तो "श्री" पूरे ब्रह्मांड की प्राण-शक्ति है। ईश्वर ने सृष्टि रचना इसलिए की, क्योंकि ईश्वर श्री से ओतप्रोत है। परमात्मा को वेद में अनंत श्री वाला कहा गया है। मनुष्य अनंत-धर्मा नहीं है, इसलिए वह असंख्य श्री वाला तो नहीं हो सकता है, लेकिन पुरुषार्थ से ऐश्वर्य हासिल करके वह श्रीमान बन सकता है। सत्य तो यह है कि जो पुरुषार्थ नहीं करता, वह श्रीमान कहलाने का अधिकारी नहीं है। दुनिया में उत्पादन, निर्माण, संसाधन, शक्ति, बल, तेज और सेवा आदि जितने भी कार्य हैं, सभी में श्री की उपस्थिति रहती है। सूर्य ,चंद्रमा, धरती की गति, समयचक्र, प्राण-शक्ति और आत्मशक्ति में श्री का अस्तित्व है। प्रलय और सृष्टि, दोनों श्री के कारण से होते हैं। 

 

 

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श्री ऐसी अद्भुत शक्ति है जिसे सुर, असुर, मानव, किन्नर और सम्राट अपने तप बल से प्राप्त कर सकते हैं। परमात्मा में जो श्री-शक्ति है, वह साधारण श्री-शक्ति से एकदम अलग है।उसकी ये शक्ति ही दुर्गा के विभिन्न रूपों, सीता, पार्वती, रुक्मिणी, लक्ष्मी और देवयानी के रूप में अवतार लेती रही है। इनकी शक्ति का लोहा ब्रह्मा, विष्णु और महेश- ये त्रिदेव भी मानते रहे हैं। इसलिए जब-जब राक्षसों को हराने में देवता असफल साबित हुए, उन्होंने श्री को प्राप्त किया और तब कहीं जाकर वे दानवों को हरा पाए। आज भी दुनिया में श्री प्राप्त करने की होड़ लगी हुई है, परंतु उसका उपयोग सृजन और विध्वंस, दोनों में किया जा रहा है। विध्वंस में श्री का उपयोग समाज के पतन का द्योतक है। हमारे समाज में स्त्रियों के सम्मान का कम होना भी इसी बात का प्रतीक है कि श्री की उपेक्षा हो रही है। ध्यान रहे कि स्त्री की जितनी शक्तियां हैं, वे सभी श्री से ओत-प्रोत हैं। 

 

 

इसलिए जिस घर में स्त्री का सम्मान, आदर, सेवा और स्वागत किया जाता है, वह घर लक्ष्मीयुक्त और शोभायुक्त बन जाता है। समाज में आज चारों तरफ जो कलह, झगड़ा-फसाद, हिंसा और नफरत बड रही है। वह "श्री" का उचित सम्मान और सही उपयोग नही होने के कारण से है। देश व समाज में जो अनुचित समानता बढ़ रही है, उसके कारण भी श्री का ठीक वितरण न होना है।  इसलिए हर स्तर पर पवित्रता की आवश्यकता है। धन भी श्री की शक्ति है। यदि पवित्रता, श्रम और सच्चाई से यह नहीं प्राप्त किया जाएगा तो व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से दूषित होगा ही | 

 

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परिवार, समाज और देश का विकास भी हर स्तर पर रुकेगा। यदि हमारे सभी अंग, इंदियां, मन, बुद्धि और आत्मा स्वच्छ हैं, तो श्री हमारे विकास को उच्चतम शीर्ष प्रदान करेगी। इसलिए संध्यावंदन करते समय परमात्मा से सभी इंदियों और अंगों को स्वस्थ रखने और शक्ति देने की हम प्रार्थना करते हैं। हमारी विचार-शक्ति को पवित्रता, कांति और गहराई श्री की कृपा से ही संभव है। इसलिए हमारे कर्म, व्यवहार, चिंतन और साधना में सावधानी रहनी चाहिए। जो इन बातों का ध्यान रखता है, वह दुनिया में महापुरुष के रूप में पूजा जाता है। परमात्मा में श्री, ऐश्वर्य, धर्म, ज्ञान, यश और वैराग्य है, इसलिए वह सृष्टि की सर्वशक्तिमान सत्ता है। इस सत्ता को जो सम्मान और आदर देता है, वह भी दुनिया का आदर पाता है।

 

 

 

जहाँ तक संभव हो इसे स्वर्ण पर उकेरा जाना चाहिए। कुछ लोग चंद्रमा की अनुकूलता के लिए इसे चांदी पर भी उकेरने की सलाह देते है । श्री को कभी भी नाभि के नीचे के अंगों या कमर पर नहीं धारण करना चाहिए । इसे धारण करने का सर्वश्रेष्ठ अंग कंठ है। वेसे आप इसे दाहिने हाथ की किसी भी ऊँगली में भी धारण कर सकते है। 

 

 

श्रीं के लॉकेट को पुष्य नक्षत्र में बनाया और धारण किया जाना चाहिए | धन वृद्धि के लिए इससे उचित कुछ नहीं होता है | जो लोग आर्थिक द्रष्टि से बहुत परेशान है, उनके लिए यह उपाय रामबाण कहलाता है। स्वस्तिक का चिन्ह परम कल्याणी और अनुभवसिद्ध है। ये सभी वर्गों के लिए उपयोगी है। अध्यात्मिक और भौतिक किसी भी रूप में स्वस्तिक का लाभ लिया जा सकता है। ये भगवान् विष्णु का अनुपम शक्ति से ओत-प्रोत है। जिन लोगों के घरों में कलह का वातावरण है उन्हें अपनी चोखट और मुख्य द्वार दोनों पर एक-एक स्वस्तिक को हल्दी से बनाना चाहिए और फिर चमत्कार देखे लाभ और उन्नति होती प्रतीत होगी। 

 

 

Created On :   10 July 2018 1:06 PM IST

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