बदलाव की मांग करने वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने केंद्र व दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
- 30 मार्च के लिए मामले की अगली सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा, जिसमें देश भर में बच्चों के लिए एक समान पाठ्यक्रम शुरू करने की मांग की गई थी, जिसमें शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सभी प्रतिवादियों- केंद्र व दिल्ली सरकार और अन्य को 30 मार्च के लिए मामले की अगली सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया।
याचिका के साथ याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय उच्चतम न्यायालय में बर्खास्तगी के बाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे थे। याचिकाकर्ता के अनुसार, केंद्र सरकार ने मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक निर्देश देने वाले शैक्षणिक संस्थानों को शैक्षणिक उत्कृष्टता से वंचित करने के लिए आरटीई अधिनियम की धारा 1(4) और 1(5) को शामिल किया।
याचिका में आगे कहा गया है कि कुछ संस्थानों पर आरटीई अधिनियम का बहिष्कार बच्चों पर धार्मिक प्रभाव पैदा कर रहा था क्योंकि आठ से 16 साल की उम्र एक महत्वपूर्ण उम्र थी।
इसने यह भी कहा कि आरटीई अधिनियम की धारा 1 (4) और 1 (5) संविधान की व्याख्या करने में सबसे बड़ी बाधा है और मातृ भाषा में एक सामान्य पाठ्यक्रम की अनुपस्थिति अज्ञानता को बढ़ावा देती है और इसे कायम रखती है।
याचिका में कहा गया है, मौजूदा प्रणाली सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान नहीं करती है क्योंकि पाठ्यक्रम ईडब्ल्यूएस, बीपीएल, एमआईजी, एचआईजी और कुलीन वर्ग के लिए अलग-अलग हैं। यह बताना आवश्यक है कि अनुच्छेद 14, 15, 16, 21 का उद्देश्यपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण निर्माण, 21 संविधान के अनुच्छेद 38, 39, 46 के साथ, जो इस बात की पुष्टि करता है कि शिक्षा हर बच्चे का मूल अधिकार है और राज्य सबसे महत्वपूर्ण अधिकार के साथ भेदभाव नहीं कर सकता है।
(आईएएनएस)
Created On :   22 Feb 2022 5:30 PM IST