आजादी के बाद पहली बार गिनी जाएंगी मुस्लिम जातियां, सभी दलों ने जताई सहमति, जानिए इस फैसले से मुसलमानों को क्या फायदा?

Muslim castes will be counted for the first time after independence
आजादी के बाद पहली बार गिनी जाएंगी मुस्लिम जातियां, सभी दलों ने जताई सहमति, जानिए इस फैसले से मुसलमानों को क्या फायदा?
बड़ा निर्णय आजादी के बाद पहली बार गिनी जाएंगी मुस्लिम जातियां, सभी दलों ने जताई सहमति, जानिए इस फैसले से मुसलमानों को क्या फायदा?
हाईलाइट
  • आखिरी बार जातीय जनगणना 1931 में हुई थी

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार में जाति पर आधारित जनगणना को लेकर सहमति बन गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक में जातीय जनगणना कराने का निर्णय ले लिया गया है। सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि बैठक में हिंदू जातियों के साथ मुस्लिम जातियों की जनगणना कराने का फैसला लिया गया है। नीतीश के अनुसार, राज्य में सभी धर्म की जातियों और उपजातियों की गिनती की जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे मुस्लिम समुदायों के अंदर भी उपजाति निकल कर आएगी। 
इस फैसले से यह साफ हो गया कि आजादी के बाद से यह पहली बार होगा जब मुस्लिमों की गणना जाति के आधार पर होगी। इससे पहले देश में जितनी बार भी जनगणना हुई हैं, उसमें मुस्लिम समुदाय की गिनती केवल धर्म के आधार पर हुई है, जाति के आधार पर नहीं। 

आखिरी बार 1931 में हुई थी जातीय जनगणना

बता दें कि भारत में आखिरी बार जातीय जनगणना 1931 में हुई थी। इसमें हिंदुओं के साथ मुस्लिमों की गिनती भी जाति व धर्म के आधार पर की गई थी। लेकिन इसके बाद 1941 की जनगणना के समय मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों से अपील की कि, वो जाति के स्थान पर धर्म लिखवाएं। उधर हिंदू महासभा ने भी हिंदूओं से जाति की जगह धर्म लिखवाने पर जोर दिया। दोनों समुदाय के इस कदम के बाद न कभी हिंदुओं की जातीय गणना हुई और न ही मुस्लिमों की। आजादी के बाद अभी तक हुई जनगणना में एससी व एसटी की गणना होती रही है, लेकिन इसमें मुस्लिम दलित जातियां शामिल नहीं हैं।

इस तरह विभाजित हैं मुस्लिम जातियां

आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम समुदाय की जातियां मुख्यतया तीन वर्गों और सैकड़ो बिरादरियों में विभक्त हैं। ऊंचे वर्ग के मुसलमानों को अशरफ, पिछड़े को पसमांदा और दलित वर्ग के मुसलमानों को अरजाल कहा जाता है। मुस्लिमों की दलित जाति को भी ओबीसी में डाल दिया गया है। वहीं बात करें बिहार की तो वर्तमान समय में यहां मुस्लिमों की 50 से ज्यादा जातियां हैं। बिहार में ओबीसी के आंकड़ो पर नजर डालें तो यहां की 24 मुस्लिम जातियां केंद्र की सूची में शामिल हैं और राज्य की सूची में 31 जातियां शामिल हैं। 

पहले से उठ रही है मांग

मुस्लिम समुदाय की जाति आधारित जनगणना कराने की मांग काफी समय से उठती रही है। बहुत से मुस्लिम संगठन हिंदूओं की जातियों की तरह मुसलमानों की जातीय गणना करने की मांग करते रहे हैं। पिछले साल दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन में 15 मुस्लिम पिछड़ा वर्ग संगठनों ने मुस्लिम जातियों की जनगणना के मुद्दे पर बैठक की थी। बैठक में मुस्लिम पिछड़ा वर्ग की शैक्षणिक, सामाजिक व आर्थिक आधार पर जातियों की गिनती करने की मांग की गई थी।
इसके अलावा जब आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन के पांच दलों के नेता सीएम नीतिश से मिले थे और जातीय जनगणना कराने की मांग की थी तब पसमांदा मुस्लिम महाज अध्यक्ष व पूर्व सांसद अली अनवर ने भी बिहार के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री व गृहमंत्री को पत्र के माध्यम से कहा था कि हिंदूओं की जाति आधारित जनगणना जैसे मुस्लिमों की गणना भी की जानी चाहिए। 

क्यों है जरुरी

जाति आधारित जनगणना से हिंदूओं के जैसे मुसलमानों के ओबीसी के सही आंकड़े सामने आएंगे। जिससे जरुरतमंदों को सरकारी सुविधाओं का मिलेगा। अभी मुसलमानों के नाम पर सारी सुविधाएं होने के बावजूद उच्च जातियों के मुस्लिम फायदा ले रहे हैं।  
     

 


 
 

Created On :   2 Jun 2022 11:17 AM GMT

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