गणतंत्र दिवस पर शामिल होंगे ASEAN के 10 नेता, जानें मायने?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत ने पहली बार गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में ASEAN (एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन) के 10 नेताओं को इनवाइट किया गया है। पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह में इतने सारे चीफ गेस्ट शामिल हो रहे हैं, जो राजपथ में होने वाली परेड के गवाह बनेंगे। इससे पहले भारत ने कभी दो से ज्यादा गेस्ट को नहीं बुलाया है। इस बार जिन 10 देशों के नेता शामिल हो रहे हैं, उनमें कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम, ब्रूनेई और लाओस शामिल हैं। एक साथ इतने नेताओं को गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में बुलाकर भारत दुनिया को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करेगा। बता दें कि भारत-ASEAN के 25 साल भी पूरे हैं।
क्या है ASEAN?
ASEAN साउथ-ईस्ट एशियाई देशों का एक ग्रुप है, जिसे 8 अगस्त 1967 को इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर और थाईलैंड ने साथ मिलकर किया था। इसके बाद इस ग्रुप से 5 और देश- ब्रूनेई, म्यांमार, कंबोडिया, सिंगापुर और वियतनाम को भी शामिल किया गया। इस ऑर्गनाइजेशन में कुल 10 देश शामिल हैं। इस ऑर्गनाइजेशन का मकसद साउथ-ईस्ट एशियाई रीजन में अर्थव्यवस्था, राजनीति, सुरक्षा, संस्कृति और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना है। ASEAN का दायरा 44 लाख स्क्वायर किमी में फैला हुआ है, जो क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया के 3% एरिया को कवर करता है। इस ऑर्गनाइजेशन में 63 करोड़ से ज्यादा की आबादी रहती है।
जानें क्या है इसके मायने?
1. मोदी सरकार आने के बाद भारत ने अपनी फॉरेन पॉलिसी पर ज्यादा फोकस किया है। भारत अब इंडो-पेसिफिक पॉलिसी पर ध्यान दे रहा है। वो अमेरिका और चीन की तरह ASEAN में अपना दबदबा रखना चाहता है। भारत पहली बार गणतंत्र दिवस में ASEAN के नेताओं को बुला रहा है, ताकि वो बता सके कि इस इलाके में भारत की अमेरिका और चीन से ज्यादा अहमियत है।
2. भारत ने अपनी इकोनॉमी को बढ़ाने के लिए "एक्ट ईस्ट" पॉलिसी शुरू की। इसके लिए भारत ने उन देशों पर फोकस किया, जो भारत के साथ सांस्कृतिक तौर पर जुड़े हुए हैं और ASEAN देश इस पॉलिसी में सटीक बैठते हैं।
3. इसके अलावा ASEAN देशों से संबंध डिप्लोमैटिक और स्ट्रैटेजिक इंपोर्टेंस के लिहाज से भी खास हैं। अगर भारत को चीन जैसे देश से निपटना है, तो उसे ASEAN देशों से संबंध अच्छे रखने होंगे। इसके साथ ही हिंद महासागर में भी अगर भारत को अपनी ताकत दिखानी है, तो इन देशों से रिश्ते और ज्यादा मजबूत करने की जरूरत है।
4. इस वक्त भारत एक उभरती हुई ताकत है। एशिया में भारत का दबदबा चीन के मुकाबले ज्यादा बढ़ा है। ASEAN के कुछ देश, जिनमें वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ब्रूनेई जैसे देश शामिल हैं, वो डरे हुए हैं। ये देश चाहते हैं कि भारत के साथ मिलकर चीन का मुकाबला किया जाए। एक कारण ये भी है कि ASEAN नेता भारत में आ रहे हैं।
एक नजर उन नेताओं पर, जो गणतंत्र दिवस में चीफ गेस्ट रहेंगे..
1. गुयेन शुआन फुक :
गुयेन शुआन फुक वियतनाम के प्रधानमंत्री हैं। इसके साथ ही वो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ वियतनाम के जनरल सेक्रेटरी हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर साल 2016 में पद संभाला था और उनकी लीडरशिप में वियतनाम भारत के "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" के मेन पिलर्स में से एक हैं। वियतनाम के साथ भारत के संबंध इसलिए भी खास हैं, क्योंकि साउथ चाइना सी को लेकर चीन के साथ उसका विवाद है। भारत को उम्मीद है कि वियतनाम के साथ उसके मजबूत संबंधों से चीन के खिलाफ दबाब बनाने में मदद मिलेगी।
2. नजीब रजाक :
मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक देश में अरबों डॉलर के स्कैंडल में फंसे हैं। देश में उन्हें लेकर विरोध-प्रदर्शनों का दौर जारी है। नजीब रजाक पर आरोप है कि उन्होंने अरबों डॉलर विकास कार्य के नाम पर गबन किए हैं। इसके साथ ही नजीब दोस्ती के लिए चीन की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं। मलेशिया के चीन की तरफ झुकाव से भारत में चिंता बढ़ी है।भारत को उम्मीद है कि, गणतंत्र दिवस पर नजीब रजाक को बुलाने से मलेशिया से रिश्ते बेहतर किए जा सकते हैं।
3. आंग सान सू की :
आंग सान सू की यूं तो म्यांमार की स्टेट काउंसलर हैं, पर वास्तव में देश की सरकारी शक्तियां उनके पास ही हैं। म्यांमार के राष्ट्रपति यू हटिन क्याव उनके करीबी माने जाते हैं। करीब 15 साल तक नजरबंदी में रहने के बाद सू की ने देश में नवंबर 2015 में हुए चुनाव में अभूतपूर्व जीत दर्ज की, जब उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) ने शानदार प्रदर्शन किया। हालांकि, इस जीत के बावजूद संवैधानिक बाध्यताओं के कारण वह म्यांमार की राष्ट्रपति नहीं बन सकीं, क्योंकि उनके पति एक विदेशी नागरिक थे और उनके बच्चे उन्हीं से हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों की लड़ाई लड़ने वाली नेता और कार्यकर्ता के तौर पर पहचान हासिल करने वालीं सू की फिलहाल म्यांमार के रखाइन राज्य में हुई हिंसा और वहां से रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन को लेकर अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं के केंद्र में है।
4. जोको विडोडो :
दुनिया के तीसरे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले वह जकार्ता के मेयर भी रह चुके हैं। ये भारत का उनका दूसरा दौरा होगा। हालांकि, कुछ लोगों ने उनकी लीडरशिप में ASEAN के प्रति इंडोनेशिया के कमिटमेंट को लेकर सवाल भी खड़े किए हैं, पर उन्होंने हमेशा कहा है कि वह ASEAN को क्षेत्रीय कूटनीति में अहम मानते हैं।
5. थॉन्गलॉन सिसौलिथ :
लाओस के प्रधानमंत्री थॉन्गलॉन सिसौलिथ ने फरवरी 2016 में पद संभाला। इससे पहले थॉन्गलॉन मलेशिया के डिप्टी पीएम और फॉरेन मिनिस्टर भी रहे हैं। माना जाता है कि कंबोडिया की तरह लाओस भी चीन के गहरे प्रभाव में है और ASEAN से संबंधित उसके फैसले चीनी प्रभाव में होते हैं।
6. रॉड्रिगो दुर्तेते :
फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो दुर्तेते अपने कॉन्ट्रोवर्शियल स्टेटमेंट्स को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। ड्रग्स तस्करों को लेकर उनके बयानों ने खूब सुर्खियां बटोरी और इसे लेकर उनकी आलोचना भी खूब हुई। उन्होंने ड्रग्स तस्करों को बिना किसी सुनवाई के सीधे मार डालने तक के आदेश दिए थे। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप को भी नहीं बख्शा और उन्हें लेकर भी आपत्तिजनक बयान दिया था।
7. हुन सेन :
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ह्यूमन राइट्स को लेकर हमेशा अलोचनाओं के घेरे में रहे हैं। हुन 1985 से ही कंबोडिया के प्रधानमंत्री हैं। उन पर लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रखने का आरोप लगता रहा है। उनका यह बयान भी सुर्खियों में रहा, जिसमें उन्होंने पत्रकारों को नसीहत देते हुए कहा कि उन्हें राजनीतिक घटनाक्रमों की रिपोर्टिंग इस तरह करनी चाहिए कि वे किसी समस्या में न फंसें।
8. प्रयुत चान ओचा :
प्रयुत चान ओचा थाईलैंड के प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने 2014 में सैन्य विद्रोह के जरिए सत्ता अपने हाथों में ले ली थी। हालांकि उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश की, पर चीन के साथ बढ़ती उनकी करीबी ने कई सवाल खड़े किए। उनकी सरकार ने कई बार चुनाव कराने का वादा किया, लेकिन हर बार पीछे हट गई।
9. हसनाल बोलकिया :
ब्रुनेई के सुल्तान हसनाल बोलकिया की गिनती दुनिया के अमीर शख्सियतों में होती है। उनकी कमाई का मेन सोर्स ब्रुनेई के तेल और खनिज भंडार हैं। वो ब्रुनेई की सरकार के प्रमुख हैं। 71 साल के सुल्तान दुनिया में सबसे ज्यादा समय तक शासन में रहने वाले राजशाही का हिस्सा हैं।
10. ली हसीन लुंग :
ली हसीन लुंग सिंगापुर के प्रधानमंत्री हैं। नए साल पर अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि सिंगापुर के लोग उन्हें नई चीजें सीख रहे हैं और नई स्किल को डेवलप कर रहे हैं। ली हसीन लुंग के भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते हैं और साउथ चाइना सी के मसले पर भारत को आगे बढ़ाता रहा है।
Created On :   25 Jan 2018 8:47 AM IST