विचाराधीन कैदी की हिरासत नहीं बढ़ाई जा सकती, कोविड में भी नहीं

Custody of undertrial prisoner cannot be extended, not even in Kovid
विचाराधीन कैदी की हिरासत नहीं बढ़ाई जा सकती, कोविड में भी नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट विचाराधीन कैदी की हिरासत नहीं बढ़ाई जा सकती, कोविड में भी नहीं

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि चूक जमानत (डिफॉल्ट बेल) संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है और एक विचाराधीन कैदी की हिरासत को महामारी के समय में भी यांत्रिक रूप से नहीं बढ़ाया जा सकता। दहेज हत्या के एक आरोपी की जमानत याचिका पर रविवार को सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे। उन्होंने कहा कि संबंधित अदालत सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत निर्धारित अधिकतम 15 दिनों की अवधि के लिए यांत्रिक रूप से हिरासत की अवधि नहीं बढ़ाएगी।

जांच पूरी करने और आरोपपत्र जमा करने के 60वें, 90वें या 180वें दिन (अपराध की प्रकृति और किसी विशेष अधिनियम की प्रयोज्यता के आधार पर) को ध्यान में रखते हुए हिरासत अवधि बढ़ाई जाएगी। एक अन्य दिशानिर्देश में कहा गया है कि यदि ये दिन 15 दिनों की अधिकतम विस्तार अवधि से पहले आते हैं, तो हिरासत सिर्फ 60वें, 90वें या 180वें दिन तक बढ़ाई जाएगी। यह फैसला दहेज हत्या के मामले में आया, जिसमें आरोपी और उसके परिवार के सदस्यों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी (दहेज मौत) 498ए (एक महिला के पति या उसके रिश्तेदार के साथ क्रूरता करना), 406 (भरोसे का आपराधिक उल्लंघन), 34 (सामान्य इरादा) के तहत 16 जनवरी, 2020 को मामला दर्ज किया गया था।

याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता को 18 जनवरी, 2020 को गिरफ्तार किया गया था और अगले दिन अदालत में पेश करने पर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। उनकी हिरासत को समय-समय पर बढ़ाया गया और उनकी न्यायिक हिरासत की अधिकतम अवधि 90 दिनों से अधिक हो गई। याचिका में कहा गया है कि 24 मार्च 2020 से, जब कोविड-19 लॉकडाउन लगाया गया था, न्यायिक हिरासत में विचाराधीन कैदियों को संबंधित अदालतों के समक्ष पेश नहीं किया जा सकता था और उनकी हिरासत जेल विजिटिंग मजिस्ट्रेट द्वारा बढ़ा दी गई थी। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील राजेश आनंद ने तर्क दिया कि हालांकि, इस दौरान आरोपी के खिलाफ कोई आरोपपत्र दायर नहीं किया गया था।अदालत ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के साथ-साथ कारागार महानिदेशक से भी उठाए गए कदमों के बारे में पूछा, ताकि एक विचाराधीन व्यक्ति को डिफॉल्ट बेल लेने के अपने अधिकार के बारे में सूचित किया जा सके और इस तरह के अधिकार का समय पर प्रयोग किया जा सके।

(आईएएनएस)

 

Created On :   19 Oct 2021 7:30 PM IST

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