पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बोले- यह विचार करने का समय, आगे का रास्ता 1991 के संकट की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण

Road ahead is more daunting than 1991 crisis says Manmohan Singh
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बोले- यह विचार करने का समय, आगे का रास्ता 1991 के संकट की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बोले- यह विचार करने का समय, आगे का रास्ता 1991 के संकट की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण
हाईलाइट
  • डॉ. मनमोहन सिंह की चेतावनी
  • पूर्व PM बोले- देश की इकोनॉमी के लिए 1991 से भी मुश्किल वक्त आ रहा
  • ये खुश होने का नहीं
  • विचार करने का समय

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को कहा कि कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए हालात के मद्देनजर आगे का रास्ता 1991 के आर्थिक संकट की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में एक राष्ट्र के तौर पर भारत को अपनी प्राथमिकताओं को फिर से निर्धारित करना होगा। आर्थिक उदारीकरण की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक बयान में, उन्होंने कहा कि आज ही के दिन 30 साल पहले 1991 में कांग्रेस ने भारत की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सुधारों की शुरूआत की और देश की आर्थिक नीति के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया।

सिंह ने कहा कि पिछले तीन दशकों के दौरान विभिन्न सरकारों ने इस मार्ग का अनुसरण किया और देश की अर्थव्यवस्था तीन हजार अरब डॉलर की हो गई और यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। मनमोहन सिंह ने कहा कि वह सौभाग्यशाली हैं कि उन्होंने कांग्रेस में कई साथियों के साथ मिलकर सुधारों की इस प्रक्रिया में भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, इससे मुझे बहुत खुशी और गर्व की अनुभूति होती है कि पिछले तीन दशकों में हमारे देश ने शानदार आर्थिक प्रगति की, मगर मैं कोविड के कारण हुई तबाही और करोड़ों नौकरियां जाने से बहुत दुखी हूं।

उन्होंने कहा, स्वास्थ्य और शिक्षा के सामाजिक क्षेत्र पीछे छूट गए और यह हमारी आर्थिक प्रगति की गति के साथ नहीं चल पाया। इतनी सारी जिंदगियां और जीविका गई हैं, जो कि नहीं होना चाहिए था। सिंह ने कहा, यह आनंदित और मग्न होने का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और विचार करने का समय है। आगे का रास्ता 1991 के संकट की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। एक राष्ट्र के तौर पर हमारी प्राथमिकताओं को फिर से निर्धारित करने की आवश्यकता है, ताकि हर भारतीय के लिए स्वस्थ और गरिमामयी जीवन सुनिश्चित हो सके।

1991 में वित्त मंत्री के रूप में पुराने दिनों को याद करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, 1991 में मैंने एक वित्त मंत्री के तौर पर विक्टर ह्यूगो के कथन का उल्लेख किया था कि पृथ्वी पर कोई शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती है, जिसका समय आ चुका है। 30 साल बाद, एक राष्ट्र के तौर पर हमें रॉबर्ट फ्रॉस्ट की उस कविता को याद रखना है कि हमें अपने वादों को पूरा करने और मीलों का सफर तय करने के बाद ही आराम फरमाना है।

उन्होंने यह भी कहा कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस अवधि में करीब 30 करोड़ भारतीय नागरिक गरीबी से बाहर निकले और करोड़ों नई नौकरियां प्रदान की गई।

सिंह ने कहा, सुधारों की प्रक्रिया आगे बढ़ने से स्वतंत्र उपक्रमों की भावना शुरू हुई जिसका परिणाम यह है कि भारत में कई विश्व स्तरीय कंपनियां अस्तित्व में आईं और भारत कई क्षेत्रों में वैश्विक ताकत बनकर उभरा। 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत उस आर्थिक संकट की वजह से हुई थी, जिसने हमारे देश को घेर रखा था, लेकिन यह सिर्फ संकट प्रबंधन तक सीमित नहीं था।

मनमोहन सिंह ने कहा, भारत के आर्थिक सुधारों की इमारत समृद्धि की इच्छा, अपनी क्षमताओं में विश्वास और अर्थव्यवस्था पर सरकार के नियंत्रण को छोड़ने के भरोसे की बुनियाद पर खड़ी हुई।

Created On :   24 July 2021 12:23 AM IST

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