जानें कौन था मुगल शासक 'बाबर' जिसकी बनाई मस्जिद पर सालों चला विवाद

Know Who is Babur ? Who built the Babri Masjid in Ayodhya
जानें कौन था मुगल शासक 'बाबर' जिसकी बनाई मस्जिद पर सालों चला विवाद
जानें कौन था मुगल शासक 'बाबर' जिसकी बनाई मस्जिद पर सालों चला विवाद

डिजिटल डेस्क, दिल्ली। मुगलकालीन इतिहास की तारीखें बताती है कि मुगल शासक बाबर ही था जिसने भारत में शासन के दौरान अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। भारत के प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 ई. में एक मस्जिद का निर्माण किया गया था। 1940 के दशक से पहले, इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्म अस्थान (जन्म स्थान की मस्जिद) कहा जाता था, इस तरह मस्जिद वाले स्थान को हिन्दूओं द्वारा भगवान श्रीराम की जन्मभूमि के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है। पुजारियों से हिन्दू ढांचे या निर्माण को छीनने के बाद मीर बाकी (बाबर का सेना पति) ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। आइये जानते है इस मस्जिद के निर्माता से जुड़ी कुछ अहम बातें...

इतिहासकारों के मुताबिक मुगल शासक ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को फरगना घाटी के अन्दीझ़ान नामक शहर में हुआ था जो अब उज्बेकिस्तान में है। बाबर अपने पिता उमरशेख मिर्जा (फरगाना के शासक) के बाद फरगाना की गद्दी पर 8 जून 1494 ई में बैठा। बाबर ने 1507 ई में बादशाह की उपाधि धारण कर ली थी। 1526 ई. में बाबर ने अपने 12 हजार सैनिकों के साथ दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहीम लोदी के साथ पानीपत के मैदान में युद्ध लड़ा था। इस युद्ध में लोदी का कत्ल करने के एक हफ्ते बाद दिल्ली में बाबर की ताजपोशी की गई। बाबर के आयोध्या आने की बात 1528 में की जाती है। राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात इसी साल की जाती है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों की माने तो अयोध्या में राम मंदिर तो बाबर के आने के बाद मौजूद था।

बाबर को भारत आने का निमंत्रण पंजाब के सूबेदार दौलत खां लोदी और इब्राहीम के चाचा आलम खां लोदी ने दिया था। राणा सांगा द्वारा बाबर को भारत पर आक्रमण के आमंत्रण का उल्लेख सिर्फ बाबर ने स्वयं अपनी आत्मकथा में किया है। इसके अलावा अन्य किसी भी स्रोत से इस साक्ष्य की पुष्टि नहीं हो पायी है। बाबर ने पानीपत विजय से पूर्व भारत पर चार बार आक्रमण किया था और उसी आक्रमण में ही उसने भेरा के किले को भी जीता था। पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526 ई. को इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर की जीत हुई। खनवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई में राणा सांगा और बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर की जीत हुई। चंदेरी का युद्ध 29 मार्च 1528 ई में मेदनी राय और बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर की जीत हुई। घाघरा का युद्ध 6 मई 1529 ई में अफगानो और बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर की जीत हुई।

बाबर ही था जिसे भारत में मुगलवंश के संस्थापक के तौर पर जाना जाता है। बाबर की मातृभाषा चग़ताई भाषा थी लेकिन फारसी में बाबर को महारत हासिल थी। उसने चगताई में बाबरनामा के नाम से अपनी जीवनी लिखी थी। बाबर ने महज 22 साल में काबुल पर अधिकार कर अफगानिस्तान में राज्य कायम किया था। पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार तुगल्लमा युद्ध नीति का इस्तेमाल किया। उस्ताद अली और मुस्तफा बाबर के दो निशानेबाज थे, जिसने पानीपत के प्रथम युद्ध में भाग लिया था। पानीपत के युद्ध में लूटे गए धन को बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों, नौकरों एवं सगे सम्बन्धियों में बांट दिया। इस बंटवारे में हुमायूं को वह कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ, जिसे ग्वालियर नरेश ‘राजा विक्रमजीत’ से छीना गया था। इस हीरे की क़ीमत के बारे में यह माना जाता है कि इसके मूल्य द्वारा पूरे संसार का आधे दिन का ख़र्च पूरा किया जा सकता था। भारत विजय के ही उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक क़ाबुल निवासी को एक-एक चांदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया था।अपनी इसी उदारता के कारण उसे ‘कलन्दर’ की उपाधि दी गई। खानवा के युद्ध में जीत के बाद बाबर को गाजी की उपाधि दी गई। 

48 साल में 27 सितंबर में 1530 ई. को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई। बाबर के शव को पहले आगरा के आरामबाग में दफनाया गया, बाद में काबुल में उसके द्वारा चुने गए स्थान पर दफनाया गया। जहां उसका मकबरा बना हुआ है। उसके बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं मुग़ल बादशाह बना।  बाबर ने अपनी आत्मकथा "बाबरनामे" की रचना की थी, जिसका अनुवाद बाद में अब्दुल रहीम खानखाना ने किया। बाबर को मुबईयान नाम की पद्द शैली का जन्मदाता भी कहते हैं। बाबर का उत्तराधिकारी हुमायूं हुआ। बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी (तुर्की ) में भारत की तत्कालीन राजनीतिक दशा, भारतीयों के जीवन स्तर पशु पक्षियों एवं फूलों तथा फलों का विस्तृत वर्णन किया है। कुछ इतिहासकार बाबर की मृत्यु का कारण इब्राहीम लोदी की माँ द्वारा दिये गये विष को मानते हैं। बाबर ने सर्वप्रथम सुल्तान की परंपरा को तोङकर अपने को बादशाह घोषित किया था, जबकि इससे पूर्व के शासक अपने को सुल्तान कहकर ही पुकारते थे।

 

 

Created On :   9 Nov 2019 7:39 AM IST

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