गुजरात सरकार ने 2003 के दमन पुल हादसे से नहीं सीखा कोई सबक

Gujarat government did not learn any lesson from Daman bridge accident of 2003
गुजरात सरकार ने 2003 के दमन पुल हादसे से नहीं सीखा कोई सबक
गुजरात गुजरात सरकार ने 2003 के दमन पुल हादसे से नहीं सीखा कोई सबक
हाईलाइट
  • दादरानगर हवेली के लोकसभा सदस्य स्वर्गीय मोहन देलकर ने संसद में इस मुद्दे को उठाया था

डिजिटल डेस्क, दमन। हाल ही में मोरबी पुल के गिरने से 141 लोगों की जान चली गई, यह घटना 28 अक्टूबर, 2003 की दमन में हुई त्रासदी को याद दिलाती है, जिसमें लोगों ने अपनों को भारी संख्या में खो दिया था। इस हादसे में 30 लोगों की मौत हो गई थी।

दमन की भयावह घटना को याद करते हुए, केशवभाई बटाक, जिन्होंने हादसे में दो बेटों को खोया था, ने कहा, दमन त्रासदी हमेशा मेरे जीवन का सबसे काला दिन रहेगा, क्योंकि इसने मेरी दुनिया को उजाड़ दिया। मोरबी पुल ढहने से दमन त्रासदी की भयावह यादें फिर से ताजा हो गईं। सबसे दुखद बात यह है कि गुजरात सरकार ने इससे कोई सबक नहीं लिया। अगर जरा भी पछतावा है, तो भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए, हर पीड़ित के घर जाकर माफी मांगनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि दमन की घटना के बाद पीड़ित परिवारों को न्याय के लिए 19 साल तक इंतजार करना पड़ा। एक ऐसा इंतजार, जिसका कोई अंत ही न हो। जिला सत्र अदालत का फैसला संतोषजनक नहीं था। लंबे समय से चली आ रही कानूनी लड़ाई ने पीड़ित परिवारों को दमन ब्रिज पतन पीड़ित समिति बनाने के लिए मजबूर किया। जब जांच और फिर मुकदमा की गति बेहद धीमी हो गई, तो समिति ने मुंबई उच्च न्यायालय का रुख किया। इसके हस्तक्षेप के बाद ही मुकदमे ने रफ्तार पकड़ी।

दादरानगर हवेली के लोकसभा सदस्य स्वर्गीय मोहन देलकर ने संसद में इस मुद्दे को उठाया था और केंद्र सरकार ने मुंबई उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरजे कोचर जांच आयोग का गठन किया था। आयोग ने देखा कि पुल में रेट्रोफिटिंग की समस्या थी, जो बेस्ट इंजीनियर प्रैक्टिस के साथ अनुरूपता की कमी थी। लापरवाही और कमियों के लिए आयोग ने केंद्र शासित प्रदेश के लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया।

अगस्त 2022 में जिला सत्र न्यायाधीश अदालत ने तीन अधिकारियों को दो साल कैद की सजा सुनाई। फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, एक अन्य पीड़िता के पिता धनसुख राठौड़ ने इस सजा को बहुत कम बताया। मुकदमे को दुर्घटना के दस साल के भीतर पूरा किया जाना चाहिए था और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए थी। इस हादसे में उनके दो बेटे विनीत (12) और चिराग (9) की जान चली गई थी। बटाकने कहा कि पीड़ित समिति सत्र अदालत के फैसले को मुंबई उच्च न्यायालय में चुनौती देने जा रही है।

 

 (आईएएनएस)

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Created On :   5 Nov 2022 11:30 AM IST

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