श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन: भगवान राम के हक में इतने दिए तर्क कि नाम ही पड़ गया 'प्रतिवाद भयंकर', ऐसे थे संत परमहंस रामचंद्र दास

भगवान राम के हक में इतने दिए तर्क कि नाम ही पड़ गया प्रतिवाद भयंकर, ऐसे थे संत परमहंस रामचंद्र दास
  • श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में संत परमहंस रामचंद्र दास ने निभाई थी अहम भूमिका
  • 22 जनवरी को रामलला के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा
  • राम मंदिर को लेकर राममय हुआ देश का माहौल

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के कई प्रमुख चेहरों में से एक थे महंत रामचंद्र दास। साल 1949 में रामलला की मूर्ति के प्राकट्य से लेकर 1990 में कारसेवकों के नेतृत्व, शिला पूजन, संत चेतावनी यात्रा और ताला खोलो आंदोलन तक वह राम जन्मभूमि के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। 22 दिसंबर की रात मूर्ति प्राकट्य से लेकर विवादित ढांचा गिरने तक रामचंद्र दास सभी जगह मौजूद थे। कारसेवकों का नेतृत्व करना हो या मंदिर आंदोलन को दिशा देना, उन्होंने सभी कार्य पूरी तन्मयता से किया। आज जब राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है तो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस महान संत को याद करना जरूरी है।

संकल्प बुकलेट में रामनंदी दिगंबर अखाड़े के महंत श्रीरामचंद्र दास का नाम भी शामिल है। उन्होंने मंदिर आंदोलन की धुरी का काम किया। वह किसी भी बात को सहज स्वीकार नहीं करते थे, हर बात के खिलाफ उनके पास पर्याप्त तर्क होता था। जिस वजह से उन्हें 'प्रतिवाद भयंकर' के नाम से भी जाना जाता है। हर विवादित चर्चा में रामचंद्र दास दिए गए तर्कों का प्रतिकार करते थे। राम मंदिर आंदोलन में अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले महंत रामचंद्र दास को शलाका पुरुष के नाम से भी जाना जाता था।

ताला तोड़ो आंदोलन की धमकी

रामचंद्र दास रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे और अपने तल्ख तेवर के कारण खासा मशहूर थे। उनके इस तेवर ने रामजन्मभूमि आंदोलन को धार देने का काम किया। साल 1985 में कर्नाटक के उडुपी में हुए दूसरी धर्मसंसद में उन्होंने एक अहम ऐलान किया। जिसकी वजह से राम मंदिर में लगा ताला खोल दिया गया। उन्होंने ऐलान किया कि अगर महाशिवरात्रि (8 मार्च, 1986) तक ताला नहीं खोला गया तो 'ताला खोलो आंदोलन' को 'ताला तोड़ो आंदोलन' में बदल दिया जाएगा। उनके इस ऐलान के बाद 1 फरवरी 1986 को ही विवादित स्थल पर लगा ताला खोल दिया गया।

शिलापूजन ने दी आंदोलन को धार

साल 1989 के प्रयाग महाकुंभ में तीसरी धर्म संसद हुई जिसके नेतृत्व की जिम्मेदारी महंत रामचंद्र दास ने संभाली थी। इस बार धर्म संसद में शिला पूजन और शिलान्यास का संकल्प लिया गया। जिसने आंदोलन में तेजी लाने का काम किया। 9 नवंबर 1989 को इस संकल्प के तहत कामेश्वर नाम के एक दलित युवक के हाथों राम मंदिर की पहली ईंट रखी गई थी। इस दौरान देश भर से हजारों की संख्या में साधु-संत वहां मौजूद थे।

राम मंदिर के लिए दान की थी शिलाएं

रामचंद्र दास ने राम मंदिर निर्माण के लिए फैजाबाद प्रशासन को शिलाएं दान की थी। उनकी इच्छा थी कि जब भी राम मंदिर का निर्माण हो उसमें इन शिलाओं का इस्तेमाल किया जाए। दान किए गए शिलाओं को लेने के लिए पीएमओ के एक अधिकारी विशेष विमान से अयोध्या पहुंचे थे। उस समय अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे और अयोध्या सेल के इंचार्ज शत्रुघन सिंह ने उनसे शिलाएं ली थी। उनकी दी हुई शिलाओं को अयोध्या के शिलागार में डबल लॉकर में रखा गया।

इकबाल अंसारी से हो गई दोस्ती

साल 1949 में गोपाल सिंह विशारद के अलावा रामचंद्र दास ने भी दर्शन और पूजन के अधिकार के लिए कोर्ट का रूख किया था। हिंदू पक्ष के बाद मुस्लिम पक्ष ने भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दोनों पक्षों के बीच चले लंबे अदालती लड़ाई में मुस्लिम समुदाय के प्रमुख पैरोकार इकबाल अंसारी और महंत रामचंद्र दास केस लड़ते हुए दोस्त बन गए। उन दोनों की दोस्ती की मिसाल आज भी दी जाती है।

मोक्ष नहीं मंदिर और अखंड भारत की कामना

जीवन के अंतिम समय में रामचंद्र दास ने लखनऊ पीजीआई के बेड पर लेटे हुए अपनी तीन अंतिम इच्छाएं व्यक्त की। उनकी पहली इच्छा राम-कृष्ण-काशी विश्वनाथ मंदिर थी, दूसरी इच्छा गोहत्या बंद करने की और तीसरी अखंड भारत देखने की थी। आजीवन राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहने वाले महंत रामचंद्र दास अक्सर कहते थे कि मुझे मोक्ष नहीं मंदिर की कामना है।

मायावती भी थीं मुरीद

बसपा प्रमुख मायावती भी महंत प्रेमचंद्र दास की मुरीद रही हैं। इसके पीछे दलित वर्ग से जुड़ा एक खास किस्सा है जिस वजह से मायावती महंत रामचंद्र दास से काफी प्रभावित हुई। दरअसल, महंत जी ने बिहार के एक मंदिर में दलित पुजारी को नियुक्त किया था। यही नहीं रामचंद्र दास ने दलित पुजारी से खाना बनवाया और खाया, यह जानकर मायावती उनसे प्रभावित हुई। मायावती अक्सर महंत जी के लिए तोहफे भिजवाया करती थीं। एक बार जब रामचंद्र दास बीमार होकर अस्पताल में भर्ती थे तो मायावती उन्हें देखने अस्पताल भी पहुंच गई।

अंतिम समय में अयोध्या में ही रहने की कामना

तबीयत बिगड़ने पर रामचंद्र दास को लखनऊ पीजीआई में भर्ती कराया गया। लेकिन उन्होंने अयोध्या में ही रहने की इच्छा जताई। 2003 में 29 जुलाई को उन्हें लखनऊ से अयोध्या लाया गया। जहां 31 जुलाई को उनकी मृत्यु हो गई। महंत रामचंद्र दास ने दिगम्बर अखाड़े में 92 साल की आयु में अंतिम सांस ली। उनके देहांत की खबर सुनते ही देश भर के संत समाज का अयोध्या में जमावड़ा लग गया। इसके अलावा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी और महंत अवैद्यनाथ जैसी बड़ी हस्तियां भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए।

Created On :   9 Jan 2024 7:54 PM IST

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