पहले ही लिखी जा चुकी थी बाबरी ढांचा गिराने की स्क्रिप्ट!

demolition of the Babri Masjid on 6 december 1992
पहले ही लिखी जा चुकी थी बाबरी ढांचा गिराने की स्क्रिप्ट!
पहले ही लिखी जा चुकी थी बाबरी ढांचा गिराने की स्क्रिप्ट!

डिजिटल डेस्क, अयोध्या। छह दिसंबर को अयोध्या कांड की बरसी है। ठीक 25 साल पहले 1992 में विश्व हिंदू परिषद के आहवान पर देश भर से पहुंचे लाखों कारसेवकों की भीड़ ने इस विवादित ढांचे को ढहा दिया था। 1987 से शुरू हुए रामजन्म भूमि आंदोलन ने देश की राजनीति की दिशा बदल दी। जो भाजपा कभी अछूत थी, जिसके 1984 में सिर्फ दो सांसद थे, वो भाजपा इसी हिंदुत्व के जरिए 2013 में पूर्ण बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज हो गई। इससे पहले भी भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। इस पूरे आंदोलन के केंद्र में रहे लालकृष्ण आडवाणी दो दशक तक देश की राजनीति के शीर्ष पर रहे। इस आंदोलन ने देश को आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और जयभान सिंह पवैया जैसे नेता दिए। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस आंदोलन की देन हैं। उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ भी इस आंदोलन से जुड़े थे। योगी को छोड़कर बाकी राजनेता अब राजनीतिक बियावान में खो गए हैं। उमा भारती भले ही केंद्र में मंत्री हैं लेकिन उनका वो जलवा सरकार में नहीं है। 

5 दिसंबर को हुई सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के विवादित राम जन्मभूमि मामले में 5 दिसंबर को सुनवाई हुई। बता दें कि ये सुनवाई बाबरी मस्जिद गिराए जाने के 25 साल पूरे होने के एक दिन पहले हुई। सुनवाई में सभी पक्षों ने अपनी बात कही। सुनवाई में कपिल सिब्बल ने राम मंदिर को बीजेपी का चुनावी मुद्दा बताया। उन्होंने कहा कि अयोध्‍या में राम मंदिर बनाने की बात बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र में रखी थी। वकील कपिल सिब्‍बल ने कहा कि मामले के फैसले का असर पूरे देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर पड़ सकता है। इसलिए वे कोर्ट से गुजारिश करते हैं कि देश में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए 15 जुलाई 2019 के बाद इस मामले पर सुनवाई शुरू करें। वहीं कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार के सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहतान ने सिब्बल का जवाब देते हुए उनके सभी कथनों को खारिज कर दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि मामले से संबंधित दस्तावेज और अनुवाद प्रतियां रिकॉर्ड में हैं। सभी पक्षों की बात सुनकर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने मामले की सुनवाई 8 फरवरी, 2018 तक टाल दी। 

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ये बात तो थी 5 दिसंबर की, अब हम आपको 25 साल पहले की उस पूरी घटना से रूबरू कराते हैं। 6 दिसंबर, 1992 में अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहा दिया गया। 25 साल पहले की बाबरी विध्वंस को जानने से पहले आपको 1990 की बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को जानना जरूरी है।

लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा

1989 में हिमाचल प्रदेश के पालनपुर में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इसमें राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसे रामजन्म भूमि आंदोलन का नाम दिया गया। 13 सितंबर 1990 को गुजरात इकाई के महासचिव नरेंद्र मोदी ने रथ यात्रा के औपचारिक कार्यक्रमों और यात्रा के मार्ग के बारे में बताया। यह पहला मौका था जब मोदी पहली बार राजनीति के राष्ट्रीय मंच पर महत्वपूर्ण भूमिका में सामने आए थे। बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन को जोर देने के लिए 25 सितंबर, 1990 को सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथयात्रा शुरू की। रथयात्रा के पहले चरण में 14 अक्टूबर को आडवाणी दिल्ली पहुंचे।

आडवाणी की रथयात्रा

18 अक्टूबर को तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी के कहने पर ज्योति बसु ने आडवाणी से बातचीत कर रथयात्रा रोकने की बात कही लेकिन आडवाणी नहीं माने। दूसरे चरण की शुरुआत करने के लिए आडवाणी 19 अक्टूबर को धनबाद के लिए रवाना हुए। बीजेपी ने 30 अक्टूबर को राममंदिर निर्माण का काम शुरू कराने की योजना बनाई थी। माना जाता है कि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद अल्पसंख्यकों के चहेते बनना चाहते थे इसलिए उन्होंने धनबाद में रथयात्रा को रोकने के लिए उपायुक्त अफजल अमानुल्लाह (बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक सैयद शहाबुद्दीन के दामाद) को आदेश दिया कि वे आडवाणी को गिरफ्तार करें। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। बिहार के समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को आई.ए.एस अधिकारी आर.के सिंह ने गिरफ्तार किया।आपको बता दें कि आर.के सिंह हाल अब बीजेपी के सांसद हैं।

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सांसद आर.के सिंह 

 

मुस्लिम युवक था आडवाणी के रथ का सारथी 
जिस रथ पर आडवाणी सवार थे उसे सलीम मक्कानी नाम का मुस्लिम युवक चला रहा था। भले ही ये रथ यात्रा यहां रुक गई हो, लेकिन राम मंदिर और अयोध्या को लेकर बीजेपी और लालकृष्ण आडवाणी ने जो संदेश दिया उससे उनकी पार्टी की छवि हिन्दुत्व को लेकर साफ देखी जा सकती थी। आज बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने में मोदी का योगदान माना जाता हो और आडवाणी को पार्टी में हासिए पर खड़ा कर दिया हो, लेकिन बीजेपी को नई उचाईयों तक ले जाने और पार्टी की एक अलग छवि बनाने का योगदान  लालकृष्ण आडवाणी को दिया जाता है। आडवाणी की गिरफ्तारी के कारण ही तब बीजेपी ने वी. पी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। सरकार गिर गई थी।

नवंबर 1992 
अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहा देने के लिए नवंबर से तैयारी तेज होने लगी थी। कार सेवक के दल यहां इकट्ठे होने लगे थे। शाम सवेरे राम चबूतरा पर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के नेताओं की मीटिंग होने लगी थी। लेकिन किसी को कानों कान खबर नहीं थी कि यहां क्या होने वाला है। नवंबर के आखिर तक अयोध्या में कारसेवकों की संख्या बढ़ने लगी। नेताओं के भाषण और नारों का उद्घोष तेज होने लगा। कारसेवकों का कहना था कि इस बार वे खाली हाथ नहीं जाएंगे। वीएचपी नेता आचार्य धर्मेंद्र ने अपने भाषण में कहा था कि इस इमारत को हर हाल में गिराना है। तीखे बोल से भरे भाषणों से स्पष्ट हो गया था कि यहां कुछ बड़ा होने बाला है। हालांकि यहां कारसेवकों, वीएचपी, बजरंग दल का कहना था कि ये सभी लोग सरयू नदी से एक-एक मुट्ठी बालू लाकर विवादित 2.77 एकड़ में बने गड्ढे को भरेंगे।

05 दिसंबर 1992 लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण
बाबरी ढांचा गिराने के एक दिन पहले बीजेपी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ में रैली को संबोधित किया। वाजपेयी ने रैली में कड़े तेवर दिखाए। उऩ्होंने कहा कि कारसेवा करके अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवेहलना नहीं होगी। वाजपेयी ने कहा कि SC के आदेश अनुसार हम कीर्तन और भजन कर सकते हैं। भजन और कीर्तन खड़े-खड़े तो नहीं हो सकता। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि अयोध्या में नुकीले पत्थर निकले हैं और उन पर कोई नहीं बैठ सकता तो जमीन को समतल करना पड़ेगा, बैठने लायक करना पड़ेगा। यज्ञ का आयोजन होगा तो कुछ निर्माण भी होगा। कम से कम वेदी तो बनेगी. मैं नहीं जानता कल वहां क्या होगा. मेरी अयोध्या जाने की इच्छा है, लेकिन मुझे कहा गया है कि तुम दिल्ली में रहो।

6 दिसंबर तक बदलने लगा था रुख
सभी कार्यकर्ता उग्र होने लगे। 4 दिसंबर को नारा दिया गया कि मिट्टी नहीं सरकाएंगे, ढांचा तोड़कर जाएंगे। 6 दिसंबर को लाखों की संख्या में कार सेवक पहुंच चुके थे। सुबह से ही गहमा-गहमी तेज हो चुकी थी। सुबह 11 बजे कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद पर सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की लेकिन कामयाब न हो सके।

 

ढांचा गिराते हुए कारसेवक

थोड़ी देर बाद ही वीएचपी नेता अशोक सिंघल, बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी भी नजर भी इस विवादित ढ़ाचे के आस पास नजर आने लगे। बाड़े में लगे गेट का ताला भी तोड़ दिया गया। थोड़ी देर में ही सुरक्षा घेरा टूट गया सैकड़ो कारसेवक ढ़ाचे की गुंबद पर चढ़ चुके थे। कुदाल लिए हुए कारसेवक तब तक मस्जिद गिराने का काम शुरू कर चुके थे। सरकारी आकड़ो के अनुसारी 15 से ज्यादा कारसेवक मारे गए। देखते ही देखते ढांचा पूरा गिर गया। हालांकि पुलिस ने उन पर हमला किया। विश्व हिंदू परिषद का कहना था कि 50 से ज्यादा लोग मारे गए। विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का नाम मौलाना मुलायम रख दिया।

ढांचा गिराते हुए कारसेवक 

 

क्यों गिराई गई बाबरी मस्जिद

बीजेपी समेत कई हिन्दु संगठनों का मामना है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है और इस जगह पर पहले राम मंदिर हुआ करता था। जिसे बाबर के सेनापति मीर बांकी ने 1530 में तोड़कर यहां पर मस्जिद बना दी थी। तभी से हिंदू-मुस्लिम के बीच इस जगह को लेकर विवाद चलता रहा है। माना जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर के शासन में हिंदू भगवान राम के जन्म स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया। मस्जिद बाबर ने बनवाई इसलिए इसे बाबरी मस्जिद कहा गया। 1853 में हिंदुओं ने आरोप लगाया कि राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई, इसके बाद दोनों के बीच हिंसा हुई।

Created On :   5 Dec 2017 6:45 PM IST

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