...तो इसलिए डॉ. अंबेडकर ने छोड़ दिया था हिंदू धर्म, जलाई मनुस्मृति
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डिजिटल डेस्क, भोपाल। आज 6 दिसंबर को संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि है। अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित नगर सैन्य छावनी महू में हुआ था। आज यह महू तहसील मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में आती है। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। हम आपको बता दें कि संविधान निर्माता डॉ. साहब ने एक वक्त यह भी कहा था, "मैं हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं।"
बाबा साहेब ने मध्यप्रदेश के एक दलित परिवार में उस दौर में जन्म लिया था, जिस वक्त छूआ-छूत, जातिप्रथा और भेदभाव चरम पर था। उन्होंने इसी छूआ-छूत और भेदभाव के बीच संघर्ष करते हुए अपनी शिक्षा दीक्षा ग्रहण की। इसके बाद जब वे 1923 में विदेश से उच्च शिक्षा ग्रहण कर भारत लौटे तब भी हालात में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया था।
बाबा साहेब के निधन को 60 साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन आज भी समाज में उनके आदर्शों को उतनी तरजीह नहीं दी जा रही है। अधिकाशं देखने को मिलता है कि लोग बाबा साहेब की तो पूजा करते हैं, लेकिन उनके आदर्शों और कथनों को भुला चुके हैं। आज भी केंद्र और देश के अधिकांश राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर कांग्रेस जैसे सबसे पुराने तथा बीएसपी, आरपीआई जैसे क्षेत्रीय दलों में भी खुद को बाबा साहेब की विचारधारा के ज्यादा से ज्यादा करीबी बताए जाने की होड़ मची रहती है।
हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं
एक दौर था जब बाबा साहब दलितों को उनका हक दिलाने के लिए उन्हें एकजुट करने और सशक्त बनाने में जुटे थे। मगर उतनी ही ताकत के साथ उनके विरोधी भी उन्हें रोकने के लिए जोर लगा रहे थे। लंबे संघर्ष के बाद बाबा साहब को भरोसा हो गया था कि वे हिंदू धर्म से जातिप्रथा और अस्पृश्यता की कुरीतियां दूर नहीं कर पा रहे हैं। तब उन्होंने कहा था कि "मैं हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं।
1956 में त्याग दिया था हिंदू धर्म
बाबा साहब के जीवन में 1940-50 का दशक बहुत महत्वपूर्ण रहा था। पहला तो यह कि 1947 में भारत को अंग्रेंजों के शासन से आजादी मिली थी। दूसरा यह कि इसी दौरान बाबा साहब बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने श्रीलंका (तब सीलोन) गए थे। इसके बाद 1956 को उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ने का फैसला लिया और 14 अक्टूबर 1956 को ही नागपुर में उन्होंने अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया। वहीं इससे पहले 25 दिसंबर, 1927 को डॉ. अंबेडकर और उनके समर्थकों ने सामाजिक बंटवारे और भेदभाव का आधार तैयार करने वाली किताब मनुस्मृति को भी फूंक दिया था।
विश्व का सबसे बड़ा धर्म-परिवर्तन
साल 1956 बाबा साहब के अलावा विश्व के लिए एक अलग ही इतिहास गढ़ने वाला रहा है। इसी वर्ष 14 अक्टूबर को बाबा साहब के साथ तकरीबन 10 लाख दलितों ने तब बौद्ध धर्म अपनाया और ये पूरी दुनिया में धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना थी। हालांकि खुद उन्होंने इसे धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि धर्म-जनित शारीरिक, मानसिक व आर्थिक दासता से मुक्ति बताया। इस मौके पर उन्होंने जो 22 प्रतिज्ञाएं लीं उससे हिंदू धर्म और उसकी पूजा पद्धति को उन्होंने पूर्ण रूप से त्याग दिया।
बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानंद दिलाई थी दीक्षा
भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को बौद्ध धर्म की दीक्षा देने वाले 90 वर्ष के बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानंद का गुरुवार 30 नवंबर को निधन हो गया था। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे और लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में भर्ती थे। बौद्ध भिक्षु प्रज्ञानंद का जन्म श्रीलंका में हुआ था। 1942 में डॉ प्रज्ञानंद भारत आकर बस गए थे। प्रज्ञानंद लखनऊ के रिसालदार पार्क के बुद्ध विहार में रहते थे। उन्होंने 14 अप्रैल 1956 को नागपुर में सात भिक्षुओं के साथ डॉ. भीम राव अम्बेडकर को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी।
Created On :   6 Dec 2017 12:26 AM IST