येरूशलम होगी इजरायल की राजधानी, जानें क्यों हैं इसको लेकर विवाद?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका के प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को व्हाइट हाउस से दिए अपने भाषण में येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता दे दी है। ट्रंप ने अपने इलेक्शन कैंपेन में भी इसका वादा किया था। इसके साथ ही प्रेसिडेंट ट्रंप ने अमेरिकी एंबेसी को जल्द से जल्द तेल अवीव से येरूशलम शिफ्ट करने के निर्देश भी दिए हैं। ट्रंप के इस फैसले से जहां इजरायल खुश है, तो वहीं दुनियाभर में उनके इस कदम की निंदा होनी भी शुरू हो गई है। अरब देशों समेत दुनिया के बाकी मुस्लिम देशों ने ट्रंप के इस कदम को "हिंसा भड़काने" वाला बताया है। येरूशलम हमेशा से विवादित जगह रही है और इसपर इजरायल और फिलिस्तीन दोनों ही देश अपना हक जताते रहे हैं। आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे विवाद की वजह, लेकिन उससे पहले जानते हैं ट्रंप ने क्या कहा था?
ट्रंप ने अपने भाषण में क्या कहा?
बुधवार को व्हाइट हाउस में अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने येरूशलम को इजरायल की राजधानी बनाया है। येरूशलम वो इलाका है, जिसपर इजरायल और फिलीस्तीन दोनों ही देश अपना दावा करते हैं। बुधवार को व्हाइट हाउस में दिए अपने भाषण में ट्रंप ने कहा कि "अब समय आ गया है कि येरूशलम को इजरायल की राजधानी बनाया जाए।" उन्होंने कहा कि "फिलीस्तीन से विवाद के बावजूद येरूशलम पर इजरायल का अधिकार है।" ट्रंप ने अपने इस कदम को शांति स्थापित करने वाला कदम बताते हुए कहा है कि "येरूशलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता देने में देरी की पॉलिसी शांति स्थापित नहीं कर पाई और इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।" ट्रंप ने ये भी कहा कि हम एक ऐसा समझौता चाहते हैं जो इजरायल और फिलीस्तीन दोनों के लिए बेहतर हो।
तीन धर्मों के लिए महत्वपूर्ण है ये जगह
येरूशलम वो जगह है, जिसपर इजरायल और उससे ही लगा फिलिस्तीन देश दोनों ही अपना-अपना हक जताते रहते हैं। इजरायल है तो यहूदियों का देश, लेकिन इसकी राजधानी येरूशलम यहूदियों के साथ-साथ मुस्लिम और ईसाईयों के लिए भी बहुत महत्व रखती है। येरूशलम में टेंपल माउंट है, जो यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है। वहीं अल-अक्सा मस्जिद को मुसलमान बेहद पाक मानते हैं। उनकी मान्यता है कि अल-अक्सा मस्जिद ही वो जगह है जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत पहुंचे थे। इसके अलावा कुछ ईसाइयों की मान्यता है कि येरूशलम में ही ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। यहां मौजूद सपुखर चर्च को ईसाई बहुत ही पवित्र मानते हैं। बताया ये भी जाता है कि यहां पर यहूदियों का पवित्र स्थल सुलेमानी मंदिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था।
इजरायल हमेशा से मानता रहा है राजधानी
1948 में इजरायल एक आजाद देश बना और इसके एक साल बाद येरूशलम का बंटवारा हो गया। येरूशलम पर इजरायल और फिलिस्तीन दोनों ही दावे करते रहे हैं। इसके बाद इजरायल ने करीब 6 दिनों तक फिलिस्तीनियों से लड़ने के बाद इस शहर पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद 1980 में इजरायल ने येरूशलम को अपनी राजधानी बनाने की घोषणा की, लेकिन यूनाइटेड नेशंस ने इस कब्जे की निंदा की। यही वजह है कि येरूशलम को कभी भी इजरायल की राजधानी के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली। वहीं फिलिस्तीन ने भी हमेशा से इस शहर को अपनी राजधानी बनाने की मांग करते आ रहे हैं।
क्यों है येरूशलम को लेकर विवाद?
दरअसल, येरूशलम इजरायल का बहुत बड़ा शहर है। इसके साथ ही ये इस्लाम, ईसाई और यहूदियों के लिए भी काफी अहम जगह है। इसी जगह पर यहूदियों का दुनिया में सबसे स्थान है, जबकि इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद ये तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। इसके साथ ईसाईयों की भी मान्यता है कि यहां पर जीजस क्राइस को सूली पर चढ़ाया गया था। येरूशलम के पूर्वी हिस्से में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, जबकि पश्चिमी हिस्सों में यहूदी आबादी रहती है। इसके साथ ही यहां मौजूद अल अक्सा मस्जिद में इजरायल 18-50 साल के लोगों को जाने से रोकता है, क्योंकि उसका मानना है कि ये लोग अक्सर यहां प्रदर्शन करते हैं।
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच क्यों है विवाद?
फिलिस्तीन एक अरब देश था और पहले वर्ल्ड वॉर के बाद यहां नई सरकार बनी। इसी के बाद से दुनियाभर के यहूदियों ने फिलिस्तीन में बसना शुरू कर दिया। शुरुआत में यहां पर यहूदियों की आबादी 30 फीसदी थी, जो अगले 30 सालों में बढ़कर 30 फीसदी तक पहुंच गई। इसके बाद यहूदियों ने अरब लोगों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी। इसके बाद ब्रिटेन ने यहूदियों के फिलिस्तीन जाने पर पाबंदी लगा दी। इसके बाद यहूदियों ने अपना एक अलग देश होने की मांग की। आखिरकार 1947 में यूनाइटेड नेशंस में एक रिजोल्यूशन पास किया गया, जिसके तहत इसे दो हिस्सों में बांट दिया गया। इसका एक हिस्सा अरब देश बना और दूसरा यहूदियों का राज्य- इजरायल बना। अलग होने के बाद से ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया। इसकी वजह थी येरूशलम। येरूशलम वो हिस्सा था, जहां यहूदी और मुसलमान दोनों रहते थे। इसलिए यूएन ने फैसला लिया कि येरूशलम को अंतर्राष्ट्रीय सरकार चलाएगी। येरूशलम के अलावा यहां की "गाजा पट्टी" भी हमेशा से दोनों देशों के बीच विवाद का कारण रही है।
अलग होने के बाद बढ़ा विवाद
अलग होने के बाद ही फिलिस्तीन और इजरायल के बीच असली जंग शुरू हुई। इसके बाद फिलिस्तीन की पीएलओ यानी पैलेस्टाइन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ने इजरायल के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी। इस लड़ाई में तकरीबन 100 यहूदियों को और 1000 अरब लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसी के बाद "हमास" जो इजरायल विरोधी आतंकवादी संगठन है, उसका जन्म हुआ। हालांकि वक्त के साथ-साथ पीएलओ तो इजरायल के समर्थन में आ गया लेकिन हमास ने इसे कभी देश नहीं माना। आखिरकार 1993 में दोनों देशों के बीच "ओस्लो समझौता" हुआ, जिसके तहत इजरायल को एक देश के तौर पर मान्यता दी गई और इजरायल ने भी पीएलओ को मान्यता दी। इससे पहले पीएलओ को भी आतंकी संगठन माना जाता था।
Created On :   8 Dec 2017 2:19 PM IST