भारत में श्रीलंका के 58 हजार और तिब्बत के 72 हजार से अधिक शरणार्थी
- कुछ श्रीलंकाई नागरिक अपने आप वापस लौट गये या अन्य देशों की ओर चले गये।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गृह मंत्रालय के मुताबिक देश में श्रीलंका के 58,843 और तिब्बत के 72,312 शरणार्थी रह रहे हैं।गृह मंत्रालय की 2020-2021 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक एक जनवरी 2021 तक, तमिलनाडु के 108 शरणार्थी शिविरों तथा ओडिशा के 54 शरणार्थी शिविरों में श्रीलंका के 58,843 शरणार्थी रह रहे हैं।करीब 34,135 शरणार्थी शिविरों से बाहर रह रहे हैं, लेकिन उनका पंजीकरण तमिलनाडु प्रशासन ने किया हुआ है।
इन्हें मानवीय आधार पर जरूरी राहत सामग्री दी जा रही है। उन्हें शिविरों में रहने की जगह देने के साथ ही सब्सिडी पर राशन सामग्री ,कपड़े, बर्तन, मेडिकल सुविधा और शिक्षा सुविधा दी जा रही है। ये पूरा खर्च राज्य सरकार वहन करती है और बाद में उसकी पूर्ति केंद्र सरकार करती है।
केंद्र सरकार ने जुलाई 1983 से 31 दिसंबर 2020 के बीच शरणार्थिओं पर 1,154 करोड़ रुपये खर्च किये।मंत्रालय ने बताया कि जुलाई 1983 से अगस्त 2012 के बीच करीब 3,04,269 शरणार्थियों ने भारत में प्रवेश किया। भारत सरकार उन्हें मानवीय सहायता प्रदान करती है लेकिन सरकार का अंतिम लक्ष्य उन्हें श्रीलंका वापस भेजना है।
मार्च 1995 तक 99,469 शरणार्थियों को श्रीलंका वापस भेजा गया। मार्च 1995 के बाद श्रीलंकाई नागरिकों को संगठित रूप से या योजनाबद्ध रूप से श्रीलंका नहीं भेजा गया है। कुछ श्रीलंकाई नागरिक अपने आप वापस लौट गये या अन्य देशों की ओर चले गये।
इसी तरह केंद्रीय तिब्बत राहत समिति द्वारा 2019 में कराये गये अंतिम जनसर्वेक्षण के मुताबिक, देश में 31 दिसंबर 2020 तक देश में तिब्बती शरणार्थियों की संख्या 72,312 थी। इनमें से अधिकतर ने खुद ही अपना ख्याल रखा। वे देश के विभिन्न हिस्सों में कृषि और हस्तशिल्प योजनाओं का लाभ उठाकर या स्वरोजगार के सहारे आत्मनिर्भर हुये।
कर्नाटक में सर्वाधिक 21,353, हिमाचल प्रदेश में 14,973, अरुणाचल प्रदेश में 4,759, उत्तराखंड में 4,858, पश्चिम बंगाल में 3,079 और लद्दाख में 9,987 तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं।मंत्रालय ने कहा कि तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास का काम लगभग खत्म हो गया है। उत्तराखंड में एक आवासीय योजना लागू करने के विभिन्न चरणों में है। सभी तिब्बती शरणार्थियों को एक समान सुविधा मुहैया कराने के लिये केंद्र सरकार ने 2014 में तिब्बती पुनर्वास नीति जारी की थी।
केंद्र सरकार ने देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित 36 तिब्बती कार्यालयों के प्रशासनिक और सामाजिक कार्यो का खर्च वहन करने के लिये दलाईलामा को 2015 से 2020 के बीच 40 करोड़ रुपये आवंटित किये। ये पूरी राशि जारी भी की जा चुकी है।तिब्बत से 1959 से तिब्बतियों का पलायन दलाईलामा के भारत आने के साथ शुरू हुआ। सरकार ने उन्हें शरण देने के साथ उनके अस्थायी पुनर्वास का भी इंतजाम किया। उनकी अलग सांस्कृतिक पहचान की हिफाजत भी की जाती है।
(आईएएनएस)
Created On :   27 April 2022 1:00 PM GMT