कोरोना टेस्ट करने पर साइंटिस्टों की अलग अलग राय, नाक की बजाए मुंह से सेंपल लेने पर जोर, ये बताए जा रहे फायदे
- मुंह के जरिए सैंपल लेना कहीं ज्यादा सही साबित होगा।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विश्व भर में कोरोना के केस तेजी से बढ़ रहे है। वहीं भारत में कोरोना के केस 24 घंटों के अंदर ही 2.50 लाख के पार हो चुके हैं। भारत और अमेरिका सहित कई देश अभी कोरोना की लहर का सामना कर रहे हैं। कोरोना से बचाव के लिए सेनिटाईजर मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को ही कारगार उपाय माना जा रहा है। वहीं अब कोरोना वायरस टेस्टिंग की मेथड को लेकर भी बहस हो रही है । साथ ही इसके तरीके को लेकर भी कहा जा रहा है कि इसमें बदलाव करने की आवश्यकता है।
कई रिसर्च में दावा किया जा रहा है, कि नाक की जगह अगर मुंह से लिए गए सेम्पल का उपयोग किया जाएगा तो कोरोना जल्द पकड़ में आ सकता है। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए कहा जा रहा है, कि इसकी ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करनी चाहिए। जिससे कोरोना पॉजिटिव आए मरीजों को जल्द ही आईसोलेट कर इलाज शुरु कर दिया जाएगा। अब इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि टेस्टिंग के लिए नाक का सेम्पल लेना सही है या फिर गले से लिया जाए जो जल्द और सही रिपोर्ट दे सके आखिर कौन सा तरीका होगा बेहतर ? दरअसल कुछ रिसर्च में यह कहा गया है कि नाक से लिए गए स्वैब की तुलना में, लार (saliva) या मुंह के भीतर से लिए गए स्वैब लें तो यह पहले संक्रमण का पता लगाने में कामयाब होगा।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड के श्वसन संबंधी वायरस मामलों के विशेषज्ञ डॉ. डोनाल्ड मिल्टन ने बताया है कि रेसपिरेटरी इन्फेक्शंस का पता लगाने के लिए पारंपरिक तरीका अपनाया जाता है। जो नाक के जरिए पूरा किया जाता है। लेकिन कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए इस तरीके पर सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि मुंह के जरिए सैंपल लेना कहीं ज्यादा सही साबित होगा।
वैसे तो साइंटिस्टों ने कोरोना महामारी शुरू होने के कुछ महीने बाद ही इसकी सलाइवा टेस्टिंग पर काम करना शुरू कर दिया था। साइंटिस्ट नाक के भीतर से स्वाब लेने की तुलना में ज्यादा सरल टेस्टिंग मेथड चाहते थे, जिसमें ज्यादा प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की आवश्यकता न पड़े। और सलाइवा के केस में लोग आराम से सैंपल लेकर ट्यूब में भरकर टेस्टिंग के लिए दे सकते हैं।
मुंह के जरिए सैंपल लेने वाली मैथड को लेकर संशय की बात करने वाले लोग भी यह स्वीकार कर रहे है, इस तरह से लिए गए नमूनों के कुछ अलग फायदे भी हैं।
इसको लेकर येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में माइक्रोबायलॉजिस्ट एनी विले ने कहा कि हमको कुछ बातों को स्वीकार करना होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि मैंने देखा है कि कई लैब और सरकारें एक ही तरह के सैंपल टाइप और कुछ अन्य डेस्ट को लेकर अडिग दिखाई दे रही है। जबकि अब स्थिति बदल रही है।
इस टेस्ट को लेकर मिनिसोटा में हेनेपिन काउंटी मेडिकल सेंटर के लैब एक्सपर्ट ग्लेन हैनसन कहते हैं कि सलाइवा अगर बेहतर नहीं तो अच्छा काम तो करता है। वह कहते है कि हां अगर इसकी अच्छी तरह से जांच की जाए। तो हमें इस बात के भी सबूत मिले हैं, कि वायरस को नाक से पहले सलाइवा में देखा जा सकता है। इस प्रक्रिया में इसके सैंपल से पॉजिटिव लोगों की पहचान बहुत पहले हो सकती है। जो संक्रमण दर को कम कर सकती है। आपको बता दें कि FDA ने कुछ सलाइवा बेस्ड पीसीआर टेस्ट को मंजूरी दे दी है। जो स्कूल के छात्रों के बीच काफी बेहतर साबित हो रहा है।
Created On :   15 Jan 2022 5:25 PM IST