Bhushan Contempt Case: SC ने सुरक्षित रखा फैसला, जस्टिस मिश्रा ने पूछा- अगर आपने किसी को तकलीफ पहुंचाई है तो माफी मांगने में क्या हर्ज?

SC reserves verdict on quantum of sentence to be given to Prashant Bhushan
Bhushan Contempt Case: SC ने सुरक्षित रखा फैसला, जस्टिस मिश्रा ने पूछा- अगर आपने किसी को तकलीफ पहुंचाई है तो माफी मांगने में क्या हर्ज?
Bhushan Contempt Case: SC ने सुरक्षित रखा फैसला, जस्टिस मिश्रा ने पूछा- अगर आपने किसी को तकलीफ पहुंचाई है तो माफी मांगने में क्या हर्ज?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। भूषण ने माफी मांगने को लेकर लिखित में एक बयान जमा किया है और अपने ट्वीट की मंशा सही बताई है। अब सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि इसे स्वीकार किया जा सकता है या नहीं? जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। 

क्या हुआ सुनवाई में?
मंगलवार को सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भूषण को चेतावनी देकर छोड़ देना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशांत भूषण का ट्वीट अनुचित था। इस पर बेंच ने अटॉर्नी जनरल से पूछा, भूषण को चेतावनी देने का क्या फायदा, जो सोचते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है? वेणुगोपाल ने जवाब दिया कि उनकी प्रतिक्रिया पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने  जोर देकर कहा कि भूषण दोबारा ऐसा नहीं करेंगे। इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा, उन्हें खुद ये कहने दें।

कोर्ट ने कहा कि अगर वकील न्यायपालिका में लोगों के भरोसे को गिराने वाले बयान देंगे तो लोग कोर्ट क्यों आएंगे? हम लोग भी पहले वकील थे। आपसे अलग नहीं हैं। आलोचना का स्वागत है, लेकिन लोगों के विश्वास को डिगाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। हर बात पर मीडिया में जाना सही नहीं। गरिमा का ख्याल रखना चाहिए। जस्टिस अरुण मिश्रा ने पूछा- अगर आपने किसी को तकलीफ पहुंचाई है तो माफी मांगने में क्या हर्ज है? आपने अपने बयान में महात्मा गांधी की बात कही लेकिन माफी मांगने को तैयार नहीं हुए।

क्या है मामला?
बता दें कि प्रशांत भूषण ने SC और चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े के खिलाफ ट्वीट किया था। प्रशांत भूषण ने 27 जून को अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ और दूसरा ट्वीट चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े के खिलाफ किया था। प्रशांत भूषण ने अपने पहले ट्वीट में लिखा था कि जब भावी इतिहासकार देखेंगे कि कैसे पिछले छह साल में बिना किसी औपचारिक इमरजेंसी के भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा चुका है, वो इस विनाश में विशेष तौर पर सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी पर सवाल उठाएंगे और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को लेकर पूछेंगे। 

दूसरा ट्वीट
दूसरा ट्वीट उन्होंने 29 जून को चीफ जस्टिस बोबड़े के खिलाफ किया था। प्रशांत भूषण ने कहा था, भारत के चीफ़ जस्टिस ऐसे वक़्त में राज भवन, नागपुर में एक बीजेपी नेता की 50 लाख की मोटरसाइकिल पर बिना मास्क या हेलमेट पहने सवारी करते हैं जब वे सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन में रखकर नागरिकों को इंसाफ़ पाने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित कर रहे हैं।

छह महीने तक की जेल की सजा का प्रावधान
कंटेम्ट ऑफ़ कोर्ट्स ऐक्ट, 1971 के तहत छह महीने तक की जेल की सज़ा जुर्माने के साथ या इसके बगैर भी हो सकती है। इसी क़ानून में ये भी प्रावधान है कि अभियुक्त के माफ़ी मांगने पर अदालत चाहे तो उसे माफ़ कर सकती है। बेंच ने इस मामले में प्रशांत भूषण को 22 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट का बचाव करते हुए कहा था कि उनके ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते।

Created On :   25 Aug 2020 6:39 PM IST

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