समान नागरिक संहिता: यूसीसी को कोर्ट में चुनौती दे सकता है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्तराखंड विधानसभा में विधेयक पेश होने पर कही ये बात
- उत्तराखंड विधानसभा में पेश हुआ यूसीसी विधेयक
- यूसीसी पर आया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रिएक्शन
- यूसीसी को कोर्ट में चुनौती दे सकती है बोर्ड
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तराखंड के विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पेश कर दिया। मुस्लिम समुदाय के विरोध के बावजूद उत्तराखंड सरकार ने चार दिवसीय विशेष सत्र में यूसीसी विधेयक पेश किया। इस विधेयक को मंजूरी मिलने पर सभी लोगों के लिए सिविल कानून एक समान हो जाएगा। इस कानून के तहत प्रदेश के सभी नागरिकों के लिए शादी, तलाक, जमीन, गुजारा भत्ता, संपत्ति और उत्तराधिकार के कानून एक होंगे। किसी भी धर्म के व्यक्ति के लिए कानून अलग नहीं होगा। मुसलिम बोर्ड यूसीसी का विरोध करते आ रहे हैं, उनका मानना है कि इस कानून के लागू होने से शरियत से चलने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ खत्म हो जाएगा।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का मानना है कि ऐसे कानून बनाना गलत है। मौलाना रशीद ने कहा कि मुसलमानों के लिए 1937 का शरियत एक्ट है और हिंदुओं के लिए भी हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू एडॉप्शन एक्ट और उत्तराधिकार अधिनियम जैसे कानून मौजूद हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों के रूप में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकार मिला है। इन सिविल लॉ के तहत हर धर्म को अपने हिसाब से नियम तय करने का अधिकार मिला है।
'यूसीसी की जरूरत नहीं है'
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मेंबर खालिद रशीद ने कहा, "हमारा मानना है कि सभी कानूनों में समानता नहीं लाई जा सकती है। अगर आप किसी एक समाज को कानून से बाहर रखते हैं तो फिर यह कैसी समान नागरिक संहिता है।" उन्होंने आगे कहा, "संविधान के मूल अधिकारों में से एक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी है। हमारी राय है कि ऐसे किसी यूसीसी की जरूरत नहीं है।" विधानसभा में यूसीसी विधायक पेश किए जाने पर उन्होंने कहा, "विधानसभा में ड्राफ्ट पेश किया गया है और अब हमारी लीगल टीम इसका अध्ययन करेगी। इसके बाद हम आगे का फैसला लेंगे।" मौलाना राशिद फरंगी महली के बयान से पूरी तरह साफ है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यूसीसी को कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है।
Created On :   6 Feb 2024 3:54 PM IST