आम भारतीय मोदी शासन द्वारा अपनाए जा रहे सुधार एजेंडे के बारे में निश्चित नहीं
- आश्रम कानूनों में बदलाव का विरोध
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले के खिलाफ एक ओर जहां किसानों का एक वर्ग जश्न मनाने में व्यस्त है तो दूसरी ओर सुधारों के मोर्चे से बुरी खबरें आने के संकेत मिले हैं। ये जानकारी आईएएनएस-सीवोटर पोल के जरिये उभरकर सामने आई हैं।
सरकार द्वारा आक्रामक तरीके से अपनाए जा रहे सुधार के उपाय केवल कृषि कानून ही नहीं थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई अन्य सुधारों के अलावा दो और सुधार उपायों पर बहुत अधिक राजनीतिक पूंजी लगाई है। पहला प्राचीन श्रम कानूनों में बदलाव से संबंधित है जो केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को लाभान्वित कर रहे हैं जबकि अधिकांश श्रमिकों (विश्वसनीय अनुमानों के अनुसार लगभग 90 प्रतिशत श्रमिकों) को लाभ से वंचित कर रहे हैं। 2020 से श्रम संहिताओं में परिवर्तन लागू होने का इंतजार कर रहे हैं।
लोगों से यह पूछे जाने पर कि कृषि कानूनों को निरस्त करने से ट्रेड यूनियनों और उनके नेताओं को श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करने के लिए प्रोत्साहित करेगा इस पर लगभग 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सहमति व्यक्त की। एनडीए और विपक्षी समर्थकों की राय में ज्यादा अंतर नहीं था।
दिलचस्प बात यह है कि 25 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने कोई निश्चित राय व्यक्त नहीं की, जिसका मतलब है कि वे श्रम सुधारों के बारे में अनिश्चित हैं। कुछ ऐसा ही सामने आया जब उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या सरकार के विरोधी महत्वाकांक्षी निजीकरण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे लगभग 48 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने एनडीए और विपक्षी समर्थकों के बीच बहुत अंतर नहीं होने से सहमति व्यक्त की। लगभग 25 प्रतिशत अनिश्चितता को दर्शाते हुए एक राय नहीं दे सके।
अंत में आईएएनएस-सीवोटर पोल ने उत्तरदाताओं से पूछा कि क्या भारतीय और विदेशी निवेशकों को यह संदेश मिलेगा कि भारत में सुधार नहीं हो रहे हैं। लगभग समान 36 प्रतिशत सहमत और असहमत थे। वहीं एक बार फिर 29 प्रतिशत एक राय व्यक्त नहीं कर सके। इसका मतलब साफ है कि आम भारतीय अब सुधार के एजेंडे को मोदी शासन द्वारा जोश के साथ आगे बढ़ाने के बारे में निश्चित नहीं है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की भविष्य की संभावनाओं के लिए बुरी खबर हो सकती है।
(आईएएनएस)
Created On :   21 Nov 2021 6:30 PM IST