सुप्रीम कोर्ट ने लिंचिंग से जुड़ी एफआईआर पर यूपी सरकार से मांगा जवाब, गवाहों को सुरक्षा के आदेश

Supreme Court seeks reply from UP government on FIR related to lynching, orders for protection of witnesses
सुप्रीम कोर्ट ने लिंचिंग से जुड़ी एफआईआर पर यूपी सरकार से मांगा जवाब, गवाहों को सुरक्षा के आदेश
लखीमपुर खीरी हिंसा सुप्रीम कोर्ट ने लिंचिंग से जुड़ी एफआईआर पर यूपी सरकार से मांगा जवाब, गवाहों को सुरक्षा के आदेश

 डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को लखीमपुर खीरी हिंसा में दूसरी प्राथमिकी की जांच पर उत्तर प्रदेश पुलिस से एक अलग रिपोर्ट मांगी, जिसमें एक पत्रकार सहित चार लोग मारे गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराने का भी आदेश दिया। इस मामले में एक मृतक की विधवा ने शीर्ष अदालत को बताया कि उसके पति के हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।

श्याम सुंदर की विधवा रूबी देवी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि तीन आरोपी, जो कथित रूप से उनके पति की मौत के लिए जिम्मेदार हैं, पुलिस ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। भारद्वाज ने कहा, आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं और उनके मुवक्किल को धमका रहे हैं। घटना में मारे गए पत्रकार का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अन्य वकील ने भी कोर्ट से पुलिस के जरिए आरोपी को पकड़ने का निर्देश देने का अनुरोध किया।

पीठ ने निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश द्वारा श्याम सुंदर नाम के एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या करने के मामले में अलग-अलग जवाब दायर किया जाना चाहिए, जिस पर किसानों के विरोध में कार के रौंदने के बाद कथित तौर पर हमला किया गया था और पत्रकार रमन कश्यप की हत्या भी की गई थी। सुंदर के मामले में, उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने प्रस्तुत किया कि वह एक आरोपी था जो इस घटना में मारा गया था। पुलिस कार में मौजूद पत्रकार की मौत के साथ-साथ इसकी जांच भी कर रही है।

मुख्य न्यायाधीश ने साल्वे से मामले में अलग से जवाब दाखिल करने को कहा। पीठ ने कहा कि अदालत के समक्ष दो शिकायतकर्ता हैं- एक रूबी देवी द्वारा और दूसरी पत्रकार की मौत के संबंध में। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई आठ नवंबर को तय करते हुए कहा, राज्य इस मामले में अलग-अलग जवाब दाखिल करे। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने मामले में सबूत जमा करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए मामले में डिजिटल साक्ष्य की जांच करने वाली फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की भी मांग की।

पीठ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि 4,000-5,000 लोगों की भीड़ में से केवल 23 लोग ही इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं, जहां एक कार ने तमाम किसानों को विरोध के दौरान रौंद दिया। साल्वे ने शुरू में कहा कि 68 में से तीस गवाहों ने 164 सीआरपीसी के तहत अपने बयान दर्ज किए हैं। इनमें से 23 प्रत्यक्षदर्शी हैं। प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया कि जिस मामले में किसानों का विरोध प्रदर्शन चल रहा था उस रैली में सैकड़ों किसान थे और वहां केवल 23 लोग थे?

साल्वे ने आगे तर्क दिया कि एक व्यक्ति भी था जो घटना की वीडियोग्राफी कर रहा था। डिजिटल साक्ष्य को प्रयोगशालाओं में भेजा जाएगा ताकि उन्हें मामले में सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सके। मामले में कुछ चश्मदीदों के पक्ष में, न्यायमूर्ति कांत ने बताया कि ज्यादातर स्थानीय लोग मौके पर थे और घटना के बाद उनमें से ज्यादातर जांच के लिए विरोध कर रहे हैं। उन्होंने साल्वे से कहा कि वाहन में ऐसे व्यक्तियों की पहुंच और पहचान एक बड़ा मुद्दा नहीं होना चाहिए।

साल्वे ने जवाब दिया कि सीलबंद लिफाफे में 164 बयान शीर्ष अदालत में जमा किए जा सकते हैं और कहा कि 16 आरोपियों की पहचान कर ली गई है। पीठ ने अपने आदेश में कहा, गवाहों की सुरक्षा के संबंध में, हम गवाहों को राज्य द्वारा सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देते हैं। हम आगे निर्देश देते हैं कि 164 बयान तेजी से दर्ज किए जाएं। शीर्ष अदालत ने लखीमपुर खीरी हिंसा में सीबीआई से जांच की मांग करने वाले दो वकीलों के पत्र के आधार पर एक याचिका दर्ज की थी। इस घटना में चार किसानों और एक स्थानीय पत्रकार सहित कुल आठ लोग मारे गए थे, इसके अलावा दो भाजपा के लोग और उनके ड्राइवर की मौत हो गई थी। केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा की एक कार ने किसानों को कथित तौर पर कुचल दिया।

 

(आईएएनएस)

Created On :   26 Oct 2021 2:30 PM IST

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