प्राण प्रतिष्ठा समारोह: क्या है प्रायश्चित पूजा? जिसे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले किया जा रहा है, जानें इसके नियम
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- प्राण प्रतिष्ठा से पहले होती है प्राश्चित पूजा
- 121 पुरोहित कराते हैं पूर्ण
- अनुष्ठान के दौरान इन नियमों का रखना पड़ता है ध्यान
डिजिटल डेस्क, अयोध्या। अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अब एक सप्ताह से भी कम का समय बचा है। इसके लिए मंगलवार से राम मंदिर परिसर में विशेष अनुष्ठान भी शुरू हो चुका है। इस अनुष्ठान का शुभारंभ प्रायश्चित पूजा से हुआ। प्राण प्रतिष्ठा से पहले की जाने वाली ये महत्वपूर्ण पूजा आज सुबह साढ़े 9 बजे से शुरू होकर ढाई बजे तक करीब 5 घंटे चली। इस पूजा को 121 ब्राह्मणों ने संपन्न कराया। आखिर क्या होती है और क्यों होती है प्रायश्चित पूजा? आइए जानते हैं...
क्या है प्रायश्चित पूजा?
भगवान रामलला के प्राण प्रतिष्ठा से पहले की जाने वाली इस पूजा को प्रायश्चित पूजन का नाम दिया गया है। इस पूजन विधि में शारीरिक, आंतरिक, मानसिक और बाह्य इन तीनों तरीकों से प्रायश्चित करना शामिल है। कुछ धार्मिक विशेषज्ञों के अनुसार वाह्य प्रायश्चित के लिए यजमान को 10 विधि स्नान करना पड़ता है। जिसमें पंच द्रव्य के साथ कई प्रकार की औषधियां और भस्म समेत कई अन्य सामग्रियां के साथ स्नान कराया जाता है। इसके अलावा इस पूजन में एक गोदान और संकल्प प्रायश्चित भी होता है। गोदान प्रायश्चित में यजमान को गोदान के माध्यम से प्रायश्चित करना होता है। इसके अलावा कुछ द्रव्य दान से भी प्रायश्चित किया जाता है जिसमें स्वर्ण दान किया जाता है।
महत्व
प्रायश्चित पूजा का मतलब इस बात से है कि मूर्ति और मंदिर के निर्माण में जिस छेनी और हथौड़ी का इस्तेमाल किया जाता है उसका प्रायश्चित किया जाता है। प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा इसके बाद ही कराई जाती है। प्रायश्चित पूजा की मूल भावना यही है कि यजमान से जाने अनजाने में जो भी पाप हुए हों उनका प्रायश्चित किया जाए। धार्मिक जानकारों के मुताबिक, हम लोग अक्सर कई ऐसी गलतियां कर देतें हैं जिसका हमें अंदाजा भी नहीं होता। इसलिए शुध्दिकरण करने की बहुत आवश्यकता होती है। यही कारण है प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व प्रायश्चित पूजा का महत्व बढ़ जाता है।
कौन करता है प्रायश्चित पूजा?
हिंदू धर्म और सनातन परंपरा में किसी भी शुभ या मांगलिक काम करने के लिए यज्ञ और अनुष्ठान कराने की परंपरा है। और इन्हें कराने के लिए यजमान को ही बैठना होता है। इसलिए प्रायश्चित पूजा भी यजमान को ही करनी पड़ती है, पंडित तो केवल एक माध्यम होते हैं जो मंत्र आदि का जाप करते हैं। बता दें कि किसी पावन कार्य को करने के लिए जो अनुष्ठान कराया जाता है तो उसका पालन करने के लिए यजमान को 12 नियमों का पालन करना पड़ता है। ये नियम हैं - भूमि में सोना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, मौनव्रत रखना, गुरु की सेवा करना, त्रिकाल स्नान करना, किसी भी प्रकार का कोई पाप न करना, शुद्ध आहार ग्रहण करना, अनुष्ठान के दौरान रोज दान करना, स्वाध्याय, नैमित्तिक पूजा, इष्ट गुरु में विश्वाश करना और भगवान का नामजप करना।
Created On :   16 Jan 2024 9:45 PM IST