कश्मीर को हिंसा में झोंकने वालों को अंत भी हुआ बुरा

Those who threw Kashmir into violence also had a bad end
कश्मीर को हिंसा में झोंकने वालों को अंत भी हुआ बुरा
नई दिल्ली कश्मीर को हिंसा में झोंकने वालों को अंत भी हुआ बुरा
हाईलाइट
  • कुदरती न्याय

डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। कश्मीर में 1989 के अंत और 1990 की शुरूआत में स्थानीय हिंदुओं पर कहर बनकर टूटे आतंकवादियों ने न सिर्फ अपने परिवार के साथ अन्याय किया बल्कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज भी दबा दी।

क्रूरता की सभी हदों को पार करके नरसंहार को अंजाम देने वाले इन अपराधियों में से अधिकांश को कुदरती न्याय का सामना करना पड़ा। कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की शुरूआत खुद को जेकेएलएफ के नेता कहने वाले सशस्त्र आतंकवादियों ने की थी। इसी जेकेएलएफ के हाजी समूह में हामिद शेख, अशफाक मजीद, जावेद मीर और यासीन मलिक शामिल थे। 20 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या करने की बात कबूल करने वाला बिटा कराटे जेकेएलएफ का ही सदस्य था।

बिटा कराटे ने अपने कबूलनामे में कहा है कि वह अपने प्रमुख अशफाक मजीद के आदेशों का पालन कर रहा था। अशफाक मजीद ही उन पंडितों की पहचान करता था, जिनकी हत्या बिटा को करनी होती थी। कराटे ने कुछ पंडितों को भारतीय खुफिया एजेंसी के तथाकथित एजेंट के नाम से मार डाला, तो कुछ की हत्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी का सदस्य होने के कारण की गयी। कराटे पर भारतीय वायुसेना के अधिकारियों की हत्या का मुकदमा चल रहा है। उसे एनआईए ने गिरफ्तार किया था और वह हिरासत में है। हामिद शेख को सुरक्षा बलों ने 20 नवंबर 1992 को श्रीनगर के अली कदल इलाके में मार गिराया था।

बिटा को हत्या का आदेश देने वाला अशफाक माजिद 30 मार्च 1990 को सुरक्षा बलों को निशाना बनाकर ग्रेनेड हमला करते समय मारा गया। दरअसल वह ग्रेनेड उसके ही हाथ में विस्फोट कर गया था। जावेद मीर को सीबीआई ने यासीन मलिक के साथ 18 अक्टूबर 2019 को गिरफ्तार किया था। उसे 1990 में भारतीय वायु सेना के अधिकारियों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। जावेद मीर को जावेद नलका कहा जाता था क्योंकि वह पहले पीएचई विभाग में एक फिटर के रूप में काम करता था। जावेद मीर को सीबीआई अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया था। यासीन मलिक अब भी दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है और वह भारतीय वायुसेना के चार अधिकारियों की हत्या के मुकदमे का सामना कर रहा है।

स्थानीय जमात-ए-इस्लामी की सशस्त्र शाखा हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम) के पास कश्मीर पंडित हत्यारों का अपना ब्रांड था। काफिरों का सफाया उनके धार्मिक विश्वास की महत्वपूर्ण शर्त थी। कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण हल निकालने की पैरवी करने वाले मीरवाइज मोहम्मद फारूक का हत्यारा मोहम्मद अब्दुल्ला बांगरू था। ऐसा माना जाता कि मीरवाइज के अलावा बांगरू ने कुछ स्थानीय पंडितों की भी हत्या की थी। बांगरू को 1992 में श्रीनगर के बरजुला इलाके में सुरक्षाबलों ने मार गिराया था।

कश्मीरी पंडितों के उत्पीड़न के लिये जिम्मेदार एक अन्य आतंकवादी समूह इखवान-उल-मुसलमीन के प्रमुख हिलाल बेग को 19 जुलाई 1996 को श्रीनगर के शाल्टेंग इलाके में सुरक्षाबलों ने मार गिराया था। मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता हृदय नाथ वांचू की हत्या के आरोप में कट्टरपंथी महिला समूह दुख्तरन-ए-मिलत की प्रमुख आसिया अंद्राबी के पति आशिक हुसैन फकटू को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी है। दिसंबर 1992 में एच एन वांचू की हत्या कर दी गयी थी।

संक्षेप में कहें तो स्थानीय पंडितों के अधिकांश हत्यारे या तो सुरक्षा बलों द्वारा मारे गये हैं या विभिन्न न्यायालयों में अपनी सजा का इंतजार कर रहे हैं। भाग्य का फैसला पहले ही लिखा जा चुका है। आप किसी निर्दोष की हत्या करके न्याय से बचने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। जो तलवार के बल पर जीते हैं, वे उसी के वार से मरते हैं।

 

 (आईएएनएस)

Created On :   20 March 2022 3:00 PM IST

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