भारतीय मॉनसून पर पड़ रहा जलवायु परिवर्तन का असर
- केवल स्थानिक
- बल्कि अंतर-मौसमी कारक भी बारिश के पैटर्न बदल रहे हैं
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वैज्ञानिक पहले ही बदलते मौसम की चेतावनी दे चुके हैं। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की छठी आकलन रिपोर्ट (एआर 6) में कोड रेड लगा है और दक्षिण एशिया, खासकर भारत के लिए बारिश के अनियमित पैटर्न की चेतावनी दी गई है।
भारत में औसत मॉनसूनी बारिश में बदलाव देखा गया है। उदाहरण के लिए, अगस्त में एक लंबा शुष्क काल रहा और सितंबर में असाधारण रूप से भारी बारिश हुई, जैसा कि 2020 में हुआ था। वर्ष 2021 में अगस्त में अधिक बारिश देखी गई। एक तरह से, बड़े जलवायु परिवर्तन अब धरातल पर प्रकट हो रहे हैं।
ऐसे कई कारक हैं, जो भारत के दक्षिण-पश्चिम मॉनसून या मौसम को प्रभावित करते हैं।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान सचिव, एम. रविचंद्रन ने कहा, अल नीनो, ला नीना मॉनसूनी बारिश को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं। फिर, हिंद महासागर डिपोल (आईओडी) है। पिछले साल, प्रमुख चालक अटलांटिक से थे। सितंबर में मौसम मुख्य रूप से ध्रुवीय क्षेत्र से प्रभावित होता है।
उन्होंने कहा कि न केवल स्थानिक, बल्कि अंतर-मौसमी कारक भी बारिश के पैटर्न बदल रहे हैं।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक, मृत्युंजय महापात्र ने कहा, अगर हम दशकीय परिवर्तन को देखें, तो पूरे देश के लिए कोई दीर्घकालिक परिवर्तन नहीं है, लेकिन अस्थायी परिवर्तनशीलता बनी हुई है। मौसम कभी-कभी बहुत शुष्क होता और कभी-कभी बहुत गीला। हालांकि कुल बारिश समान रहती है। भारी बारिश के दिनों की संख्या बढ़ रही है और हल्की से मध्यम बारिश के दिनों की संख्या घट रही है, इसलिए कहा जा सकता है कि यह जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है।
उन्होंने कहा, यही कारण है कि कभी-कभी लंबे समय तक मौसम सूखा या गीला रहता है।
आईएमडी पहले ही राज्य स्तर और जिला स्तर पर जलवायु परिवर्तनशीलता और जलवायु परिवर्तन विश्लेषण कर चुका है। उससे हम पाते हैं कि 2018 तक इसमें कुछ निश्चित रुझान दिखाई दिए।
महापात्र ने कहा, यदि हम स्थानिक वितरण और वर्षा वितरण को देखते हैं, तो इसे जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। लेकिन विशिष्ट जिलों आदि के संबंध में जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रीय प्रभाव को जानने के लिए और जांच की जरूरत है।
हिंद महासागर द्विध्रुव (आईओडी) पश्चिमी हिंद महासागर और पूर्वी हिंद महासागर के गर्म/ठंडा होने में अंतर है। ला नीना मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर के ऊपर ठंडा होने से जुड़ा है। एक अल नीनो (ला नीना के विपरीत) आमतौर पर भारत में कम/अधिशेष मानसूनी वर्षा से जुड़ा होता है।
(आईएएनएस)
Created On :   14 April 2022 11:30 PM IST