मथुरा: कोर्ट ने मंजूर की श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका, शाही मस्जिद की जमीन समेत 13.37 एकड़ इलाके पर दावा; 18 नवंबर को होगी सुनवाई
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- प्रतिवादियों को जारी होंगे नोटिस
- सिविल कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
डिजिटल डेस्क, मथुरा। अयोध्या में रामजन्मभूमि में मंदिर निर्माण की तैयारियों के बीच मथुरा में भी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। यहां पर कृष्ण जन्मभूमि पर मालिकाना हक के लिए श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से जिला जज की अदालत में शुक्रवार को अपील की गई थी। न्यायालय में अपील को स्वीकार किया गया। इस मामले में अगली सुनवाई 18 नवंबर 2020 को होगी।
पिछले दिनों सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के बीच 1968 में हुए समझौते को रद्द कर मस्जिद को हटाने तथा सारी जमीन श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपने की मांग की गई थी। 30 सितंबर को सुनवाई के बाद सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत ने ये कहकर दावा खारिज कर दिया था कि भक्तों को दावा दायर करने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हमारी अपील को स्वीकार कर लिया गया है। जिला जज ने जितने भी विपक्षी थे, उन्हें नोटिस जारी किया है। मजिस्द पक्ष को जवाब देना है।
इससे पहले मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन के स्वामित्व और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग को लेकर अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री सहित छह अन्य की ओर से सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में जमीन को लेकर 1968 में हुए समझौते को गलत बताया गया था। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 30 सितंबर को याचिका को खारिज कर दिया था। मामले को लेकर मथुरा की सिविल जज कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, लेकिन वहां से याचिका खारिज कर दी गई थी। जिसके बाद हिंदू पक्ष ने जिला जज की कोर्ट में अपील दाखिल की।
प्रतिवादियों को जारी होंगे नोटिस
डीजीसी शिवराम तरकर ने बताया कि श्रीकृष्ण विराजमान की अपील को स्वीकार करते हुए जिला अदालत ने सुनवाई के लिए अगली तारीख 18 नवंबर तय की है। इस मामले में प्रतिवादी बनाए गए यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड चेयरमैन, शाही ईदगाह कमेटी ट्रस्ट के प्रबंधक, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट मथुरा और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव को नोटिस जारी किए जाएंगे।
क्या है विवाद और 1968 में क्या समझौता हुआ था?
1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया था। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं। इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें (मुस्लिम पक्ष को) उसके बदले पास की जगह दे दी गई। श्रीकृष्ण जन्मभूमि व शाही ईदगाह मस्जिद 13.37 एकड़ में बनी हुई है। इसमें 10.50 एकड़ भूमि पर वर्तमान में श्रीकृष्ण विराजमान का कब्जा है। लेकिन, याचिकाकर्ता ने पूरी जमीन पर मालिकाना हक मांगा है।
Created On :   16 Oct 2020 6:52 PM IST