12 राज्यों में अभी तक लोकायुक्त को अपॉइंट क्यों नहीं किया गया : SC ने पूछा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को लोकायुक्त को अपॉइंट नहीं करने पर राज्य सरकारों को फटकार लगाई है। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आर भानुमति की बेंच ने 12 राज्यों के चीफ सेक्रेटरी को नोटिस भेजकर पूछा है कि अभी तक राज्यों में लोकायुक्त को अपॉइंट क्यों नहीं किया गया? इस बारे में उनसे 2 हफ्ते के अंदर जवाब देने को कहा गया है। दरअसल, बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फाइल कर कहा है कि जनवरी 2014 में लोकायुक्त एक्ट को लागू कर दिया गया है, लेकिन अभी तक कई राज्यों में लोकायुक्त को अपॉइंट नहीं किया गया। इसी पिटीशन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सभी 12 राज्यों से 2 हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की पिटीशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आर भानुमति की बेंच ने 12 राज्यों के चीफ सेक्रेटरी को नोटिस भेजा है। कोर्ट ने नोटिस भेजकर पूछा है कि अभी तक राज्यों में लोकायुक्त को अपॉइंट क्यों नहीं किया गया, इसका कारण बताया जाए। इसके साथ ही ये भी पूछा है कि लोकायुक्त को अपॉइंट करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है? कोर्ट ने सभी सरकारों को 2 हफ्ते के अंदर जवाब देने को कहा है।
किन राज्यों को भेजा गया है नोटिस?
सुप्रीम कोर्ट ने जिन 12 राज्यों को नोटिस भेजा है, उनमें अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, दिल्ली, मिजोरम, नागालैंड, पुडुचेरी, तमिलनाडु का नाम शामिल है। इनके अलावा वेस्ट बंगाल, तेलंगाना और त्रिपुरा के चीफ सेक्रेटरी को भी नोटिस भेजा गया है। बता दें कि इन सभी राज्यों में अभी तक न ही लोकायुक्त को अपॉइंट किया गया है और न ही उपलोकायुक्त को अपॉइंट किया गया है।
आधार बेहद सुरक्षित, सुपर कंप्यूटर भी हैक नहीं कर सकते इसे : UIDAI
पिटीशन में क्या की गई है मांग?
दिल्ली बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की तरफ से फाइल की गई पिटीशन में कहा गया है कि "लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट-2013 के सेक्शन-63 के तहत हर राज्य को एक बॉडी बनानी होगी, जिसे लोकायुक्त के नाम से जाना जाएगा। इस एक्ट को 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी और 16 जनवरी 2014 से ये लागू हो गया था। मगर अभी तक सरकारों ने लोकपाल की नियुक्ति नहीं की है।" पिटीशन में ये भी कहा गया है कि "कुछ राज्य सरकारों जरूरी बुनियादी ढांचा, बजट और मैनपॉवर उपलब्ध नहीं कराकर लोकायुक्त को कमजोर बना रही है।" इस पिटीशन में उन्होंने मांग की है कि सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया जाए कि वो अपने यहां लोकायुक्त को जरूरी बुनियादी ढांचा और बजट उपलब्ध कराए।
क्या होता है लोकपाल और लोकायुक्त?
लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट को 17 दिसंबर 2011 को लोकसभा में पास किया गया था, इसके बाद इसे दिसंबर 2013 में राज्यसभा में पास किया गया। इस एक्ट को 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी। जिसके बाद हर राज्य में एक लोकायुक्त को अपॉइंट करना जरूरी है, जबकि इन सबके ऊपर भी एक बॉडी होगी, जिसे लोकपाल के नाम से जाना जाएगा। लोकपाल के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस या रिटायर जज होते हैं, वहीं लोकायुक्त के अध्यक्ष हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस या रिटायर्ड जज होते हैं। लोकपाल को प्रधानमंत्री अपॉइंट करते हैं, जबकि लोकायुक्त को मुख्यमंत्री की तरफ से अपॉइंट किया जाता है। लोकपाल और लोकायुक्त में 8 मेंबर्स होते हैं। लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट को भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था।
SC/ST एक्ट के तहत नहीं हो सकेगी तत्काल गिरफ्तारी, अग्रिम जमानत भी मिलेगी
क्या होता है लोकायुक्त?
लोकायुक्त में एक अध्यक्ष होता है, जो राज्य हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस या रिटायर्ड चीफ जस्टिस या हाईकोर्ट के रिटायर जज हो सकते हैं। लोकायुक्त में ज्यादा से ज्यादा 8 मेंबर्स ही हो सकते हैं, जिनमें से आधे ज्यूडिशियल बैकग्राउंड वाले होने चाहिए। इसके अलावा कम से कम आधे मेंबर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होना चाहिए।
कैसे होते हैं लोकायुक्त अपॉइंट?
लोकायुक्त एक्ट के तहत हर राज्य लोकायुक्त का गठन करना जरूरी है। इसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री अपॉइंट करता है। जबकि विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा में विपक्ष के नेता, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और राज्यपाल इसके मेंबर्स को अपॉइंट करते हैं।
क्या होते हैं लोकायुक्त के अधिकार?
लोकायुक्त सिर्फ भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की ही जांच कर सकता है या करवा सकता है।
- ऐसा मामला जिसमें वर्तमान मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री का नाम शामिल हो।
- ऐसा मामला जिसमें राज्य सरकार का वर्तमान मंत्री या पूर्व मंत्री का नाम शामिल हो।
- ऐसा मामला जिसमें विधानसभा का कोई मेंबर यानी विधायक शामिल हो।
- ऐसा मामला जिसमें राज्य सरकार के अधिकारी या कर्मचारी शामिल हो।
- अगर किसी इंस्टीट्यूट, बोर्ड, कॉर्पोरेशन, अथॉरटी, कंपनी, सोसायटी या ट्रस्ट का गठन संसद या राज्य सरकार ने कानून पास करके किया हो और उसमें काम करने वाले किसी कर्मचारी या अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, तो उसकी जांच लोकायुक्त कर सकता है।
- अगर लोकायुक्त को लगता है कि कोई डॉक्यूमेंट किसी जांच से संबंधित है, तो वो किसी भी जांच एजेंसी को आदेश दे सकता है कि वो उसकी जांच करें।
- इसके अलावा लोकायुक्त के पास किसी मामले में जांच एजेंसी की मदद लेने या उसे निर्देश देने का अधिकार है।
Created On :   23 March 2018 1:41 PM IST