देश में इंड्स्ट्री बन गई है शिक्षा- जानिए सुप्रीम कोर्ट की इस बात के क्या हैं मायने, यूक्रेन में मेडिकल पढ़ाई के उदाहरण से समझना होगा आसान

Supreme Court asked the Center to open pharmacy colleges
देश में इंड्स्ट्री बन गई है शिक्षा- जानिए सुप्रीम कोर्ट की इस बात के क्या हैं मायने, यूक्रेन में मेडिकल पढ़ाई के उदाहरण से समझना होगा आसान
शिक्षा पर सुप्रीम चिंता देश में इंड्स्ट्री बन गई है शिक्षा- जानिए सुप्रीम कोर्ट की इस बात के क्या हैं मायने, यूक्रेन में मेडिकल पढ़ाई के उदाहरण से समझना होगा आसान

डिजिटल डेस्क नई दिल्ली, राजा वर्मा। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा को लेकर कई सवाल उठाते हुए कहा कि शिक्षा देश में एक इंडस्ट्री बन गयी है। जिस वजह से देश में मेडिकल एजुकेशन का खर्च यहां के ही छात्र नहीं उठा पा रहे है। और उनको यूक्रेन जैसे देशों में जाना पड़ रहा है।  बता दें सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए ये बातें कही। कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि देश में फार्मेसी कॉलेज खोलने की परमिशन दिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी सख्त लहजे में कहा कि फार्मेसी कॉलेजों ने देश में उद्घोग का रूप ले रहे है। जिस पर रोक लगनी चाहिए।  बता दें उच्च अदालत ने इस मामले पर फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया को इसलिए यह बात कही क्योंकि सरकार 2019 से नए फार्मेसी कॉलेज बनाने पर रोक लगा दी गई थी। 

केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और हिमा कोहली ने शिक्षा पर सवाल उठाते हुए कहा कि हर कोई जानता है कि शिक्षा देश में एक उद्योग बन गई है। जिन्हें बड़े कारोबारी समूह संचालित करते हैं। जिसके बारे में सोचना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल एजुकेशन की कीमत बहुत आधिक होने की वजह से ही देश के छात्रों को यूक्रेन जैसे देश जाना पड़ रहा है। उन्होंने आगे कहा कि हम छात्रों की आर्जियों को समझते है, लेकिन कॉलेज एक इंडस्ट्री बन गए हैं। 
 
वहीं सरकार की ओर से  सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए तुषार मेहता ने कहा कि इस तरह के कॉलेजों की संख्या बढ़ रही है। इसीलिए 5 साल के लिए हमने रोक लगाई थी।  मेहता ने कोर्ट में यह भी कहा कि इंजीनियरिंग कॉलेजों को किस तरह से शॉपिंग सेंटर्स की तरह चलाया जा रहा है अदालत जानती है।देश में 2500 कॉलेज पहले से ही मौजूद है। जिस पर अदालत ने अपनी सहमति जताते हुए कहा कि हम भी कॉलेजों की संख्या बढ़ने देना चाहते है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया से हम आग्रह करते है कि वह आवेदकों की कॉलेजों की मांग पर विचार करे। 

सवाल उठना लाजमी है

बता दें यूक्रेन और अन्य देशों से एमबीबीएस करने के लिए जाने को मजबूर छात्रों के लिए पहले भी कई लोगों ने सरकार पर सवाल खड़ा किया था। लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच आरंभ हुए युद्ध के बाद से देश में फिर से इस मामले  ने तूल पकड़ लिया है। जिसमें सरकार पर सवाल किये जा रहे है।

 यूक्रेन जैसे कई देशों में भारतीय छात्रों के जाने के पीछे की वजह केवल पैसा ही नहीं और भी कई कारण शामिल है। हालांकि विदेशों में मेडिकल की डिग्री लेकर देश वापस आने वाले छात्रों में से कुछ ही छात्र ऐसे है जो भारत में होने वाली नेशनल मेडिकल कमीशन के फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन की परीक्षा में पास हो पाते हैं। 
नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन के चार साल के रिजल्ट देखने में पता चलता है कि लगभग 70 फीसदी छात्र तो इस टेस्ट में फेल हो जाते हैं। 

 

                                                                                          

विदेश जाने की मुख्य वजह 

देश में एमबीबीएस की सीमित सीटें 
देश में एमबीबीएस करने के पहले छात्रों को NEET की परीक्षा देनी होती है। इस परीक्षा में लाखों छात्र हिस्सा लेते है।जिसके बाद कटऑफ लिस्ट जारी की जाती है। लेकिन कटऑफ लिस्ट में आने वाले कई छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी जगह नहीं मिल पाती है। 

देश में मेडिकल की महंगी है पढ़ाई 
बता दें देश में करीब डीम्ड यूनिवर्सिटीज और मेडिकल कॉलेजों में लगभग 60 हजार सीटें है। इन संस्थानों में  पांच साल के एमबीबीएस  कोर्स की फीस लगभग 90 लाख से 1.50 करोड़ तक होती है। यानि कि सालाना 18 लाख से लेकर 30 लाख रूपए तक फीस देना होता है। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जिनको जगह नहीं मिल पाती है उनमें से ज्यादातर छात्रों के लिए प्रायवेट कॉलेजों में लगने वाली फीस काफी ज्यादा होती है।  

यूक्रेन जैसे देश करवाते हैं कम खर्च पर एमबीबीएस 
सरकारी कॉलेजों में सीट नहीं मिल पाने और प्रायवेट कॉलेजों की फीस भरने में असमर्थ छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश चले जाते है। भारत से विदेश जाने वाले छात्रों के लिए केवल यूक्रेन ही नहीं रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान,फिलीपींस ,बांग्लादेश पसंदीदा देशों में शामिल है। इन देशों में भारत की तुलना में काफी कम  खर्चे में एमबीबीएस की पढ़ाई हो जाती है। बांग्लादेश में डॉक्टर बनने का खर्च 25 से 40लाख वहीं फिलीपींस में MBBS कोर्स का खर्च 35 लाख रूपए तक आता है। जिसमें वहां के हॉस्टल का खर्च भी पूरा हो जाता है। 

कई छात्रों को गुमराह कर विदेश पहुंता देते है दलाल
देश में होने वाली नीट की परीक्षा में कई छात्र कुछ ही नंबर कम आने के कारण सरकारी कॉलेज में एडमिशन नहीं ले पाते है। ऐसे छात्रों के लिए आने बर्ष में फिर से अच्छे नंबर लाकर सरकारी मेडिकल में एडमिशन पाने का अवसर भी रहता है। कई छात्र कुछ समय ठहर कर इस बारे में निर्णय लेना चाहते तो है लेकिन उन छात्रों को पढ़ाई करने के लिए विदेश जाने के लिए कुछ दलाल विदेश जाने के लिए  प्रेरित करते है। छात्रों को उनको द्वारा बताया जाता है कि विदेश में कम पैसे  देने होगें और पढ़ाई के बाद नौकरी का जॉब पाना भी आसान है। 


 

Created On :   31 May 2022 9:24 PM IST

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