केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा-राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार करेगा केंद्र
- वैचारिक दृष्टिकोण भारत को मजबूती देते हैं
डिजिटल डेस्क, नयी दिल्ली। राजद्रोह कानून की संवैधानिकता पर चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई में केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में अनुरोध करते हुये कहा है कि शीर्ष अदालत राजद्रोह कानून के मसले पर अपना समय बर्बाद नहीं करे। सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगा।
केंद्र सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को तक तक इंतजार करना चाहिये जब तक केंद्र समुचित फोरम में इस कानून पर पुनर्विचार का मामला न उठाये। गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में बताया कि सरकार ने राजद्रोह कानून की जांच करने और उस पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है।
गृह मंत्रालय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा और वह औपनिवेशिक काल के कानूनों को खत्म करने के बारे में स्पष्ट राय रखते हैं। मंत्रालय ने कहा कि प्रधानमंत्री को इस मुद्दे के बारे में व्यक्त किये जाने वाले विभिन्न दृष्टिकोण की जानकारी है। प्रधानमंत्री ने कई मौकों पर नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के पक्ष में अपनी स्पष्ट राय व्यक्त की है। उन्होंने कई बार यह बात की है कि विभिन्न वैचारिक दृष्टिकोण भारत को मजबूती देते हैं।
मंत्रालय ने कहा कि प्रधानमंत्री यह मानते हैं कि जब देश आजादी के 75 साल का जश्न मना रहा है तो एक देश के रूप में यह जरूरी हो जाता है कि औपनिवेशिक कानूनों तथा पद्धतियों के उस बोझ को हटाया जाये, जो अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार राजद्रोह के संबंध में व्यक्त किये गये विभिन्न विचारों से पूरी तरह अवगत है और साथ ही वह देश की एकता और अखंडता की रक्षा में प्रतिबद्धता के वक्त नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार संबंधी चिंताओं पर भी विचार कर रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में केंद्र ने राजद्रोह कानून पर पुनिर्विचार करने का निर्णय लिया है।
गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार ने 2014-15 से 1,500 पुराने कानूनों को खत्म किया और 25 हजार से अधिक अनुपालना संबंधी बोझ को कम किया। ये लोगों के लिये अनावश्यक बाधा बन रहे थे। सुप्रीम कोर्ट रिटायर्ड मेजर जनरल एस.जी. वोम्बटकेरे, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए, जो राजद्रोह कानून है उसकी संवैधानिकता को चुनौती दी है। इसमें अधिकतम सजा उम्रकैद की मिलती है।
गत साल सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि ब्रिटिश शासन से आजाद होने के 75 साल भी यह कानून उपयोग में क्यों है। सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के खिलाफ इस कानून के दुरुपयोग पर भी चिंता व्यक्त की थी। चीफ जस्टिस ने तब कहा था कि यह कानून औपनिवेशिक कानून है, जिसका इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज को दबाने के लिये किया गया। आजादी के 75 साल भी यह कानून क्यों जरूरी है।
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Created On :   9 May 2022 10:30 PM IST