उत्तराखंड में बन रहा मेंस्ट्रुएशन सेंटर, ताकि पीरियड्स के दौरान महिलाएं रहें घर से दूर
- घर से अलग महिलाओं को रहना पड़ता है अकेला
- मासिक धर्म को जोड़ा जा रहा अपवित्रता से
- सरकार दे रही रूढ़िवादिता को बढ़ावा
डिजिटल डेस्क, देहरादून। इक्कीसवीं सदी में आकर भारत के लोंगो ने पश्चिमी देशों के ऐशों-आराम और तकनीक को तो अपना लिया, लेकिन रूढ़िवादिता और सोच अब भी वैसी ही है। महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर लोगों की सोच में अब भी कोई बदलाव नहीं आया है। पीरियड्स को अब भी देश में अपवित्रता से जोड़कर देखा जाता है।
उत्तराखंड के चंपावत जिले के कई गांवों में पीरियड्स के दौरान महिलाओं के साथ भेदभाव होने की बात सामने आई है। यहां महिलाओं और लड़कियों को पीरियड्स के दौरान घर से बाहर अकेला रहना पड़ता है। अजीब बात यह है कि लोगों की इस सोच को सरकार भी बढ़ावा देने का काम कर रही है। बता दें कि चंपावत जिले के गांव गुरचम में सरकारी पैसों से एक ऐसी बिल्डिंग बनाई जा रही है, जिसमें पीरियड्स के दौरान घर से निकाली गई मजबूर महिलाओं को रखा जा सके।
गांव के एक दंपती ने मेंस्ट्रुएशन सेंटर बनने की शिकायत डीएम (जिलाधिकारी) से की है। विभाग से जुड़े अधिकारी का कहना है कि सरकार ने गांव के विकास कार्य के लिए फंड जारी किया है, यदि इससे मेंस्ट्रुएशन सेंटर बनाया जा रहा है तो ये अवैध है, जिसकी जांच की जाएगी। बता दें कि चंपावत जिला नेपाल-भारत बॉर्डस से लगा हुआ है।
नेपाल में चलती है ये प्रथा
नेपाल में महिलाओं के पीरियड्स के दौरान ये प्रथा अपनाई जाती है, जिसे पीरियड्स हट कहा जाता है। पड़ोसी देश में सदियों से चली आ रही इस प्रथा को छौपदी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है अनछुआ। प्रथा के अनुसार पीरियड्स और डिलिवरी के समय महिलाओं को अपवित्र मान लिया याता है। इस दौरान कई पाबंदियां लगा दी जाती हैं। मसलन, महिलाएं घर में दाखिल नहीं हो सकतीं, बुजुर्गों को छू नहीं सकतीं, मंदिर में नहीं जा सकतीं, खाना नहीं बना सकतीं। इस दौरान बच्चियों को स्कूल भी नहीं जाने दिया जाता है। नेपाल का सुप्रीम कोर्ट छौपदी को 2005 में गैरकानूनी करार दे चुका है, लेकिन ये प्रथा वहां तब भी जारी है।
Created On :   16 Jan 2019 11:13 AM IST