दिवाली 2024: दिवाली की अलग-अलग हिस्सों में है अलग-अलग मान्यता, जानें देश के किस हिस्से में क्या है दिवाली का महत्व

दिवाली की अलग-अलग हिस्सों में है अलग-अलग मान्यता, जानें देश के किस हिस्से में क्या है दिवाली का महत्व
  • दिवाली का त्योहार है आने वाला
  • इस त्योहार को अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
  • जानें किस राज्य में किस तरीके से मनती है दिवाली

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिवाली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटे थे और इस खुशी में अयोध्यावासियों ने नगर को दिपों से जगमगा दिया था। जिसके बाद हर साल हम इस दिन को दिवाली के रूप में मनाते हैं। अगर आप भारत में रहते हैं, तो आप हमारे देश में मौजूद विविधताओं को जानते होंगे। कूछ ही मीलों पर भाषा, संस्कृति और परंपराएं बदल जाती हैं। इन विविधताओं के कारण दिवाली का मतलब पूरे देश में एक है, पर हर क्षेत्र में इसे मनाने का तरीका अलग है। चलिए जानते हैं भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे मनाने के अलग-अलग तरीकों के बारे में।

उत्तर भारत की दिवाली

उत्तर भारत में दिवाली का त्योहार घरों की साफ-सफाई और सजावट से शुरू होता है। यहां लोग तेल के दिये, मोमबत्ती को घर के अलग-अलग हिस्सों में रखते हैं। साथ ही घरों को लाइट्स से सजाते हैं। यहां पर दियों को जलाने को अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक भी माना जाता है। वहीं, राजा राम के विजय को पटाखे जलाकर मनाया जाता है। लोग एक साथ जश्न मनाते हैं और तो और दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने उनके घर जाते हैं। कुछ दोस्त और रिश्तेदार आपके भी घर आते हैं। इसके अलावा, मिठाइयों का आदान-प्रदान भी खूब किया जाता है।

पश्र्चिम भारत की दिवाली

महाराष्ट्र और गुजरात सहित पश्र्चिमी राज्यों में दिवाली एक अनोखा रूप लेती है। क्योंकि यहां दिवाली बहुत भव्य तरीके से मनाई जाती है। यहां धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और पूजा की तरह-तरह की रस्मों में लोग शौक से शामिल होते हैं। यहां पर लोग सुंदर सी रंगोलियां भी मनाते हैं। जिसको ज्यादा दिन बने रहने के लिए कई सारे पाउडरों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, लोग पटाखे फोड़ते हैं और तरह-तरह की मिठाईयां खाकर त्योहार को शौक से मनाते हैं।

दक्षिण भारत की दिवाली

दक्षिण भारत में दिवाली मनाने का तरीका थोड़ा अलग है। बात करें, तमिलनाडु की तो वहां भी उत्तर भारत की तरह दिवाली पर दिये जलाये जाते हैं, पटाखे फोड़े जाते हैं और मिठाईयां बांटी जाती हैं। लेकिन उनकी एक अनोखी परंपरा है जो रोशनी के त्योहार को अनोखा बना देती है। जो कि है कुथु विलाकु (दीपक)। इससे देवताओं को नैवेद्य चढ़ाया जाता है। वहीं, वे दीपावली लेहियम नामक एक विशेष दवा तैयार करते हैं, जिसे बाद में परिवार वालों में बांट दिया जाता है। साथ ही, अपने पूर्वजों को खुश करने को लिए पितृ तर्पणम पूजा भी करवाई जाती है।

पूर्वी भारत की दिवाली

यहां दिवाली में काली माता की पूजा की जाती है। काली पूजा का त्योहार दिवाली के दिन ही मनाया जाता है। काली माता को शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। काली माता को लोग हिबिस्कस के फूल से सजाते हैं। इस पूजा को लोग मंदिर के साथ-साथ अपने घरों पर भी विधि विधान से करते हैं। मां काली को मिठाई, दाल, चावल और मछली का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा, बंगाल में काली पूजा से एक रात पहले, घर में 14 दीये जलाकर बुरी शक्तियों को भगाया जाता है। जिसे भूत चतुर्दशी कहा जाता है। पूर्वी क्षेत्र में काली पूजा को दुर्गा पूजा की तरह भव्य तरीके से मनाया जाता है।

मध्य भारत की दिवाली

मध्य भारत के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दिवाली का त्योहार फसल कटाई के मौसम के साथ मनाया जाता है। लोग अपने मवेशियों और अन्य पशुओं की पूजा भी करते हैं। यहां अलाव जलाया जाता है और माना जाता है कि, इस दौरान मृत्यु के देवता यम की पूजा नहीं की जाती है। इस वजह से यहां पर दूसरे राज्यों से अलग दिवाली मनाई जाती है।

पूर्वोत्तर भारत की दिवाली

उत्तर भारत की तरह यहां दिवाली पर दीये जलाए जाते हैं, पटाखे फोड़े जाते हैं और रंगोली बनाई जाती है। वहीं, असम में इसे काली पूजा के नाम से जाना जाता है। अगर नागालैंड कि बात करें, तो वहां तोखू इमोंग मनाया जाता है, जो फसलों का त्योहार है। यह अक्सर दिवाली के साथ मेल खाता है।

गोवा की दिवाली

गोवा में दिवाली भगवान कृष्ण की याद में मनाई जाती है। बता दें, दिवाली के एक दिन पहले नरकासुर चतुर्दशी के दिन राक्षस के विशाल पुतले बनाकर, जलाए जाते हैं। क्योंकि भगवान कृष्ण ने ही उन्हें मारा था। वहीं, गोवा और दक्षिण भारत में मान्यता है कि दिवाली के दौरान पाप से मुक्त होने के लिए अपने शरीर पर नारियल का तेल लगाते हैं। साथ ही, पुर्तगली संस्कृती का प्रभाव पड़ने के कारण, यहां 'आकाश कंदील' जलाकर सार्वजनिक स्थानों, घरों और चर्चों में रखा जाता है। वहीं दिवाली के दिन यहां का पारंपरिक व्यंजन बेबिनका और लड्डू के साथ मछली की करी और झींगा बालचाओ खाया जाता है।

पंजाब की दिवाली

पंजाब में दिवाली एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। यह गुरु हरगोबिंद जी की कैद से रिहीई के दिन से मेल खाता है। इस दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में पटाखें से रोशनी की जाती है, जो एक मन लुभाने वाला दृश्य होता है। सिख इस दौरान गुरुद्वारा जाते हैं।

Created On :   22 Oct 2024 4:31 PM IST

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