सुलगते दंगे के बीच जान से हाथ धोते लोग- देश के उन दंगों को याद कर आज भी कांप जाती है लोगों के रूह, जानिए देश में हुए दंगों का काला इतिहास
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। इस साल रामनवमी के मौके पर देश के अलग-अलग राज्यों से दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प की खबर सामने आई। पश्चिम बंगाल और बिहार में दो समुदायों के बीच दंगों का हॉटस्पॉट बना हुआ है। पश्चिम बंगाल में सोमवार को भी हिंसक झड़प की घटना सामने आई। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर बीजेपी के ओर से सियासी हमले किए जा रहे हैं और राज्य में भी सियासत भी खूब सुलग रही है।
इधर, बिहार कई जगहों पर बम ब्लास्ट, आगजनी जैसी घटनाएं भी हुईं। इस लेकर बिहार में सियासत तेज है। देश के तीन राज्यों में कम से कम पांच जगहों पर स्थिति बेहद तनावपूर्ण देखने को मिली। बिहार में एक की जान भी गई। इन राज्यों में यह हिंसा रामनवमी के दिन या फिर उसके एक दिन बाद हुई। रामनवमी के दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि 'देश के लोग यह संकल्प क्यों नहीं लेते है कि वो दूसरे समुदायों के प्रति सहिष्णुतापूर्ण रवैया अपनाएंगे।' लेकिन दंगाइयों को यह बात सुनाई दी और एक बार फिर देश दंगों की आग में झुलस उठा।
राजधानी दिल्ली में रामनवमी के दिन हिंसा
प्रशासन के मना करने के बावजूद भी दिल्ली के जंहागीपुरी में रामनवमी के दिन शोभायात्रा निकाली गई। नतीजन यहां पर हिंसा भड़की। शायद पुलिस को इस बात का पहले से अंदाजा हो गया था कि यदि इस क्षेत्र में रामनवमी के दिन शोभायात्रा निकाली जाएगी तो यहां विवाद हो सकता है और यहां पर ठीक ऐसा ही हुआ। हिंसा के दौरान दोनों पक्षों की ओर से कुछ लोगों को छतों से पत्थर बरसाते हुए देखा गया। रामनवमी के दिन दो पक्षों में हिंसा की गुंज राजधानी दिल्ली के अलावा पश्चिम बंगाल में भी सुनाई दी। बीजेपी ने इसके पीछे ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया।
बिहार में भी हुआ सांप्रदायिक तनाव
रामनवमी के एक दिन बाद बिहार के सासाराम और बिहारशरीफ में भी स्थिति आउट ऑफ कंट्रोल हो गई थी। बिहारशरीफ में रामनवमी के जुलूस के दौरान पथराव हुआ था। जिसके बाद घटना ने सांप्रदायिक के रूप ले लिया। हमले के दौरान दो लोगों को गोली लगी और पथराव की वजह से तीन लोग जख्मी हुए थे। ठीक ऐसा ही मामला बिहार के रोहतास के सासाराम शहर में भी देखने को मिला। यहां रामनवमी के बाद दो बार ब्लास्ट हुए। जिसमें पहले विस्फोट में एक और दूसरे में छह लोग घायल हो गए।
त्योहारों के दौरान क्यों होता है सांप्रदायिक तनाव?
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह सभी हिंसक दंगे रामनवमी और रमजान के मौके पर हुए। कुछ हद तक दिल्ली में शोभायात्रा के दौरान सतर्कता बरती गई लेकिन यही सर्तकता बंगाल, गुजरात और बिहार जैसे राज्यों में नहीं देखने का मिला। हिंसा से कई लोग आहत हुए। हालांकि गौर करने वाली बात यह भी है कि जब भी हिस्सा होती है तो गलती दोनों समुदायों की होती है। इसका सीधा उदाहरण है साल 1997 में रामनवमी के दौरान जमशेदपुर में हुआ दंगा।
रामनवमी के मौके पर अब तक का सबसे बड़ा दंगा
साल 1979 में जमशेदपुर में रामनवमी के अवसर पर आंकड़ों के हिसाब से भारत का पहला सबसे बड़ा दंगा हुआ था। इस दौरान 108 लोगों की मौत हुई थी। जिसमें 79 मुस्लिम और 25 हिंदू मारे गए थे। रिपोट्स के अनुसार, आरएसएस ने 1978 में दिमनाबस्ती नामक एक आदिवासी इलाके से रामनवमी जुलूस निकालने की योजना बनाई थी। इस इलाके के बगल में साबिरनगर एक मुस्लिम क्षेत्र था। आधिकारियों के मना करने के बावजूद भी आरएसएस ने पूरे एक तक इस इस मुद्दे पर अभियान चलाया। इस दौरान आरएसएस की ओर से कहा गया था कि हमें अपने ही देश में स्वतंत्र रूप से जुलूस निकालने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है।
धीरे-धीरे दोनों समुदायों में तनाव बढ़ा और शहर का माहौल खराब होने लगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मार्च 1979 में आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने जमशेदपुर का दौरा किया और ध्रुवीकरण को लेकर भाषण दिया। जिससे इलाकों में स्थिति और खराब हो गई। एबीपी न्यूज़ के मुताबिक, श्री रामनवमी केंद्रीय अखाड़ा समिति नामक एक संगठन ने 7 अप्रैल 1979 में एक पर्चा जारी करते सांप्रदायिक हिंसा की घोषणा की थी। जिसके बाद जुलूस निकला। मुस्लिम पक्ष भी अपनी तरफ से पलटवार के लिए पूरी तरह से तैयार था। पत्थरबाजी हुई और हिंसा भड़क गया। हिंसा के दस दिन बाद ही बिहार में कर्पूरी ठाकुर की सरकार गिर गई।
सिख विरोधी दंगे-1984
भारत में दंगों का इतिहास काफी बड़ा है। 31 अक्टूबर 1984 का दिन उन्हीं काले दिनों में से एक है। उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही सिक्योरिटी गार्ड्स ने उनकी हत्या कर दी। घटना के 24 घंटे बाद ही इसकी धमक पूरे देश में सुनाई देने लगी। लोगों का गुस्सा फूटा और देश के अलग-अलग राज्यों में दंगे भड़क उठे। इस दौरान सिख समुदायों को निशाना बनाकर उन्हें बेरहमी से मारा गया। कई जगहों पर सिखों के घरों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। दंगों के दौरान कुल 410 लोग मारे गए। वहीं घायलों की सख्या 1,180 थीं।
मेरठ सांप्रदायिक दंगा
मई 1987 को मेरठ शहर में एक दिन के अंतराल में दो बार दंगे हुए। पहले 22 मई को हाशिमपुरा में दंगा हुए और फिर अगले दिन मलियाना के होली चौक पर सांप्रदायिक दंगा भड़का। दंगे की चिगारी से पूरा शहर झुलस उठा था। अकले मलियाना में दंगाइयों ने 63 लोगों की हत्या कर दी थीं। इस बड़ी घटना में सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। यह हिंसा अप्रैल 1987 में शबे-बरात के दिन मेरठ से शुरू हुई और रुक-रुक कर दो-तीन महीनों तक चलती रही। इलाके में कई बार कर्फ्यू भी लगाया गया लेकिन हालात काबू से बाहर ही बने रहे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 23 मई 1987 की दोपहर करीब 2 बज कर 30 मिनट पर पीएसी की 44वीं बटालियन के कमांडेंट और मेरठ के वरिष्ठ पुलिस आधिकारियों की टीम भारी पुलिस बल के साथ मलियाना के घटनास्थल पर पहुंचे और वहां पर स्थिति को कंट्रोल करने के लिए गोलियां चलाई। 24 मई को मेरठ के जिलाधिकारी ने हिंसा में मरने वाले लोगों की सख्या 12 बताई। वहीं जुन 1987 में आधिकारिक रूप से 15 लोगों की मौत की पुष्टि की गई। कई शवों को कुएं से निकाले गए। इस दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादूर सिंह और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी बाद में दंगा पीड़ितों से मिलने पहुंचे थे। जिसके बाद वीर बहादुर सिंह ने मलियाना दंगा मामले में न्यायिक जांच की घोषणा की थी।
भागलपुर दंगा-1989
साल 1989 में बिहार के भागलपुर जिले के 18 प्रखंडों के 194 गावों के ग्यारह सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे। इस हिंसा से पूरा देश दहल उठा था। दंगे में लाशों का अंबार लग गया था। इन इलाकों में हर जगह चीख पुकार मचने की आवाज सुनाई दे रही थी। कई लोग एक झटके में अपने पूरे परिवार को खो दिए। यह दंगा बिहार के सबसे बड़े दंगों में से एक है। बिहार में दंगों की बात हो और इस दंगों को याद नहीं किया जाए ऐसा हो नहीं सकता है। सरकारी दस्तावेज के मुताबिक ये दंगा दो महीने से ज्यादा चला था। रिपोर्ट्स के मुताबिक सामाजिक कार्यकर्ताओं और दंगा पीड़ितों का कहना था कि इन इलाकों में लगभग छह महीनों तक दंगे होते रहे थे। 2005 में बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बनी। जिसके बाद तुंरत बाद नीतीश कुमार ने न्यायमूर्ति एनएन सिंह से नेतृत्व में एक जांच आयोग का गठन किया। 2013 के लोकसभा चुनाव से सीएम नीतीश ने 384 दंगा प्रभावित परिवारों के लिए पेंशन को दोगुना कर दिया।
बता दें कि एनएन सिंह समिति की रिपोर्ट में 125 आईएएस और आईपीएस आधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई थी। यह वहीं समय था जब मामले की दोषी कांग्रेस सरकार को ठहराया गया था। इस दंगों को इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि भागलपुर के ग्रामीण इलाकों मे इस तरह की घटना इससे पहले कभी नहीं हुई थी। इस मामले में अदालत ने 346 लोगों को सजा सुनाई। इनमें 128 लोगों को उम्र कैद और बाकी लोगों को 10 साल की सजा मिली। पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स में 1996 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भागलपुर जिले में सांप्रदायिक हिंसा के इतिहास में 1924, 1936, 1946 और 1967 का जिक्र किया है।
गोधरा कांड-2002
27 फरवरी 2002 को काले दिन के रूप में याद किया जाता है। इस दिन गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S6 में 23 पुरुष और 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 लोगों को जला दिए गए थे। उस दौरान गुजरात के सहायक महानिर्देशक जे महापात्रा ने कहा था कि दंगाईयों ने ट्रेन के गोधरा पहुंचने से काफी पहले से पेट्रोल से लेस थे। साथ ये सभी लोग पूरी तैयारी करके आए थे।
इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे देखने को मिले थे। साबरमती एक्सप्रेस की आग में कारसेवकों की मौत के बाद पूरे गुजरात में जगह-जगह पर हिंदू-मुस्लिम पक्ष के लोग आमने-सामने आ गए। इस वक्त यहां की स्थिति बेहद तनावपूर्ण थी। इस दौरान राज्य में आगजनी, बम बिस्फोट, पथराव की घटना आम बात हो गई थी।
अलीगढ़ दंगा-2006
5 अप्रैल 2006 के दौरान रामनवमी के मौके पर एक बार फिर हिंदु और मुसलमान समुदाय के बीच हिंसक झड़प देखने को मिली थी। इस घटना में भी पांच लोग मारे गए थे।
Created On :   4 April 2023 5:57 PM GMT