मणिपुर फिर जला, आगजनी और हिंसा में गई 3 की जान, कई लोग घायल, इलाके में भारी तनाव
- मणिपुर में फिर हिंसा
- हिंसा और आगजनी में गई जान
डिजिटल डेस्क, इंफाल। मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। तीन महीने से अधिक समय से पूर्वोत्तर राज्य हिंसा की आग में जल रहा है। बीती रात प्रदेश के विष्णुपुर जिले में एक बार फिर हिंसा और आगजनी हुई। जिसमें तीन लोगों की मारे जाने की खबर है। इलाके में भारी तनाव है। पुलिस और सेना के जवान मौके पर मौजूद हैं और स्थिति को संभालने की कोशिश कर रहे हैं।
मणिपुर पुलिस ने बताया कि, कुछ लोग बफर जोन की मदद से मैतेई इलाके में घुस आए और फायरिंग और घरों में आगजनी करनी शुरू कर दी। जिसकी वजह से तीन मैतेई समुदाय से जुड़े लोग की मौत हो गई, जबकि कई लोग इस हिंसा में घायल हुए हैं। पुलिस के मुताबिक, उपद्रवियों ने सेना और पुलिस पर बारूद और गोलीबारी से भी हमला किया। जिसकी वजह से हिंसक झड़प और बढ़ी। विष्णुपुर जिले के क्वाक्टा इलाके से दो किमी से आगे तक केंद्रीय बलों ने बफर जोन बनाया है।
हजारों लोगों का घर छीना
शुक्रवार ( 4 अगस्त) की रात से पहले गुरुवार को भी इस जिले से हिंसा की खबरें सामने आई थी। उपद्रवियों और सुरक्षा बलों के बीच जबरदस्त झड़प हुई थी। जिसकी वजह से अभी तक इलाके में तनाव का माहौल बना हुआ है। इस बीच एक बार फिर खबरें आई हैं कि जिले में तीन लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। 3 मई से मणिपुर में हिंसा हो रही है। अब तक इस हिंसा में 165 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि हजारों लोग बुरी तरह घायल हुए हैं। साथ ही आगजनी की वजह से कई लोगों का घर उनसे छीन गया है, ये शेल्टर होम में रहने को मजबूर हैं।
हिंसा होने का मुख्य कारण
- हिंसा की मुख्य वजह मणिपुर हाईकोर्ट का एक आदेश, अदालत ने प्रदेश के बीरेन सरकार को आदेश दिया की वो मैतेई समुदाय को जनजाति आदिवासी का दर्जा दें।
- अदालत के इस आदेश पर कुकी समुदाय और संगठनों ने तुरंत अपना विरोध जताया और 3 मई को प्रदेश के चुराचांदपुर जिले में इसके विरोध में आदिवासी एकता मार्च निकाला। इसी दौरान मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसक झड़प की पहली खबर आई थी जो अब तक जारी है।
- 40 फीसदी आबादी के साथ कुकी समुदाय मणिपुर के 90 फीसदी पहाड़ी इलाकों पर निवास करता है जबकि अधिक आबादी होने के बाद भी मैतेई समुदाय का हक 10 फीसदी क्षेत्र पर ही है। 53 फीसदी आबादी वाले मैतेई समुदाय के लोग राज्य के मैदानी इलाकों में निवास करते हैं।
- 40 फीसदी होने के बावजूद अधिक इलाकों पर कब्जे के साथ कुकी समुदाय के लोग घाटी में भी रह सकते हैं जबिक मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में न जा सकते हैं न ही वहां की जमीन खरीद कोई अन्य काम कर सकते हैं।
- मैतेई समुदाय को जनजाति आदिवासी का दर्जा मिल जाने पर कुकी समुदाय के समान हो जाएंगे, वो भी कहीं जाकर और अपना धंधा शुरू कर सकते हैं। इसी को देखते हुए कुकी समुदाय ने सबसे पहले विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया और धीरे-धीरे विरोध की चिंगारी आग की लपटों में तब्दील होती गई और आज पूरा प्रदेश हिंसा की आग में जल रहा है।
Created On :   5 Aug 2023 2:59 AM GMT