क्या वाकई समय से पहले या एक साथ चुनाव करा सकती है सरकार? 

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क्या वाकई समय से पहले या एक साथ चुनाव करा सकती है सरकार? 
क्या वाकई समय से पहले या एक साथ चुनाव करा सकती है सरकार? 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार ये कह चुके हैं कि एक देश में एक ही बार चुनाव होने चाहिए। यानी कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ। बजट सेशन की शुरुआत में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी अपने अभिभाषण में "एक देश-एक चुनाव" की बात पर जोर दिया था। इसके पीछे सरकार का तर्क है कि अगर एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो पैसे की काफी बचत होगी। इसके साथ ही कुछ दिनों से ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार मोदी सरकार समय से पहले लोकसभा चुनाव करा सकती है। तो ऐसे में उठते हैं कि क्या वाकई मोदी सरकार समय से पहले चुनाव करा सकती है? या फिर देश में एक साथ चुनाव कराना संभव है या नहीं?


जल्दी चुनाव कराने के लिए बेताब है सरकार? 

ऐसा माना जा रहा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव भी करा लिए जाएं। पीएम मोदी एक साथ चुनाव कराने के लिए बेताब तो दिख रहे हैं और अपनी इस बेताबी को देश के हित से जोड़ देते हैं। हालांकि, इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर देश में एक साथ चुनाव होते हैं, तो पैसों की काफी बचत होगी। सब जानते हैं कि चुनावों में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है, लेकिन अगर साथ चुनाव होंगे, तो इस खर्चे को थोड़ा कम जरूर किया जा सकता है। लेकिन, एक साथ चुनाव कराने की बात को कहने और करने में काफी अंतर है। एक साथ चुनाव कराने किसी रिस्क से कम नहीं है और ऐसे रिस्क को लेने का जिम्मा शायद ही कोई उठाए। हालांकि, ऐसा भी माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव को जल्दी कराने की बजाय इन तीनों राज्यों के चुनावों को अप्रैल-मई 2019 तक खिसका लिया जाए।

 

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सरकार क्यों चाहती है जल्दी चुनाव कराना? 

मोदी सरकार एक साथ और जल्दी चुनाव करने के लिए बेताब तो दिख रही है और ऐसे कयास भी लगाए जा रहे हैं कि इस बार चुनावों को जल्दी कराया जा सकता है। ऐसे में सवाल उठाता है, आखिर क्यों? तो इसका कारण है कि 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी की सीटों में कमी आई है। भले ही पार्टी ने एक के बाद एक कई राज्यों में सरकार बनाई, लेकिन उसके वोट शेयर में कमी आई है। हाल ही में गुजरात में विधानसभा हुए, जो पीएम मोदी का गढ़ माना जाता है। गुजरात में बीजेपी पहली बार 100 सीटों के अंदर सिमटी और उसके वोट शेयर में भी कमी आई। इसके साथ ही जानकारों का भी ये मानना है कि मोदी की जो लहर 2014 में थी, वो अब नहीं है। इसका मतलब मोदी अपनी लोकप्रियता खोते जा रहे हैं। इसके अलावा बेरोजगारी, किसान, ग्रामीण अर्थव्यवस्था जैसे कई मुद्दे सरकार की दिक्कतें भी बढ़ा रही हैं। ऐसे में अगर इस बार चुनाव समय से पहले हो भी जाएं, तो कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगा। क्योंकि पीएम मोदी "चौंकाने की कला" बखूबी जानते हैं।

एक देश में एक चुनाव क्या वाकई संभव है? 

एक देश-एक चुनाव का आईडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है और वो कई बार अपने इस आईडिए का जिक्र कर चुके हैं। पीएम मोदी कई रैलियों में कह चुके हैं कि देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होने चाहिए, क्योंकि इससे पैसे की बचत होगी। हालांकि, इसके पीछे जानकारों का मानना है कि पीएम मोदी का ये आईडिया आर्थिक से ज्यादा राजनैतिक है और राजनीति में कोई भी चीज बिना फायदे के नहीं की जाती। इसके अलावा मोदी के इस आईडिए को पूरा करने के लिए सबसे जरूरी चीज जो है, वो है "सहमति।" एक साथ लोकसभा-विधानसभा चुनाव कराने के लिए सभी राजनैतिक दलों की सहमति जरूरी है। इसके साथ ही अगर मोदी सरकार एक साथ चुनाव कराना चाहती है तो संविधान में संशोधन करना होगा।

क्या अपने फायदे के लिए "पकौड़े पर सियासत" कर रही है बीजेपी?

एक साथ चुनाव होने से फायदे में रहेगी सरकार? 

अगर विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इससे मोदी सरकार को फायदा निश्चित तौर पर होगा। इसकी कई वजहें भी हैं। पहली वजह तो ये कि अगर समय से पहले चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इससे विपक्ष को एकजुट होने का समय नहीं मिलेगा। इसके साथ ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और तीनों ही राज्यों में जनता राज्य सरकार से नाराज है, लेकिन मोदी सरकार से खुश दिखाई पड़ती है। ऐसे में अगर साथ चुनाव होते हैं, तो मोदी के नाम पर विधानसभा चुनावों में वोट हासिल किए जा सकते हैं। अगर साथ चुनाव नहीं होते हैं, तो विधानसभा चुनावों में बीजेपी को एंटी-इनकंबैंसी फैक्टर का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा 2019 के आम चुनावों के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भी चुनाव होने हैं और यहां भी हालात उतने बेहतर नहीं है, जितने माने जा रहे हैं। ऐसे में इन अटकलों को काफी हद तक जोर मिलता है कि मोदी सरकार इस बार चुनाव एक साथ ही करा सकती है।

 

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वाजपेयी की गलती से सबक लेगी मोदी सरकार? 

समय से पहले चुनाव करवाना किसी रिस्क से कम नहीं है और इस रिस्क में खतरा भी ज्यादा है। 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे और अगले चुनाव अक्टूबर 2004 में होने थे। 2003 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी थी। इस जीत से वाजपेयी सरकार इतनी खुश हुई कि उसने दिसंबर 2003 में ही लोकसभा चुनाव करवा दिए। इसका नतीजा ये हुआ कि बीजेपी चुनाव हार गई। अब ऐसे में देखने वाली बात ये होगी कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी की तरह रिस्क लेते हैं या फिर उनकी गलती से सबक लेते हैं।

Created On :   7 Feb 2018 11:28 AM IST

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