झारखंड में नौकरशाहों को लगता रहा है राजनीति का चस्का
- पुलिस अधिकारियों को भी लगा राजनीति का चस्का
- राजनीति में आने वाले नौकरशाहों की संख्या पूर्वी सिंहभूम में अधिक है
डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के दो नेता राज्य की राजनीति के शीर्ष पर क्या पहुंचे, यहां पदस्थापित होने वाले नौकरशाहों (पुलिस अधिकारियों) को भी राजनीति का चस्का लग गया। ऐसा नहीं है कि राज्य के अन्य क्षेत्र में कार्य कर रहे नौकरशाह राजनीति में नहीं आए हैं, लेकिन पूर्वी सिंहभूम में ऐसे नौकरशाहों की संख्या अधिक है।
पूर्वी सिंहभूम आने वाले कई पुलिस अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने खाकी को बाय-बाय कर खादी को अपना लिया है। इस नए ट्रेंड में कई पुलिस अधिकारियों ने सफलता भी पाई है, तो कई अभी सफलता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वैसे, गौर करने वाली बात हैं कि इन सभी पुलिस अधिकारियों की गिनती अच्छे अधिकारियों के रूप में रही है।
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और मंत्री सरयू राय का कर्म क्षेत्र पूर्वी सिंहभूम ही रहा है। पूर्वी सिंहभूम में 90 के दशक में पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापित डॉ़ अजय कुमार ने इस्तीफा देकर राजनीति को लोगों की सेवा का माध्यम बनाया। अजय साल 2011 में झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के टिकट पर लोकसभा उपचुनाव लड़े। भारी मतों से विजयी हुए, लेकिन उन्हें झाविमो रास नहीं आया। उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया।
कांग्रेस ने भी उन पर विश्वास जताते हुए उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी। मगर कांग्रेस से भी उनका मोहभंग हो गया और अब कांग्रेस छोड़कर वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। पूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्यालय जमशेदपुर में एक अच्छे पुलिस अधिकारी की छवि बना चुके अमिताभ चौधरी भी पुलिस की नौकरी छोड़ राजनीति में कूद गए। राजनीति में आने के बाद उनके भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर चुनाव लड़ने की चर्चा हुई, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला।
चौधरी 2014 में झाविमो में शमिल हुए और रांची से चुनाव भी लड़ा, मगर चुनाव हार गए। हालांकि वह झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े रहे। राज्य में तेज-तर्रार पुलिस अधिकारी की छवि वाले डॉ. अरुण उरांव को भी पुलिस की नौकरी ज्यादा पसंद नहीं आई। जमशेदपुर में साल 2002 से 2005 तक पुलिस अधीक्षक रहे उरांव ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर कांग्रेस का दामन थाम लिया। डॉ़ अरुण की पत्नी गीताश्री उरांव गुमला के सिसई से विधायक भी रहीं। उरांव के लोहरदग्गा से चुनाव लड़ने की भी बात हवा में खूब तैरती रही है, लेकिन अब तक उन्हें मौका नहीं मिला है।
कांग्रेस ने अरुण उरांव को 2019 में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में सह चुनावी प्रभारी बनाया था। इस चुनाव में कांग्रेस को सफलता मिली। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनाने में अरुण का बड़ा योगदान माना जाता है। अरुण उरांव ने कहा कि बिहार एकीकृत रहा हो, या अलग झारखंड बना हो, जमशेदपुर की पहचान देश के बड़े शहरों में रही है। ऐसे में वहां अपराध नियंत्रित करना चुनौती रहा है।
पुलिस अधिकारी भी लोगों के बीच काम करते हैं और जिन अधिकारियों को इच्छा अधिक लोगों से जुड़ने की होती है, वे राजनीति की ओर चले आते हैं। वैसे जमशेदपुर शुरू से ही राजनीति के लिए ऊर्जावान क्षेत्र माना जाता है। यहां जाने के बाद राजनीति में दिलचस्पी भी बढ़ जाती है।
इधर, जमशेदपुर में 90 के दशक में पुलिस अधीक्षक रहे रेजी डुंगडुंग ने भी कुछ दिनों पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है। इससे पहले वह अपर पुलिस महानिदेशक पद पर थे। डुंगडुंग के भी राजनीतिक में उतरने के कयास लग रहे हैं। माना जा रहा है कि वह भाजपा की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। वैसे, झारखंड प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव भी भारातीय पुलिस सेवा के अधिकारी रह चुके हैं।
Created On :   21 Sept 2019 8:30 AM IST