जन्मदिन विशेष: महात्मा गांधी के इन आंदोलनों ने बदल डाली थी भारत की तस्वीर
- गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन किया।
- महात्मा गांधी के आंदोलनों का असर पूरी दुनिया में दिखा।
- स्वदेशी नीति को बढ़ावा देने के लिए असहयोग आंदोलन चलाया।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सत्य और अहिंसा की राह पर चलने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश की आजादी के लिए जितने भी आंदोलन चलाए, उनसे न सिर्फ भारत की तस्वीर बदली बल्कि इसका व्यापक असर पूरी पूरी दुनिया में दिखा। महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान देने के साथ ही उसकी स्पष्ट रूपरेखा भी तय की। आइए जानते हैं गांधी जी ने किन आंदोलनों ने भारत की तस्वीर बदली।
भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त, 1942 ई. को महात्मा गांधी के आह्वान पर पूरे देश में शुरू हुआ था। भारत की आजादी में दो पड़ाव सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थे, पहला ‘1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम’ और दूसरा ‘1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन’। भारत को जल्द ही आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेज शासन के विरुद्ध ‘नागरिक अवज्ञा आन्दोलन’ था। ‘क्रिप्स मिशन’ की असफलता के बाद गांधी जी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस आंदोलन को ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का नाम दिया गया।
इसे नमक सत्याग्रह के से भी नाम जाना जाता है। 12 मार्च 1930 में अंग्रेजी सरकार द्वारा नमक पर टैक्स लगाने के विरोध में गांधी जी ने नमक आंदोलन शुरू किया था। इस टैक्स के विरोध में गांधी जी ने जनता से दांडी मार्च का आह्वान किया। इस मार्च के तहत गांधी जी 12 मार्च से 6 अप्रैल तक 400 किलोमीटर तक का पैदल सफर कर अहमदाबाद से दांडी तक पहुंचे और समुद्र किनारे नमक उठाकर अंग्रेजी फैसले का विरोध किया। हजारों की संख्या में भारतीय जनमानस ने इस दांडी मार्च में भाग लेकर खुद नमक पैदा करने का फैसला किया। यह फैसला और आंदोलन गांधी जी के सबसे सफल आंदोलनों में से एक था जिसने अंग्रेजी सरकार को इतना डरा दिया कि दांडी मार्च में जाने से रोकने के लिए करीब 80 हजार लोग जेलों में ठूंस दिए गए।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ चलाया गया था। 1929 ई. तक भारत को ब्रिटेन के इरादे पर शक़ होने लगा कि वह औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा कि नहीं। 1929 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन की घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है। महात्मा गांधी ने अपनी इस मांग पर ज़ोर देने के लिए 6 अप्रैल 1930 ई. को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा।
हरिजन आंदोलन
महात्मा गांधी ने 1932 में हरिजन आंदोलन का आगाज किया, जिसका मकसद अंग्रेजी सरकार हरिजनों के लिए चुनाव की अलग व्यवस्था न कर पाए और भारतीय जनमानस का अभिन्न अंग माने जाएं। गांधी जी ने अछूत शब्द का विरोध करते हुए दलितों के लिए हरिजन शब्द ईजाद किया और उन्हें समान हक दिलाने के लिए अनशन भी किया। गांधी जी छुआछूत को एक सामाजिक बुराई मानते थे और इसी के खिलाफ वे जीवन पर्यत संघर्ष करते रहे।
नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन
महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका गए तो वहां उन्हें कदम- कदम पर रंभभेद का शिकार होना पड़ा। फर्स्ट क्लास का टिकट होने के बावजूद उन्हें तीसरी श्रेणी के डिब्बे में यात्रा करनी पड़ी। अंग्रेजों ने उन्हें कोच में घुसने नहीं दिया और विरोध करने पर उन्हें ट्रेन से नीचे धक्का दे दिया गया। वहां के होटलों में भी उनका प्रवेश वर्जित था। कोर्ट में पहुंचने पर टोपी उतारने का आदेश उन्हें व्यथित कर गया। जिसके बाद उन्होंने समान अधिकारों के लिए आंदोलन करने की ठान ली। जिससे सामाजिक अन्याय के खिलाफ जागरुकता फैल सके और जनता अपने अधिकारों को लेकर सजग हो सके। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन किया जिसके चलते उन्हें बहुत प्रताड़ित भी किया गया, आखिरकार रंगभेद के खिलाफ गांधी जी का आंदोलन रंग लाया और दक्षिण अफ्रीका में समान नागरिक अधिकार बहाल हुए। इसका असर भारत पर भी पड़ा और भारत में समान अधिकारों की मांग उठने लगी जो स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत बड़ी लहर बनकर उठी।
असहयोग आंदोलन
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम के तहत असहयोग, अहिंसा को अंग्रेजों के खिलाफ अस्त्र के रूप में प्रयोग किया। इन्हीं में से एक था असहयोग आंदोलन। स्वदेशी नीति को बढ़ावा देने के लिए भी इस आंदोलन को इस्तेमाल किया गया। इस आंदोलन के तहत भारतीयों को विदेशी कपड़े, वस्तुओं और अंग्रेजों की नौकरी का त्याग करने का आह्वान किया गया। विदेशी कपड़ों ही होली जलाई जाने लगी, घर- घर में लोग सूत कातने लगे। स्वदेशी सामान को प्रोत्साहित किया जाने लगा। सम्माननीय लोगों ने सरकार की बड़ी- बड़ी नौकरियां छोड़ दी, अंग्रेजों के शिक्षण संस्थान और कोर्ट का बहिष्कार कर दिया गया, माननीयों ने अंग्रेजों द्वारा दिए गए सम्मान और मैडल भी लौटा दिए थे। गांधी जी के इस आह्वान का असर पूरे देश में दिखा। जनता के बीच देश के प्रति जोश और समाज में सहयोग के लिए भावना पैदा हुई और अंग्रेजी वस्तुओं के प्रति उदासीनता बढ़ी।हालांकि 1922 में चौरा चौरी कांड में असहयोग आंदोलन के तहत हिंसा हुई तो गांधी जी ने व्यापक असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी।
चंपारण के तुरंत बाद 1918 में खेड़ा सत्याग्रह खड़ा हुआ। खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह था। यह महात्मा गांधी की प्रेरणा से वल्लभ भाई पटेल और अन्य नेताओं की अगुवाई में हुआ था। इस सत्याग्रह के बाद गुजरात के जनजीवन में एक नया उत्साह और आत्मविश्वास जागा।
चंपारण सत्याग्रह के माध्यम से देश के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का जुड़ना एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसी सत्याग्रह से अहिंसा के रूप में आजादी की लड़ाई को एक नया हथियार मिला और महात्मा गांधी ने स्वच्छता का संदेश भी दिया। यह वह दौर था जब गांधी जी अफ्रीका से लौटने के बाद देश को करीब से जानने के लिए देशाटन पर थे। इसी कड़ी में राज कुमार शुक्ला के निमंत्रण पर वह 10 अप्रैल 1917 को बिहार के चंपारण पहुंचे। चंपारण सत्याग्रह गांधी के नेतृत्व में भारत का पहला सत्याग्रह आंदोलन था। उस समय अंग्रेजों के नियम-कानून के चलते किसानों को खाद्यान्न के बजाय अपनी जोत के एक हिस्से पर मजबूरन नील की खेती करनी होती था। जिसके बाद गांधी जी ने किसानों के हालात जानने की कोशिश शुरू की और उन्हें जागरूक करने में जुट गए। गांधी की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से पुलिस ने उन पर समाज में असंतोष फैलाने का आरोप लगाकर चंपारण छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन गांधी ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया जिसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया। हालांकि बाद में जनसमर्थन मिलने पर उन्हें रिहा कर दिया गया।
Created On :   30 Sept 2018 2:26 PM IST