कोरोना संकट के बाद विदेश जाने वाले कुशल पेशेवरों के 'अच्छे दिन'

कोरोना संकट के बाद विदेश जाने वाले कुशल पेशेवरों के अच्छे दिन
नई दिल्ली, 1 जुलाई (आईएएनएस)। कोरोना संकट के बाद अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया समेत कई अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाएं आबादी की बढ़ती उम्र और कम जन्म दर का सामना कर रही हैं। इसके कारण श्रमिकों और पेशेवरों की भारी कमी भी हो रही है। इसको देखते हुए आईटी, स्वास्थ्य सेवा, एसटीईएम, शिक्षा आदि क्षेत्रों से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए आव्रजन सिस्टम में बदलाव किए जा रहे हैं।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कोरोना संकट के बाद अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया समेत कई अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाएं आबादी की बढ़ती उम्र और कम जन्म दर का सामना कर रही हैं। इसके कारण श्रमिकों और पेशेवरों की भारी कमी भी हो रही है। इसको देखते हुए आईटी, स्वास्थ्य सेवा, एसटीईएम, शिक्षा आदि क्षेत्रों से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए आव्रजन सिस्टम में बदलाव किए जा रहे हैं। कुशल पेशेवरों की वैश्विक मांग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि देश अपनी आर्थिक वृद्धि और विकास का बढ़ावा देने के लिए प्रतिभा को आकर्षित करने के महत्व को समझती हैं। विदेशों में सबसे अधिक कुशल पेशेवरों की कमी दिखती है। यह खासतौर पर स्वास्थ्य सेवा, आईटी, कानून, आतिथ्य और वित्तीय क्षेत्रों में सबसे ज्यादा है।

कलोन इंस्टीट्यूट की एक स्टडी के अनुसार, जर्मनी को 2030 तक 80,000 शिक्षकों के अलावा, 6,30,000 कुशल पेशेवरों की तुरंत आवश्यकता है। सरकार की 'मेक इट इन जर्मनी' वेबसाइट के मुताबिक मांग वाले क्षेत्र में नर्सिंग पेशेवर, चिकित्सक, इंजीनियर, आईटी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक शामिल हैं। अन्य अधिकांश विकसित देश होटल और रेस्तरां, उद्योग, निर्माण और लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों में कामगारों की तलाश कर रहे हैं। कनाडा ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह एक्सप्रेस एंट्री कैंडिडेट्स पर ध्यान केंद्रित करेगा, जिनके पास स्वास्थ्य सेवा, एसटीईएम व्यवसाय, व्यापार (बढ़ई, प्लंबर, ठेकेदार), परिवहन और कृषि के क्षेत्र में अनुभव है।

जैसा कि आप जानते हैं कि आईटी क्षेत्र की भारतीय प्रतिभाओं की दुनियाभर में बहुत मांग है। उनकी विकास गाथा सिलिकॉन वैली में दिखती है, जिसमें सुंदर पिचाई, सत्या नडेला और अरविंद कृष्णा जैसे नाम शामिल हैं। अगर खाड़ी देशों की बात करें तो यहां भारतीय स्वास्थ्य पेशेवरों का हमेशा स्वागत किया जाता रहा है। हाल के सालों में कई यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी देशों ने भारतीय स्वास्थ्य कर्मियों के प्रवासन को प्रोत्साहित किया है। माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अनुसार, यूके ने 2019 के अंत में चिकित्सा पेशेवरों के लिए फास्ट-ट्रैक वीज़ा की घोषणा की थी। इस वीज़ा का उद्देश्य देश की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) में कमी को दूर करना था। 2017 तक एनएचएस में 15,000 से अधिक डॉक्टरों ने भारत में अपनी प्राथमिक चिकित्सा योग्यता प्राप्त की थी। भारतीयों ने 2019 की शुरुआत में एनएचएस कर्मचारियों के लिए शीर्ष गैर-ब्रिटिश राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व किया था।

अध्ययन के अनुसार, यूके में ऑर्थोडॉन्टिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ जैसे स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े पेशेवर 94 से 95.9 लाख का वार्षिक वेतन प्राप्त करते हैं। कनाडा की सांख्यिकी के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2023 तक स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सहायता क्षेत्र में 1,44,500 रिक्त पद दिखाए जाने के बाद कनाडा ने हाल ही में अपनी नई एक्सप्रेस एंट्री के तहत 500 स्वास्थ्य कर्मियों को आप्रवासन के लिए आमंत्रित किया। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि कोरोना महामारी के बाद कनाडा, आयरलैंड, माल्टा, जर्मनी, नीदरलैंड, फिनलैंड, यूनाइटेड किंगडम और बेल्जियम सहित कई देशों से भारत में प्रशिक्षित नर्सों की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। रोजगार के बेहतर अवसरों और उच्च वेतन के लिए विदेशों में प्रवास करने वाली नर्सों की संख्या के मामले में भारत, फिलीपींस के बाद दूसरे स्थान पर है।

ईईन्यूज के मुताबिक यूरोप, जर्मनी और रोमानिया दुनियाभर से एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) इंजीनियरों को बुला रहे हैं। एआई के बाद, सिस्टम इंजीनियरिंग है, जिसमें 3,759 रिक्तियां थीं और पूरे ब्रिटेन में इसकी सबसे ज्यादा मांग थी। स्विट्जरलैंड, तुर्की, फ्रांस, स्वीडन और फिनलैंड जैसे देश भी सिस्टम इंजीनियरों की तलाश में हैं। यूरोपीय संघ में इंजीनियरिंग स्पेशलिस्ट्स की सबसे ज्यादा डिमांड है। जिसमें जावा डेवलपर्स, सिस्टम एडमिनिस्ट्रेशन, सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर शामिल हैं।

(आईएएनएस)

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Created On :   1 July 2023 10:11 PM IST

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