श्री राम जन्मभूमि आंदोलन: नौकरी गंवा दी लेकिन नहीं आने दी रामलला की मूर्ति पर आंच, प्रतिमा की खातिर नौकरी गंवाने वाले पहले कारसेवक के बारे में जानिए

नौकरी गंवा दी लेकिन नहीं आने दी रामलला की मूर्ति पर आंच, प्रतिमा की खातिर नौकरी गंवाने वाले पहले कारसेवक के बारे में जानिए
  • 22 जनवरी को होने वाले प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम की जोरदार तैयारी जारी
  • अधोध्या में जगह-जगह पर लगाई जा रही रामलला की तस्वीर

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में है। 22 जनवरी को होने वाले प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम की जोरदार तैयारियों के बीच मंदिर के लिए चलाए गए आंदोलन और संघर्षों को भी याद किया जा रहा है। श्री रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े प्रमुख चेहरों से संबंधित जानकारी को एक बुकलेट के जरिए लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भेजे जा रहे निमंत्रण पत्र के साथ संकल्प नाम का एक बुकलेट भी दिया जा रहा है, जिसमें आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले 21 चेहरों का जिक्र किया गया है। इस सूची में उन लोगों को शामिल किया गया है जिनकी वजह से राम मंदिर का सपना साकार हो पाया है। इनमें गुरुदत्त सिंह का भी नाम शामिल है। आंदोलन में सहयोग देने के लिए उन्होंने अपनी जिला मजिस्ट्रेट की कुर्सी की भी परवाह नहीं की।

रामलला की मूर्ति प्राकट्य में योगदान

वर्ष 1949 में जब 22-23 दिसंबर की रात विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति का प्राकट्य हुआ। उस समय ठाकुर गुरुदत्त सिंह सिटी मजिस्ट्रेट थे। तत्कालीन जिला अधिकारी के के नैयर उस समय छुट्टी पर थे। जिसकी वजह से जिलाधिकारी का अतिरिक्त भार भी गुरुदत्त सिंह पर ही था। माना जाता है कि बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुम्बद में रामलला की पहली मूर्ति रखने वाले महंत अभिराम दास ने गुरुदत्त सिंह और जिलाधिकारी के के नैयर के साथ समन्वय स्थापित किया था। 'अयोध्या - द डार्क नाइट' नाम की किताब के मुताबिक, 'केंद्रीय गुंबद के अंदर रामलला की मूर्ति को रखना अभिराम दास और दो शीर्ष जिला अधिकारियों का समन्वित कार्य था।'

मूर्ति हटाने के ऑर्डर को टाला, गंवाना पड़ा पद

साल 1949 में 22 और 23 दिसंबर के दिन ठाकुर गुरुदत्त सिंह के लिए परीक्षा का दिन था। 22 दिसंबर की रात विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति के प्राकट्य की खबर तेजी से फैल गई। जिसके बाद बड़ी संख्या में राम भक्त परिसर में पहुंच गए। इसके बाद गहमागहमी का माहौल बन गया, उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और गोविंदवल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री। दोनों ही जगह से शासन-प्रशासन पर मूर्ति हटाने का दबाव पड़ने लगा। यहां गुरुदत्त सिंह ने अपने पॉवर का इस्तेमाल एक राम भक्त के तौर पर किया। उन्होंने स्थिति बिगड़ने का हवाला देते हुए रामलला की मूर्ति हटाने से मना कर दिया। क्योंकि उस समय तक रामभक्त की भीड़ उमर चुकी थी और लोगों की धार्मिक आस्था को छेड़ना साम्प्रदायिक उन्माद का कारण बन सकता था। इस फैसले की वजह से ठाकुर गुरुदत्त सिंह को सिटी मजिस्ट्रेट की कुर्सी गंवानी पड़ी, शासन ने उन्हें पद से हटाने का फैसला किया।

'राम भक्त मजिस्ट्रेट' नाम की किताब में कहा गया है कि महंत अभिराम दास और महंत रामचंद्र दास परमहंस ने उस स्थान पर पहुंच कर अखंड कीर्तन की शुरुआत कर दी थी। एक ऐसा समय भी था जब परिसर में स्थित राम चबूतरा पर भोग-आरती की जाती थी लेकिन, इस घटना ने रामलला की प्रतिमा को गर्भ-गृह में स्थापित कर दिया।

रामभवन बना आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों का केंद्र

पुलिस लाइन स्थित गुरूदत्त सिंह का बंगला आजादी के बाद आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों का शुरुआती केंद्र बना। आजादी के बाद के दशक के बीच में वो सिटी बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। उस वक्त श्री राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े सभी बड़े नेताओं का पहला स्टॉप गुरुदत्त सिंह का आवासीय भवन, रामभवन ही होता था। अयोध्या के लोगों के लिए रामभवन का आज भी भावनात्मक महत्व है।

अयोध्यावासी के मन में रामभवन के बसने का एक खास वजह है। माना जाता है कि 1982 से 1985 के बीच में गुमनामी बाबा अपने अंतिम समय में इसी भवन में रूके थे। कहा जाता है कि इस रामभवन में गुमनामी बाबा लगभग दो सालों तक रहे थे। इसके बावजूद किसी ने उनका चेहरा नहीं देखा था। बाद में दावा किया गया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही गुमनामी बाबा थे और वो साधु के वेश में अयोध्या, फैजाबाद, नैमिषारण्य समेत बस्ती के कई स्थानों पर रहे थे।

'भारत का पहला कारसेवक' - अशोक सिंघल

'हिंदू हृदय सम्राट' कहे जाने वाले अशोक सिंघल ने गुरुदत्त सिंह को 'भारत का पहला कारसेवक' का टाइटल दिया। निरमोही अखाड़े के संतों के बाद सिंघल पहले हिंदू लीडर थे। जिन्होंने गुरुदत्त सिंह के योगदान को सराहा था। विवादित स्थल पर रामलला की मूर्ति प्राकट्य में गुरुदत्त सिंह के योगदान ने हिंदुओं के श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को एक नया और जरूरी ऐतिहासिक मोड़ देने का काम किया।

Created On :   6 Jan 2024 8:49 PM IST

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