एक ऐसा समुदाय, जिसने सब कुछ बर्बाद होने के बावजूद खुद को ऊपर उठाया

A community that, in spite of everything being ruined, raised itself
एक ऐसा समुदाय, जिसने सब कुछ बर्बाद होने के बावजूद खुद को ऊपर उठाया
कश्मीरी पंडितों की कहानी एक ऐसा समुदाय, जिसने सब कुछ बर्बाद होने के बावजूद खुद को ऊपर उठाया
हाईलाइट
  • किसी परिवार के पास गुजारा करने के लिए पर्याप्त धन भी नहीं था।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कश्मीरी पंडितों, जो एक अल्पसंख्यक समुदाय है, जिसके पीछे 5,000 साल पुरानी विरासत है, ने एक अकेली लड़ाई लड़ी है जो उन्हें नष्ट करने के लिए शुरू हुई थी।कश्मीर में कट्टरपंथी आतंकवाद ने समुदाय को सामूहिक रूप से निशाना बनाया और उन्हें उनकी जन्मभूमि से बाहर कर दिया। यह कुछ ऐसा था, जिसके बारे में किसी ने किसी से सुना या फिर किताबों में पढ़ा, कि कैसे विनाश हुआ और नरसंहार को अंजाम दिया गया तो वह व्यक्ति सिहर उठा।

यह एक आधुनिक समय की त्रासदी है, जिसने उस समुदाय को तोड़ने की कोशिश की, जो अपनी संस्कृति, भाषा, आस्था, रीति-रिवाजों, भूमि, पहाड़ों, नदियों और झीलों से सदियों से जुड़ा हुआ था और उन्हें लेकर भावुक था। इस त्रासदी से उस समुदाय को गुजरना पड़ा, जो शांति, मानवता, भाईचारे, कश्मीरियत में विश्वास करता था और इस मुहावरे का अक्षरश: पालन करता था कि कलम तलवार से अधिक शक्तिशाली है।

5,000 वर्षों के इतिहास को संजोने वाला समुदाय इस लड़ाई में अकेला पड़ गया, मगर जिस प्रकार से उसने अकेले ही इस लड़ाई को लड़ा, वह न केवल काबीले-तारीफ है, बल्कि इन लोगों ने दुनिया के लिए एक उदाहरण भी पेश किया है कि सब कुछ बर्बाद होने के बाद भी अपने जीवन स्तर को कैसे सही किया जा सकता है।ॉ1990 में, समुदाय के अधिकांश सदस्यों को उनके खिलाफ लक्षित आतंकवादी अपराधों की एक लहर के बाद कश्मीर से भागने के लिए मजबूर किया गया था।

ठंडी जलवायु और कश्मीर में अपने घरों में आराम से दिन गुजारने वाला समुदाय पलायन के बाद एकदम से 45 डिग्री सेल्सियस की जलवायु में आ गया और इस दौरान उनके पास अपने घरों जैसा आराम भी नहीं था। उस समय इनके पास पहनने को पर्याप्त कपड़े नहीं थे, सिर पर एक स्थायी छत नहीं थी। पीने को साफ पानी, पर्याप्त और पौष्टिक भोजन की कमी थी। चूंकि वे रातों-रात वे अपने ही राज्य और देश में शरणार्थी बन गए थे, इसलिए किसी परिवार के पास गुजारा करने के लिए पर्याप्त धन भी नहीं था।

उस त्रासदी-प्रेरित अराजकता और दुख के बीच, इस समुदाय ने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी और शरणार्थी शिविरों में नरक जैसा जीवन जीते हुए भी इन्होंने हार नहीं मानी। इस समुदाय की एक खासियत रही है कि ये लोग शिक्षा पर काफी जोर देते हैं। पलायन करने वाले अधिकांश माता-पिता ने भूखे रहना पसंद किया, मगर उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके बच्चों को एक अच्छी शिक्षा मिले, ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो।

ऐसी कई कहानियां सामने आई हैं, जहां विस्थापित समुदाय के सदस्यों और उनके बच्चों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। इस समुदाय के बच्चों ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन तो किया ही है, साथ ही वे खुद आत्मनिर्भर बनकर दूसरे अन्य लोगों को भी नौकरी प्रदान करके उनकी मदद कर रहे हैं।

नवीन कुंडू अपने माता-पिता के साथ श्रीनगर के इंदिरा नगर के पॉश इलाके में रहता था। भले ही उनके पिता, जो एक बैंक मैनेजर हैं, को धमकियां मिलीं, लेकिन वे घाटी छोड़कर नहीं गए। लेकिन नवीन को अप्रैल 1990 में कश्मीर से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।

नवीन ने बताया, मैं सीधे दिल्ली में उतरा। 6-7 दिनों तक तो मैं सड़कों पर रह रहा था। खाने के लिए कुछ नहीं था, फिर मैं लाजपत नगर के एक शिविर में गया। यह दयनीय था। मैं उस स्थिति को कभी नहीं भूल सकता जिसमें लोग जीने को मजबूर थे। गर्मी थी, हममें से किसी को भी गर्मी की आदत नहीं थी। शिविर का वह मंजर भयानक था। आखिरकार, कुछ महीनों के बाद, मुझे पर्यटन और यात्रा उद्योग में नौकरी मिल गई।

उन्होंने कहा, मेरे पास पैसे नहीं थे। उस गर्मी में मैं 4 किलोमीटर पैदल चलता था, दो-तीन बसें बदलता था। लेकिन मैंने कड़ी मेहनत की और दो साल के भीतर, मैं च्वाइस होटल्स के 10 सर्वश्रेष्ठ टैलेंट पूल में से एक बनकर उभरा। मैं जनरल मैनेजर बन गया और फिर उपाध्यक्ष बना। 1998 में, मैंने अपना खुद का व्यवसाय, लीजर कॉर्प शुरू किया और मेरे पहले 10 कर्मचारी सभी विस्थापित कश्मीरी पंडित थे। मेरी कंपनी अब 150 करोड़ रुपये की कंपनी बन चुकी है और आधे कर्मचारी मेरे समुदाय के शरणार्थी लोग ही हैं।

नवीन ने आगे कहा, मैं डर और निराशा के उन दिनों को कभी नहीं भूल सकता। श्रीनगर में मेरे निकटतम पड़ोसी डी. एन. चौधरी का अपहरण कर लिया गया, उनकी हत्या कर दी गई और फिर उनके शरीर को उनके घर के बरामदे में फेंक दिया गया। यह दर्दनाक था।

वहीं सुषमा शल्ला कौल का कहना है कि वह कभी भी अपने पिता के अपहरण, प्रताड़ित करने और बेरहमी से मारे जाने के सदमे से बाहर नहीं निकल पाई हैं।

उन्होंने कहा, मेरे पिता एक सीआईडी अधिकारी थे। उनके अपने पीएसओ ने उन्हें धोखा दिया। 1 मई, 1990 को, उनका अपहरण कर लिया गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया, उनके नाखून और बाल निकाले गए, उनके शरीर पर जलने के निशान थे और फिर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। हमें उनका शरीर 3 मई को मिला और हमने 6 मई को कश्मीर छोड़ दिया। उसके बाद से हम कभी वापस नहीं गए।

उन्होंने आगे कहा, मेरी मां एक शिक्षिका थीं, इसलिए हमें स्टाफ क्वार्टर मिले थे। यहां मेरे पड़ोसी और दो अन्य पीड़ितों के बच्चे थे, जिनमें एक गिरिजा टिक्कू शामिल थीं, जिन्हें सामूहिक दुष्कर्म के बाद जिंदा ही एक आरा मशीन से बेरहमी से काट दिया गया था। इसके अलावा प्राण चट्टा गंजू और उनका पति शामिल है, जिनका शव मिला लेकिन प्राण का शव कभी नहीं मिला। इसलिए, हम छह लोगों को एक जैसा ही दुख झेलना पड़ा और हम एक साथ बड़े हुए हैं।

सुषमा ने अपने पिता का सपना पूरा किया, जो डॉक्टर बनने का था। वह वर्तमान में जम्मू के एक अस्पताल में काम कर रहीं हैं और अक्सर गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करती हैं।

उन्होंने कहा, हमें कभी शोक करने का समय नहीं मिला। जो चले गए थे, वे तो चले ही गए थे, लेकिन जो पीछे रह गए थे, उन्हें जीवित तो रहना ही था। हम सभी जो विस्थापित हुए थे, उन्होंने सब कुछ खो दिया था। लेकिन हमने खुद को शिक्षित किया और इससे हमें मदद मिली।

बॉलीवुड अभिनेता राहुल भट का कहना है कि अगर सुषमा विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए आगे बढ़ सकती हैं, तो यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि इस समुदाय के भीतर कुछ खास है, जिसने इसे वापस उच्च स्तर का जीवन जीने लायक बनाया है।

भट ने कहा, शिक्षा, मूल्यों और संस्कृति में हमारे अंतर्निहित विश्वास ने निश्चित रूप से हमें बढ़ने में मदद की है। हम सभी के पास आघात और त्रासदी की कहानियां हैं, लेकिन हम में से प्रत्येक आगे बढ़ने में सक्षम है। कश्मीर से हमें बाहर निकाल दिया गया था, लेकिन वे हमारे अंदर से कश्मीर को बाहर नहीं निकाल पाए।

कश्मीरी पंडितों के लिए एक बहुत ही पवित्र स्थान विचारनाग के मूल निवासी भट के गांव में पहली हत्या तब हुई थी, जब प्राचीन मंदिर के एक 85 वर्षीय पुजारी को एक मुस्लिम गार्ड ने मौत के घाट उतार दिया था।

उन्होंने बताया, हम सबने चीख पुकार सुनी और सब दौड़ पड़े। आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन एक हिट लिस्ट जारी की गई, जिसमें मंदिर पहुंचने वाले सभी लोगों के नाम बताए गए। जब डर वास्तविक हो गया, तो मेरा परिवार सितंबर 1989 में घाटी से बाकी लोगों के भाग जाने से बहुत पहले चला गया।

19 साल की उम्र में, भट ने मिस्टर इंडिया प्रतियोगिता में भाग लिया और उन्हें सबसे अधिक फोटोजेनिक घोषित किया गया। उन्होंने टीवी धारावाहिकों हीना में किरदार निभाया है। इसके अलावा भट ने ये मोहब्बत है और अग्ली जैसी कई फिल्मों में भी कई भूमिकाएं निभाई हैं।

कोविड महामारी के दौरान, यह समुदाय एक दूसरे की मदद के लिए भी आगे बढ़ा। व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए, जिससे अस्पतालों और ऑनलाइन देखभाल केंद्रों को खोजने में मदद मिली।

ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा (प्रवासी कश्मीरी पंडित) ने जरूरतमंद परिवारों की मदद के लिए हजारों डॉलर भी जुटाए। इसने जम्मू में एक ऑक्सीजन संयंत्र को वित्तपोषित किया है और धन जुटाने के लिए एक संगीत कार्यक्रम किया। समुदाय के लोगों की ओर से प्रवासी जरूरतमंदों को छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है।

 

(आईएएनएस)

Created On :   19 March 2022 3:31 PM IST

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