बिहार: गया में पुलवामा के शहीदों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान
- गया में एक ऐसा भी परिवार है
- जो पिछले 19 सालों से गरीबों के लिए पिंडदान करता है
- जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में शहीद हुए 40 सैनिकों की आत्मा की शांति के लिए किया पिंडदान
- सूरत के एक कोचिंग संस्थान में आग लगने की घटना में मौत के शिकार हुए 22 बच्चों की आत्मा की शांति भी पिंडदान और तर्पण किया
डिजिटल डेस्क, गया। सनातन धर्म में मान्यता है कि किसी भी मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति तभी मिलती है, जब उस मृत व्यक्ति के नाम पर पितृपक्ष में कोई पिंडदान और श्राद्ध करे। पितृपक्ष में अपने पूर्वजों और पितरों को पिंडदान और तर्पण करने के लिए लाखों लोग पिंडदान के लिए बिहार के गया पहुंचते हैं। गया में हालांकि एक ऐसा भी परिवार है, जो पिछले 19 सालों से गरीबों और ऐसे लोगों के लिए पिंडदान करता है, जिन्होंने जीवित रहते समाज के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया हो या किसी घटना में बड़ी संख्या में जान गंवा चुके हों।
गया के रहने वाले दिवंगत सुरेश नारायण के पुत्र और समाजसेवी चंदन कुमार सिंह ने गया के प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर के नजदीक देवघाट पर पूरे हिंदू रीति-रिवाज और धार्मिक परंपराओं के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में शहीद हुए 40 सैनिकों के साथ ही सूरत के एक कोचिंग संस्थान में आग लगने की घटना में मौत के शिकार हुए 22 बच्चों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण किया।
चंदन ने आईएएनएस से कहा कि उनके पिता सुरेश नारायण ने वर्ष 2001 में गुजरात में जब भूकंप आया था तब ऐसे बच्चों को देखा था जो कल तक अपने परिजनों के साथ महंगी कारों में घूमते थे, लेकिन वे अचानक सड़कों पर भीख मांग रहे थे।
उसी दिन से नारायण के मन में यह विचार आया कि क्यों न इन सैकड़ों लोगों के लिए पिंडदान किया जाए। उसके बाद से इस परिवार के लिए यह कार्य परंपरा बन गई। चंदन ने कहा कि उन्होंने मुजफ्फरपुर में एक्यूट इसेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से काल के गाल में समाए 135 से ज्यादा बच्चे और मॉब लिंचिंग में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए भी तर्पण किया और देवघाट में कर्मकांड किया।
चंदन बताते हैं, मेरे पिता ने लगातार 13 वर्षो तक इस परंपरा का निर्वाह किया और उनके परलोक सिधारने के बाद मैं इस कार्य को निभा रहा हूं। वे कहते हैं कि पूरा कार्य बाबू सुरेश नारायण मेमेारियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया जाता है।
उनका कहना है कि पूरी दुनिया अपनी है। अगर किसी का बेटा या परिजन होकर पिंडदान करने से किसी की आत्मा को शांति मिल जाती है, तो इससे बड़ा कार्य क्या हो सकता है। चंदन कहते हैं कि उनके पिता ने अपनी मृत्यु के समय ही कहा था कि वे रहे या न रहें परंतु यह परंपरा चलनी चाहिए।
गया के देवघाट पर चंदन ने धार्मिक कर्मकांडों और परंपराओं के मुताबिक मंगलवार को सामूहिक तर्पण और पिंडदान किया। यह पिंडदान रामानुज मठ के जगद्गुरु वेंटकेश प्रपणाचार्य के आचार्यत्व के निर्देशन में हुआ। वेंटकेश प्रपणाचार्य ने कहा कि घटना-दुर्घटना, प्राकृतिक आपदाओं में शिकार हुए लोग जिनका कोई नहीं, उनके लिए सामूहिक पिंडदान करने का धार्मिक पुस्तकों में उल्लेख मिलता है।
Created On :   25 Sept 2019 8:00 PM IST