आईबीसी ने आषाढ़ पूर्णिमा पर किया भव्य कार्यक्रम, बुद्ध की शिक्षाओं पर दिया जोर
डिजिटल डेस्क, वाराणसी। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) ने बुधवार को मूलगंध कुटी विहार, सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा को धर्म चक्र प्रवर्तन दिवस के रूप में मनाया। समारोह में शामिल होने वाले मेहमानों में यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी भी शामिल थीं।
इस अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक वीडियो संदेश भी दिखाया गया। इसके बाद विभिन्न बौद्ध कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री के भाषणों का संकलन किया गया। राज्यपाल ने दुनिया भर के बौद्धों को परंपरा को आगे बढ़ाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अभ्यास करने के लिए बधाई दी। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि आईबीसी न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए एक प्रमुख मंच रहा है।
राज्यपाल और मंत्री दोनों ने विहार का दौरा किया और इस दौरान उन्हें भगवान बुद्ध से संबंधित प्रतिकृतियां और वस्तुएं भेंट की गईं। वक्ताओं ने बुद्ध की शिक्षाओं के सार और आज के वक्त में भी उनके शब्दों की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। यह आईबीसी का वार्षिक प्रमुख कार्यक्रम है और बुद्ध पूर्णिमा के बाद बौद्धों के लिए दूसरा सबसे पवित्र दिन है।
आईबीसी ने सारनाथ के मूलगंध कुटी विहार में कार्यक्रम आयोजित किया, जहां शाक्यमुनि का पवित्र अवशेष विराजमान है। यह भारत की ऐतिहासिक विरासत, बुद्ध के ज्ञानोदय की भूमि, उनके द्वारा धम्म का प्रचार और महापरिनिर्वाण जैसी महत्वपूर्ण एवं पवित्र चीजों को संजोए हुए है।
इस आयोजन में बौद्ध संघों के कई अन्य गणमान्य व्यक्तियों, दुनिया भर के प्रख्यात मास्टर्स और विद्वान तथा आईबीसी चैप्टर, सदस्य संगठनों ने भाग लिया। वार्ता और प्रस्तुतियों का फोकस आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व पर रहा। इसमें नालंदा डिबेट का एक जीवंत प्रदर्शन भी शामिल था, जिसमें तिब्बती भाषा में धर्म की अपनी समझ पर बहस करने वाले दो वाद-विवाद शामिल थे, जिसमें एक अनुवादक प्रत्येक के तर्कों को समझा रहा था। इस प्रदर्शन ने आज के युवा भिक्षुओं के लिए एक सीखने की विधि के रूप में, देश भर के मठों में बौद्ध संस्करण, धर्म की बारीकियों और इसके अभ्यास की एक झलक प्रदान की।
उल्लेखनीय है कि यह सारनाथ ही था, जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था और धर्म के चक्र को गति दी थी। आषाढ़ पूर्णिमा का शुभ दिन जो भारतीय चंद्र कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ता है, श्रीलंका में एसाला पोया और थाईलैंड में आसन बुचा के नाम से भी जाना जाता है।
यह दिन वाराणसी के पास, वर्तमान में सारनाथ में डियर पार्क में आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन पहले पांच तपस्वी शिष्यों को ज्ञान प्राप्त करने के बाद बुद्ध की पहली शिक्षा का प्रतीक है। धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र (संस्कृत) के इस शिक्षण को धर्म के चक्र के रूप में भी जाना जाता है।
भिक्षुओं और ननों के लिए वर्षा ऋतु वापसी (वर्षा वास) भी जुलाई से अक्टूबर तक तीन चंद्र महीनों तक चलने वाले इस दिन से शुरू होती है, जिसके दौरान वे एक ही स्थान पर रहते हैं, आमतौर पर गहन ध्यान के लिए समर्पित उनके मंदिरों में ही वे रहते हैं। इस अवधि के दौरान आम समुदाय द्वारा उनकी सेवा की जाती है जो आठ उपदेशों का पालन करते हैं और अपने गुरुओं के मार्गदर्शन में ध्यान करते हैं।
इस दिन को बौद्धों और हिंदुओं दोनों की ओर से अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा को चिह्न्ति करने के दिन के रूप में गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। आईबीसी का गठन 2012 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एक बौद्ध निकाय के रूप में किया गया था, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
(आईएएनएस)
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Created On :   13 July 2022 10:30 PM IST