सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'सिनेमाघरों में राष्ट्रगान नहीं गाना देशविरोधी नहीं'
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे राष्ट्रगान के मामले में सुप्रीम कोर्ट बैकफुट पर आ गया है। सोमवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि किसी को देशभक्ति दिखाने के लिए सिनेमाघर में राष्ट्रगान के समय खड़े होने और गाने की जरूरत नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में सरकार से कहा कि अगर उनको लगता है ये जरूरी है तो केंद्र सरकार के पास अधिकार है वो इस पर कानून बना सकते हैं। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट अपने कंधे पर बंदूक रखकर किसी को चलाने की अनुमति नहीं दे सकता। हालांकि फिलहाल कोर्ट ने अपने पूर्व आदेश में बदलाव नहीं किया है और सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाने और उस दौरान दर्शकों के खड़े होकर सम्मान प्रकट करने का आदेश फिलहाल लागू रहेगा।
"मॉरल पुलिसिंग को बंद किया जाना जरूरी"
मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा, जस्टीस एएम खानविलकर और जस्टीस धनंजय वाय चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि "समाज को मॉरल पुलिसिंग यानि नैतिक पहरेदारी की आवश्यकता नहीं है"। जरूरी नहीं कि जो हाथ पर पट्टा बांध कर घूमें उसी को देशभक्त माना जाए। अभी सरकार का कहना है कि जो राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं होता वो कम देशभक्त है तो हो सकता है कि अगली बार सरकार सिनेमाघरों में शॉट्स जैसे विदेशी परिधान पर एतराज जताना शुरू करे। अगर सरकार को लगता है कि कुछ बदलना चाहिए तो खुद जिम्मेदारी उठाए और फ्लैग कोड में बदलाव करे।
इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पहुंचे अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि विभिन्नताओं वाले भारत देश में सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के आदेश से राष्ट्रीय एकता की भावना प्रबल होती है। इस पर पीठ के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में नियम क्यों नहीं संशोधित करती। न्यायाल ही क्यों सरकार का भार वहन करे। लोग सिनेमाघर मनोरंजन के लिए जाते हैं उन्हें वहां बिना रोक-टोक मनोरंजन मिलना चाहिए।
May नहीं Shall में तब्दील हो सकता है पूर्व आदेश
पीठ ने ये भी संकेत दिया है कि 1 दिसंबर 2016 को मूवी हॉल में फिल्म शुरु होने से पहले राष्ट्रगान बजाने के आदेश में भी बदलाव हो सकता है और उसे अनिवार्य से स्व-निर्णय में तब्दील किया जा सकता है। पीठ का कहना है कि लोग अपने मनोरंजन के लिए मूवी हॉल जाते हैं, समाज को जोड़ने के लिए ये मनोरंजन भी जरूरी है। ऐसे में इस पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध लगाने की आवश्यक्ता नहीं है। पीठ ने कहा, अपेक्षा करना एक बात है लेकिन इसे अनिवार्य बनाना एकदम अलग बात है। लोगों को जबरदस्ती देशभक्त नहीं बनाया जा सकता और न ही इन सभी चीजों से किसी की देशभक्ति साबित की जा सकती है।
राष्ट्रभक्ति के इस मामले में 9 जनवरी 2018 को फिर सुनवाई होगी । वहीं 2016 के कोर्ट के आदेश में बदलाव की मांग कर रहे केरल फिल्म सोसायटी के लोगों का कहना है कि इस मामले में कोर्ट को दखल देने की आवश्यकता ही नहीं है। ये सरकार के अधीन है और इसमें 2005 में नियम भी बन चुके हैं।
Created On :   24 Oct 2017 9:14 AM IST