खट्टर का बड़ा एलान: दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदला, अब बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाएगा जाना, मनोहर लाल खट्टर ने की बड़ी घोषणा

दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदला, अब बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाएगा जाना, मनोहर लाल खट्टर ने की बड़ी घोषणा
  • मोदी सरकार में एक बार फिर बदला जगह का नाम
  • सराय काले खां चौक अब 'बिरसा मुंडा चौक'
  • अमित शाह ने किया लोगों को संबोधित

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली के सराय काले खां आईएसबीटी चौक के नाम को बदल दिया गया है। केंद्र ने शुक्रवार (15 नवंबर) को इस चौक को नया नाम 'बिरसा मुंडा चौक' दिया है। इस बात का एलान केंद्रीय शहरी मामलों के मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मनोहर लाल खट्टर ने किया है। बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर खट्टर ने कहा- मैं एलान करता हूं कि आईएसबीटी बस स्टैंड के पास जो बड़ा चौक है उनका नाम भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर रखा जाता है। उन्होंने आगे कहा कि- ऐसा इसलिए किया जा रहा है जिससे दिल्ली के साथ-साथ पूरे देश के लोग इस प्रतिमा से अपनी पूरी जिंदगी प्रेरणा ले सकेंगे।

शाह ने किया लोगों को संबोधित

बिरसा मुंडा के 150वें जयंती के मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के बांसेरा उद्यान में उनकी प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में हिस्सा लिया। गृह मंत्री ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा- जब सरकार मन में जन कल्याण का उद्देश्य लेकर निकलती है तो जैसे सराय काले खां का विकास किया गया है, ये पार्क इसका उदाहरण है। झारखंड में सिद्धों कानो का या बिरसा मुंडा हो, राजस्थान का आंदोलन, महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना में इन सब जगह आदिवासियों के नेत्रित्व में आंदोलन चला। पूर्वोत्तर में नागा, खासी में आदिवासी आंदोलन चला, लेकिन दुर्भाग्य से इनका नाम भुला दिया गया।

अमित शाम ने आगे कहा- लेकिन मोदी सरकार 2014 से ये काम कर रही है और आदिवासियों से जुड़े तीन संग्रहालयों का निर्माण किया गया है। 2026 से पहले ये तीन संग्रहालय जनता के लिए खुलेंगे। 75 साल में पहली बार किसी आदिवासी को राष्ट्रपति बनने का मौका मोदी सरकार ने किया है।

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1875 में हुआ था बिरसा मुंडा का जन्म

आपको बता दें कि, बिरसा मुंडा का जन्म झारखंड के खूंटी जिले में साल 1875 में हुआ था। मुंडा 19वीं सदी के दिग्गज आदिवासी नेता थे। साथ ही, वह झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) थे। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के लिए ब्रिटिश सरकार से लड़ाई लड़ी थी। वह केवल 25 की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

Created On :   15 Nov 2024 7:00 AM GMT

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