एशिया का सबसे बड़ा स्लम मानें जाने वाले धारावी का कायाकल्प करेंगे आडाणी, धारावी पुनर्विकास परियोजना में आडाणी इंफा ने लगाई 5096 करोड़ रुपये की बोली

एशिया का सबसे बड़ा स्लम मानें जाने वाले धारावी  का कायाकल्प करेंगे आडाणी, धारावी पुनर्विकास परियोजना में आडाणी  इंफा ने लगाई 5096 करोड़ रुपये की बोली
अडाणी के सहारे धारावी एशिया का सबसे बड़ा स्लम मानें जाने वाले धारावी का कायाकल्प करेंगे आडाणी, धारावी पुनर्विकास परियोजना में आडाणी इंफा ने लगाई 5096 करोड़ रुपये की बोली
हाईलाइट
  • 2003-04 में महाराष्ट्र सरकार ने धारावी के लिए रिडेवलपमेंट प्लान लेकर आई । 

डिजिटल डेस्क,मुंबई।  एशिया का सबसे बड़ा स्लम एरिया धारावी का जल्द कायाकल्प होने वाला है। जिसका जिम्मा आडाणी इंफ्रा ने लिया है। 550 एकड़ में फैली धारावी  रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए आडानी ग्रुप ने सबसे ऊंची बोली लगाई। अडाणी इंफ्रा ने इसके लिए 5,069 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। वहीं, इस प्रोजेक्ट के लिए डीएलएफ ने 2,025 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। इसके आलावा तीसरी कंपनी नमन ग्रुप ने भी बोली लगाई, लेकिन वह बोली जीत नहीं पाई। बता दें कि धारावी रिडेवलपमेंट का काम 2004 से ही चल रहा था, लेकिन कुछ कारणों के कारण अब जाकर इस टेंडर को मंजूरी दी गई है।

गौरतलब है कि इस बस्ती को अंग्रेजों के काल में बसाया गया था। आज यह एशिया की पहला और दुनिया का तीसरा स्लम एरिया है। धारावी में करीब 6 से 10 लाख लोग निवास करते हैं। यहां पर 58 हजार से ज्यादा परिवार रहते है। 

1882 में अंग्रेजों ने बसाया धारावी 

साल 1882 में अंग्रेजों ने धारावी को बसाया था। इस बस्ती को बसाने के पीछे अंग्रेजों की बड़ी वजह मजदूरों को किफायती ठिकाना देना था। फिर यहां पर मजदूर रोजगार पाने के लिए आने लगे। जिसके बाद झुग्गी बस्तियां में बदल गई। 

एक किलोमीटर के दायरे में रहते है 2 लाख से ज्यादा लोग
 
यहां पर इतनी झुग्गियां और बस्तियां मौजूद है कि दूर से देखने पर आपकों जमीन दिखाई नहीं देगी। रिपोर्ट के मुताबिक, यहां एक किलोमीटर के दायरे में 2 लाख से ज्यादा लोग रहते है। 

इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते है कि धारावी में 100 वर्ग फीट वाली एक झुग्गी में 8 से 10 लोग रहते है। यहां पर कुछ झुग्गी ऐसी भी बनी हैं, जिसमें कारखाने लगे हुए है और यहां काम करने वाले मजदूर रात में यहीं पर सोते भी है। इसे आप मजदूरों के लिए कारखाना और घर दोनों समझ सकते है। यही नहीं यहां पर लगभग 80 प्रतिशत लोग पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं। 

धारावी की पहचान झुग्गी-बस्ती 
 
मुंबई में धारावी की पहचान झुग्गी-बस्ती से होती है। ऐसा माना जाता है कि यह जिद्दी लोगों की बस्ती है। इन गलियों में दिहाड़ी मजदूर और अपना कारोबार करने वाले लोग रहते है। धारावी के एक तरफ माहिम और तो दूसरी तरफ सायन रेलवे स्टेशन मौजूद है। यहीं रेलवे स्टेशन से हर रोज लाखों लोग अपने काम पर आते-जाते है। इस रेलवे स्टेशन पर भीड़ इतनी अधिक रहती है कि ट्रेन में घुसने के लिए साहस और हौसला चाहिए। 

मुंबई की तरह ही धारावी में लाखों लोग काम के पीछे भागते है। बस फर्क इतना है कि मुबई के लोग बड़े-बड़े मकानों और फ्लैटों में रहते है, तो वहीं धारावी के लोग छोटे और गंदी बस्तियों में रहने को मजबूर है। 

धारावी में  5 हजार से अधिक कारोबारी रजिस्टर्ड 

साल  2008 में आई फिल्म "स्लमडॉग मिलियनियर" की शूटिंग धारावी में हुई थी। इस फिल्म दिखाया गया कि कैसे इस झुग्गी-बस्ती में रहने वाला एक लड़का करोड़पति बन जाता है। ये ऐसे ही स्लमडॉग की बस्ती है। जहां पर हर चौथे घर में एक एंटरप्रेन्योर मिल जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक, यहां तकरीबन 22 हजार से ज्यादा छोटे कारोबारी रहते हैं। इस स्लम एरिया में गहने और चमड़े से जुड़ी हुई चीजें को तैयार किया जाता है। यहां पर बने हुए प्रोडेक्ट देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बिकने के लिए जाते हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार, इन झुग्गी-बस्तियों में 5 हजार से अधिक कारोबारी रजिस्टर्ड है। वहीं यहां पर 15 हजार से अधिक ऐसे कारखाने मौजूद है जो एक-एक कमरें में बने हुए है। यहां कि रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री की बात करें तो यह इंडस्ट्री 2.5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देने का काम करती है। इसमें अधिक मात्रा में महिला और बच्चे भी काम करते है।

ऐसा कहा जाता है कि धारावी की एक-एक इंच जमीन का प्रोडक्टिविटी काम के लिए उपयोग किया जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, धारावी के यहां से हर साल 1 अरब डॉलर यानी लगभग 80 अरब रुपये का कारोबार होता है। 

प्लेग, हैजा और कोरोना महामारी में धारावी को हुआ सबसे अधिक नुकसान 

धारावी इतना अधिक भीड़-भाड़ वाला इलाका है कि यहां पर आपकों चौक-चौराहें पर गंदगी हमेशा गंदगी देखने को मिलती है। यही कारण है कि यहां बीमारियां काफी तेजी से फैल जाती है। 1896 में जब दुनियाभर में प्लेग महामारी ने दस्तक दी तो उसका असर धारावी में भी देखने को मिला था। जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह थी कि उस वक्त भी यहां पर काफी ज्यादा तदाद में लोग रहते थे।  प्लेग रोग खत्म होने के बावजूद भी अगले 25 साल तक धारावी में रह रहे लोगों को तरह-तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ा था। 

यहीं नहीं साल 1986 में जब हैजा फैला, तब उसका भी भयावह असर धारावी में देखने को मिला था। ऐसा कहा जाता है कि उस वक्त मुंबई के ज्यादातर अस्पतालों में धारावी के ही लोग थे। 

साल 2020 में आई कोरोना महामारी ने दुनिया के हर देश को सोचने पर मजबूर कर दिया था। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में धारावी इसका सबसे बड़ा हॉटस्पॉट एरिया बना। कोरोना का सबसे पहला केस मुंबई के धारावी में ही देखा गया था। उसके बाद यहां कि स्थिति काफी ज्यादा खराब होती गई। दिनों दिन यहां मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही थी। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यहां कि घनी आबादी को माना जाता है। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न किया जाना भी एक बड़ी समस्या थी। 


धारावी का होगा कायाकल्प

धारावी के कायाकल्प की शुरुआत साल 1999 से हुई, तब महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन की सरकार हुआ करती थी। तब गंठबंधन सरकार में पहली बार धारावी को रिडेवलप करने का प्रस्ताव रखा गया। जिसके बाद 2003-04 में महाराष्ट्र सरकार ने धारावी के लिए रिडेवलपमेंट प्लान लेकर आई । 

जिसके पीछे सरकार की मनसा थी कि धारावी की गिनती सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ियों में न हो। बल्कि एक साफ-सुथरे और अच्छी बस्ती के रूप में पहचाना जाए और यहां झुग्गी-झोपड़ी की जगह पर बड़े-बड़े कमर्शियल कॉम्प्लेक्स मौजूद हो। 

गौरतलब है कि धारावी का रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट 20 हजार करोड़ रूपये का है। इस प्रोजेक्ट को 17 साल में पूरे होने का लक्ष्य रखा गया है। जबकि यहां पर रहने वाले लोगों को 7 साल में पक्के घर दिए जायेंगे। धारावी रिडेवलपमेंट परियोजना के तहत, जो लोग 1 जनवरी  साल 2000 से पहले धारावी में बसे है उन्हें फ्री में पक्का मकान दिया जाएगा। वहीं जो लोग 2000 से 2011 के बीच आकर धारावी में बसे है, उन्हें अपने लिए मकान खरीदना हो तो उसकी कीमत चुकानी होगी। 


 

Created On :   30 Nov 2022 9:59 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story