कांग्रेस का बड़ा दावा- PM मोदी ने हलफनामे में छुपाई संपत्ति की जानकारी
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- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संपत्ति पर बड़ा खुलासा
- मोदी की संपत्ति पर कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस
डिजिटल डेस्क, दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संपत्ति को लेकर कांग्रेस ने बड़ा दावा किया है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आज (मंगलवार) को दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कांन्फ्रेस में बताया कि पीएम मोदी ने अपने हलफनामे में गलत जानकारी दी है। कांग्रेस ने दावा करते हुए कहा कि हलफनामे में पीएम मोदी ने खुद को प्लॉट नं. 411 की जगह गांधीनगर में प्लॉट नंबर 401/ए के एक चौथाई हिस्से का मालिक बताया है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है।
पवन खेड़ा ने कहा कि जब इस बात का पता लगाया गया तो प्लॉट नंबर 401/ए जैसी कोई जगह है ही नहीं। उन्होंने आगे कहा कि गुजरात सरकार की नीति के तहत प्लॉट नंबर 401 को वित्त मंत्री अरुण जेटली को आवंटित किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्लॉट नंबर 401 अन्य भाजपा नेताओं को आवंटित किए गए प्लॉट के बगल में ही स्थित है और ये सभी प्लॉट गांधीनगर के बेहद खास स्थान पर हैं। ये स्पष्ट बात है कि प्ल़ॉट नंबर 411 के मालिक अभी भी पीएम नरेंद्र मोदी ही हैं।
विधायकों को सस्ते कीमत में जमीन आवंटित करने की ये नीति उस समय विवादों में आ गई जब गुजरात हाईकोर्ट ने साल 2000 में स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया था। दो नवंबर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वे जल्द इस मामले की सुनवाई करें। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी आदेश दिया कि इस नीति के तहत और कोई भी आवंटन नहीं होना चाहिए और बिना हाईकोर्ट की सहमति के पहले से आवंटित किए गए प्लॉट के ट्रांसफर की इजाजत नहीं दी जाएगी।
इस मामले को लेकर गुजरात सरकार की वकील लेखी कोर्ट में कहा था कि इस नीति के तहत साल 2000 के बाद से कोई भी आवंटन नहीं हुआ है और इस नीति पर पुनर्विचार किया जा रहा है। हालांकि याचिकाकर्ता गोखले का कहना है कि ये बयान बिल्कुल गलत है क्योंकि मोदी को इसी नीति के तहत साल 2002 में जमीन दी गई थी। याचिकाकर्ता का आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने हलफनामा में प्लॉट नं. 411 की जगह गांधीनगर में प्लॉट नंबर 401/ए के एक चौथाई हिस्से का मालिक बताया है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि गुजरात सरकार की नीति के तहत प्लॉट नंबर 401 को वित्त मंत्री अरुण जेटली को आवंटित किया गया है। बता दें कि गुजरात सरकार की ये विवादित नीति की सुप्रीम कोर्ट में आगे नहीं बढ़ पा रही है क्योंकि कई जजों ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इसकी वजह से ये मामला 28 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया गया।
Created On :   16 April 2019 11:25 AM IST